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कमाल के थे "कमाल" खान

Shiv Kumar Mishra
14 Jan 2024 2:54 PM GMT
कमाल के थे कमाल खान
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Kamaal Kamaal Khan

अपूर्व भारद्वाज

मैं कमाल खान को 1998 से टीवी रिपोर्टिंग करते हुए देख रहा हूँ कमाल खान कोई सामान्य रिपोर्टर नही थे उनकी रिपोर्टिंग 5W + 1H से शुरू होती थी और उसी पर खत्म होती थी जो आजकल के नए परजीवी पत्रकारों की रिपोर्ट्स में नदारद रहती है खबर को कहानी के अंदाज में कहना शायद उन्होंने ही शुरू किया था जिसकी नकल आजकल ललनटॉप जैसे स्वघोषित न्यूमीडिया पोर्टल करते है

एक शानदार रिपोर्ट शायराना अंदाज में खत्म करना कमाल का ही अंदाज था उनकी रिपोर्टस में मुझे परसाई का व्यंग भी दिखता था और दुष्यंत का विद्रोह भी ..रस, काव्य और भावनाओं के मिश्रण से वो "कमाल" की स्टोरी करते थे

कमाल का जाना मुझ जैसे उन सारे पूर्व पत्रकारों के लिए निजी क्षति है जो आज भी पत्रकारिता में नैतिकता और ईमानदारी खोजते है कमाल राजनीति को भी बहुत महीन तरीके से पढते थे वो राजनीति को लोकतंत्र का सफर समझते थे जिसकी आखरी मंजिल मुल्क की खुशहाली ही होती थी

मुझे अच्छे से याद है एक बार जब लखनऊ में नई सरकार के शपथ हो रहा था तब कमाल खान ने कैमरे के सामने एक शेर कहा था: "इसके पहले यहां जो शख्स तख्त नशीन था, उसको भी अपने खुदा होने का इतना ही यकीन था" कमाल का यह शेर आज भी आने वाले कल का भविष्य बताता है

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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