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22 साल बाद मिला राजस्थान में भगवान को इंसाफ, टूटेगा 300 करोड़ का होटल
Special Coverage News
4 Aug 2017 9:57 AM GMT
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After 22 years, God found justice in Rajasthan!
भगवान नाबालिग होते हैं और उनके नाम की जमीन को ना तो किसी को बेचीं जा सकती है और ना ही लीज़ और किराये पर दी जा सकती है। यह कहना है राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार का।
जी हां, जिस मंदिर की जमीन को राजस्थान के कुछ अधिकारियों ने गलत तरीके से एक होटल ग्रुप को लीज़ पर दे दिया था, उसी जमीन को अब वसुंधरा सरकार ने हाई कोर्ट की फटकार के बाद यह कहते हुए वापस करने की बात कही है कि भगवान तो शास्वत नाबालिग होते हैं और उनके नाम की जमीन को किसी को भी लिज़ देना तो दूर किसी और काम के लिए भी हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। सरकार के इस फैसले के बाद जयपुर में बने करीब 300 करोड़ के आलिशान फाइव स्टार होटल के अस्तित्व पर ही संकट आ गया है।
राजस्थान के राजस्व राज्य मंत्री अमराराम चौधरी ने सरकार ने यह आदेश राजस्थान हाईकोर्ट में लिखित रूप में देते हुए होटल ट्राइडेंट की लीज रद्द करके जमीन को वापस मंदिर को सौंपने की सूचना दी है। इसमें एक होटल ग्रुप को जमीन 20 सालों तक लिज़ पर देने और फिर उसे अगले 20 सालों तक गलत तरीके से बढ़ा दिए जाने के अपने फैसले को सरकार ने भी आखिरकार गलत मान ही लिया है। अब सरकार का यह कहना है कि यह होटल जिस जमीन पर बना है, वह कल्याण मंदिर की खातेदारी भूमि है। यह जमीन सरकारी अधिकारियों से मिलीभगत से पहले लीज पर ली गई और फिर ओबेरॉय ग्रुप ने ट्राइडेंट होटल का निर्माण कर लिया गया।
हाईकोर्ट की फटकार के बाद राज्य सरकार ने भी लिखित आदेश देकर साफ़ कर दिया कि राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में यह जमीन भगवान श्रीकल्याणजी के नाम पर दर्ज है और मंदिर मूर्ति शाश्वत नाबालिग होते हैं, जिसपर पुजारी या अन्य किसी को भी खातेदारी अर्जित करने का हक़ नहीं होता। ऐसे में मंदिर की भूमि को किसी भी तरह से लिज़ पर भी नहीं दिया जा सकता। राजस्व मुख्य सचिव को मंत्री ने तत्काल इस जमीन को होटल मालिकों से वापस लेते हुए भगवान के मंदिर के नाम करने और सौंपने का निर्देश जारी किया है।
क्या था मामला
दरअसल महंत मूलचंद ने मंदिर की खसरा नंबर 102, 105, 111 और 115 की कुल 5 बीघा 12 बिस्वा जमीन मंदिर के ठाकुरजी के नाम बताते हुए उसे एक होटल ग्रुप को गलत तरीके से लिज़ पर दिए जाने की शिकायत की थी। आरोप था कि इस जमीन को 14 फरवरी 1995 में मैसर्स इंडस होटल के नाम पर 20 साल के लिए सरकार ने लीज़ पर यह कहते हुए दे दिया था कि 14 फरवरी 2015 को यह लिज़ डीड ख़त्म भी हो गई और उसके बाद यह जमीं फिर से मंदिर के पास आ जाएगी, लेकिन 24 दिसंबर को तत्कालीन जिला कलेक्टर ने अवैध तरीके से अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर लिज़ को बीस साल तक के लिए और भी बढ़ा दिया, जिसे पहले राजस्व अदालत में चुनोती दी गई। लेकिन राजस्व अदालत में इस पर सुनवाई के देरी होने के चलते हाईकोर्ट की याचिका दायर की गई। 6 जनवरी को हाईकोर्ट ने लंबित आदेश का 3 महीने में निपटारा करने को कहा और जब इसमें देरी हुई तो अवमानना याचिका दायर किया गया, जिस पर सरकार को यह फैसला लेना पड़ा।
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