राष्ट्रीय

पाकिस्तान को फिर मिली पटकनी, ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन ने दी भारत को तरजीह पाकिस्तान को नकारा

Shiv Kumar Mishra
27 Dec 2021 9:04 AM GMT
पाकिस्तान को फिर मिली पटकनी, ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन ने दी भारत को तरजीह पाकिस्तान को नकारा
x


अरविंद जयतिलक

भारत की धारदार कुटनीति और सधी हुई रणनीति से एक बार फिर पड़ोसी देश पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी है। पांच मुस्लिम देशों तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान ने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) की जगह भारत-मध्य एशिया को तरजीह देकर जता दिया है कि उसकी शीर्ष प्राथमिकता में पाकिस्तान नहीं बल्कि भारत है।

उल्लेखनीय है कि गत दिवस अफगानिस्तान केंद्रित दो बैठकों पर दुनिया की निगाह जमी हुई थी और वे देखना चाहते थे कि अफगानिस्तान से सटे मध्य एशिया के देश भारत और पाकिस्तान में किसको सर्वाधिक तरजीह देते हैं। एक बैठक पाकिस्तान की मेजबानी में ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) देशों के विदेश मंत्रियों की हुई जबकि दूसरी बैठक भारत और मध्य एशिया के बीच हुई। ध्यान देना होगा कि पाकिस्तान की मेजबानी वाले ओआईसी में सिर्फ 20 देशों के मंत्री शामिल हुए और शेष ने अपने दूत भेजे। वहीं भारत और मध्य एशिया के बीच संपन्न वार्ता में पांचों मुस्लिम देशों के विदेश मंत्री शामिल हुए। इससे साफ जाहिर होता है कि मध्य एशिया के देश अफगानिस्तान केंद्रित समस्या से निपटने में पाकिस्तान के बजाए भारत की रणनीतिक व रचनात्मक भूमिका के साथ हैं। ध्यान देने वाली बात यह भी कि सभी पांचों मुस्लिम देश ओआईसी के सदस्य हैं और इनमें से तीन देश उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ताजिकिस्तान की सीमा अफगानिस्तान से लगी हुई है।

ये तीनों देश अफगानिस्तान में होने वाले हर उठापटक से प्रभावित होते हैं। अहम बात यह कि वार्ता में इन पांचों मुस्लिम देशों ने अफगानिस्तान के मसले पर भारत के रुख का पुरजोर समर्थन करते हुए अफगानिस्तान के लोगों को तत्काल मानवीय सहायता पहुंचाने के साथ आतंकियों को शरण व फंडिंग देने वालों पर कड़ी कार्रवाई की वकालत की है। तथ्य यह भी कि भारत एवं पांचों मध्य एशियाई देशों ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही परोक्ष रुप से उस पर हमला बोलते हुए कहा कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल सीमा पार आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने उद्घाटन भाषण में अफगानिस्तान के साथ सभ्यतागत संबंधों का हवाला देते हुए मध्य एशिया के देशों को रचनात्मक भूमिका के लिए आह्नान किया। गौर करें तो मध्य एशिया की सीमा अफगानिस्तान से लगती है और अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान के हालात बदल गए हैं। यहां तालिबान का शासन स्थापित हुआ है और वे सत्ता को बंदूक की नली गुजार रहे हैं। ऐसे में भारत और मध्य एशिया के देशों का चिंतित होना लाजिमी है। किसी से छिपा भी नहीं है कि अफगानिस्तान में शासन कर रहे तालिबानियों को पाकिस्तान का संरक्षण हासिल है। वह तालिबानियों के जरिए भारत विरोध का मोर्चा खोले हुए है और भारत में आतंकवाद के लिए उकसा रहे हैं। पाकिस्तान की कोशिश अफगानिस्तान केंद्रित मसले पर ओआईसी देशों के जरिए भारत को अलग-थलग करने की भी है। लेकिन जिस तरह मध्य एशिया के देशों ने ओईसी के बजाए भारत से वार्ता को तरजीह दी है उससे अब पाकिस्तान को अपनी हैसियत का अंदाजा लग गया होगा। याद होगा मार्च 2019 में पाकिस्तान ने ओआईसी में भारत के निमंत्रण को रद्द कराने की कुचेष्टा की। तब अबु धाबी में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक से पहले पाकिस्तान ने ओआईसी को धमकी दी थी कि अगर भारत को दिया गया आमंत्रण स्थगित नहीं किया गया तो वह बैठक का बहिष्कार करेगा। उसने ओआईसी देशों को लिखे पत्र में रोना रोया कि कश्मीर की हालत के लिए भारत जिम्मेदार है और भारत के साथ उसका विवादित मुद्दा है लिहाजा भारत को ओआईसी में शामिल होने का कानूनी व नैतिक अधिकार नहीं है।

पहले तो ओआईसी देशों ने पाकिस्तान को समझाने की कोशिश की लेकिन जब वह समझने को तैयार नहीं हुआ तो उसकी धमकी और नौटंकी को किनारे रख भारत के पक्ष में लामबंद हो गए। तब तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सम्मेलन में आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर जमकर हमला बोला और कहा कि 'अगर हमें मानवता को बचाना है तो उन देशों को रोकना होगा, जो आतंकियों को शरण और वित्तीय मदद देते हैं। गौर करें तो अबु धाबी सम्मेलन की तरह भारत ने मध्य एशिया वार्ता के जरिए पाकिस्तान को एक बार फिर पटकनी दी है। कुटनीतिक नजरिए से देखें तो तीसरी भारत-मध्य एशिया वार्ता में पांचों मुस्लिम देशों के विदेश मंत्रियों का शिरकत यों ही नहीं है। यह तथ्य है कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा से उत्पन राज्य प्रायोजित आतंकवाद से सिर्फ भारत ही लहूलुहान नहीं होता बल्कि उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान भी दर्द झेलते हैं। ऐसे में भारत और मध्य एशिया के देश कंधा जोड़ कुटनीतिक व सामरिक संबंधों को पुनर्जीवित करते है और आतंकवाद एवं अवैध ड्रग कारोबार से निपटने के लिए समान दृष्टिकोण रखते हैं तो यह स्वाभाविक है।

भारत के लिए मध्य एशिया इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि विश्व में सामरिक एवं आर्थिक परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं और भारत उससे सीधा प्रभावित हो रहा है। भारत एवं मध्य एशिया के बीच गहरे ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंध हैं। भारत का शक्तिशाली कुषाणों का साम्राज्य बनारस से पामीर के पठार के पूर्व तथा मध्य एशिया में तियेनशान और कुनलुन पहाड़ियों तक विस्तृत था। भारत में उत्पन बौद्ध धर्म का प्रभाव आज भी मध्य एशिया में व्याप्त है। भारत एवं मध्य एशिया सिर्फ सांस्कृतिक रुप से ही नहीं बल्कि मजबूत आर्थिक संबंधों के डोर से भी बंधे हुए हैं। इस बात के ढेरों प्रमाण हैं कि भारत एवं मध्य एशिया के बीच आर्थिक संपर्क प्राचीन सिल्क मार्ग से होता था। आज की परिस्थितियों में भारत मध्य एशियाई राष्ट्रों से कंधा जोड़कर सामरिक व परंपरागत आर्थिक संबंधों में मजबूती ला सकता है। निवेश, कारोबार व आर्थिक गतिविधियों के लिहाज से वर्तमान समय में भारत मेक इन इंडिया कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है। ऐसे में मध्य एशिया के देशों से निवेश का आना अति आवश्यक है। वैसे भी मध्य एशिया के लिए भारत बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है।

मौजूदा समय में भारत का मध्य एशिया के देशों से तकरीबन 1.5 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार होता है। भारतीय निर्यात 600 मिलियन डॉलर से अधिक है। इसी तरह 800 मिलियन डॉलर का आयात होता है। अगर भारत और मध्य एशिया के देशों के बीच कुटनीतिक, सामरिक व कारोबारी संबंध बेहतर होंगे तो वैश्विक मोर्चे पर नतीजे पक्ष में आएंगे। अच्छी बात यह कि भारत व मध्य एशिया दोनों सामरिक व आर्थिक साझेदारी को बढ़ाने के लिए दशकों पहले जमीन तैयार करना शुरु किए जो आज फलीभूत हो रहा है। फरवरी 1997 में भारत, ईरान और तुर्केमेनिस्तान के बीच वस्तुओं के आवागमन के लिए एक द्विपक्षीय समझौता हुआ। इसके तहत दोनों क्षेत्रों को तुर्केमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया यानी तापी पाइपलाइन प्रोजक्ट को अमलीजामा पहनाना है। अगर यह संभव हुआ तो मध्य एशिया क्षेत्र में उर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए परिवहन कॉरिडोर विकसित करने में मदद मिलेगी।

अब समय आ गया है कि भारत मध्य एशिया के देशों से कुटनीतिक संबंधों को धार देकर अफगानिस्तान में पाकिस्तान और चीन की भूमिका को सीमित करे। ऐसा इसलिए कि आज मध्य एशिया क्षेत्र में चीन लगातार प्रभावी होने की कोशिश कर रहा है। दरअसल उसकी नजर खनिज संपदाओं से लबालब उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान पर है जो दुनिया के सबसे बड़े तेल एवं प्राकृतिक गैस क्षेत्रों में से एक हैं। कजाकिस्तान अपने दामन में दुनिया की एक चौथाई यूरेनियम समेटे हुए है वहीं उज्बेकिस्तान दुनिया के सबसे बड़े सोने के भंडार वाले देशों में से एक है। वह प्रतिवर्ष 50 टन से अधिक सोना खनन करता है। इसी तरह तजाकिस्तान चांदी का सर्वाधिक उत्पादन करता है। उसके पास बहुतायत मात्रा में सोना एवं अल्युमिनियम का भंडार है। यहीं कारण है कि चीन पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान में शासन कर रहे तालिबान और मध्य एशिया के देशों को साधना चाहता है। पर अच्छी बात यह है कि भारत और मध्य एशिया दोनों का अफगानिस्तान केंद्रित मसले पर समान नजरिया है और दोनों ही सामरिक-कारोबारी संबंधों को नई ऊंचाई देने के लिए प्रतिबद्ध हैं ऐसे में इस भू-भाग में पाकिस्तान और चीन की दाल गलेगी इसकी संभावना कम है।

Next Story