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भारत में 12 अगस्त को मनाई जाएगी ईद उल अजहा 2019, बकरीद पर कुर्बानी से पहले जान लें ये जरूरी नियम

Sujeet Kumar Gupta
9 Aug 2019 9:16 AM GMT
भारत में 12 अगस्त को मनाई जाएगी ईद उल अजहा 2019, बकरीद पर कुर्बानी से पहले जान लें ये जरूरी नियम
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ईदे उल अजहा को नमकीन ईद भी कहा जाता है और इसी ईद को ईदे करबां भी कहा जाता है।

नई दिल्ली। ईद-उल-जुहा (बकरीद) जिसका मतलब क़ुरबानी की ईद इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद इसे मनाया जाता है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार हज़रत इब्राहिम अपने पुत्र हज़रत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा कि राह में कुर्बान करने जा रहे थे, तो अल्लाह ने उसके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह पर्व मनाया जाता है।

इस्लाम का पवित्र त्योहार ईद उल अजहा 2019 सोमवार 12 अगस्त को धूमधाम से मनाया जाएगा जिसको लेकर बाजारों में चहलकदमी बढ़ने लगी है। बकरीद के मौके पर कुर्बानी देने का खास महत्व है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत में बकरे या भेड़ की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के बाद गोश्त के अधिकतर हिस्सों को गरीबों में तकसीम किया जाता है.। हालांकि, इस्लाम में कुर्बानी देने से पहले कई बड़े नियम बताए हैं जिनका पालन करना हर हाल में जरूरी होता है. जानिए बकरीद पर कुर्बानी करने से पहले जरूरी नियम,

कुर्बानी के बकरे की कीमत का कोई फर्क नहीं है ,आप बकरा दो हजार का खरीदें या दो लाख रुपए का, अल्लाह के घर सब बराबर है बस मतलब है कुर्बानी करने वाले शख्स के जज्बे से। आपको यह जानना भी बहुत जरूरी है कि अगर आप अपनी पूरी कमाई ढ़ाई फीसदी हिस्सा दान में देते हैं. इसके साथ ही आप किसी भी समाजिक कार्य जिससे लोगों को भला होता हो उसके लिए आप धन के साथ आगे रहते हों तो आपके लिए कुर्बानी वाजिब नहीं है। कुर्बानी देने से पहले याद कर लें कि आपके ऊपर किसी का कर्ज तो नहीं, अगर आपके ऊपर किसी दूसरे का किसी भी तरह का कर्ज है तो उसे चुकाने के बाद कुर्बानी करें, वरना यह मान्य नहीं होगी।

कुर्बानी से पहले ख्याल रखें कि उस पशु को कोई शारीरिक बीमारी या भैंगापन हो. कान या सींग का ज्यादातर हिस्सा टूटा हो तो उसकी कुर्बानी नहीं दी जा सकती है. साथ ही अगर पशु छोटा है तो उसकी कुर्बानी भी मना है। सबसे खास बात, कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. पहला हिस्सा गरीबों के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा अपने लिए. हालांकि, अधिकतर लोग कुर्बानी का पूरा गोश्त गरीबों में बांट देते हैं।

बतादें कि ईदे उल अजहा को नमकीन ईद भी कहा जाता है और इसी ईद को ईदे करबां भी कहा जाता है। नमकीन ईद कहे जाने का अर्थ यह है कि इसे नमकीन पकवानों के साथ मनाया जाता है। जबकि कुरबानी से जुड़ी होने की वजह से इसे ईदे कुरबां भी कहा जाता है। बच्चे आमतौर पर इसे बकरा ईद भी कहते हैं।

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