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बदलते वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ब्रिक्स की राह

Shiv Kumar Mishra
28 Jun 2022 5:59 AM GMT
बदलते वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ब्रिक्स की राह
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अरविंद जयतिलक

रुस-यूक्रेन संकट के बीच ब्रिक्स देशों का 14 वां शिखर सम्मेलन संपन्न हो गया। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की अध्यक्ष्यता में डिजिटल माध्यम से संपन्न यह सम्मेलन इस मायने में महत्वपूर्ण रहा कि सदस्य देशों के सभी राष्ट्राध्यक्षों ने एक सुर में उच्च गुणवत्ता वाली ब्रिक्स साझेदारी को बढ़ाने पर जोर दिया। रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने अपने संबोधन में कहा कि ब्रिक्स देशों जैसे अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के लिए व्यापार का मार्ग बदल रहा है ऐसे में ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार के नए आयाम तलाशने होंगे। ध्यान देना होगा कि रुस द्वारा यूक्रेन पर हमले के कारण अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने रुस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखा है। इस प्रतिबंध से रुस आक्रोशित है और अब वह अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए ब्रिक्स देशों के बीच आर्थिक साझेदारी को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहता है। यहीं वजह है कि पिछले कुछ महीनों में वह भारत और चीन को रिकाॅर्ड तेल सप्लाई की है।

इसीलिए वह ब्रिक्स भागीदारों के बीच इंटरनेशनल मैकेनिज्म के लिए विश्वसनीय वैकल्पिक तंत्र विकसित करने की बात कही। दरअसल वे चाहते हैं कि ब्रिक्स देशों के बीच डाॅलर व यूरो के बगैर लेन देने के तरीका ईजाद हो ताकि अमेरिका और नाटो देशों पर से निर्भरता घटे। यानी कह सकते हैं कि रुस ब्रिक्स के जरिए आर्थिक साझीदारी का एक नया रास्ता तलाशना चाहता है। गौर करें तो चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का खुलकर समर्थन किया। उन्होंने अपने संबोधन में अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के विचारों को शीतयुद्ध मानसिकता और ब्लाॅक कन्फ्रंटेशन से जोड़कर नीचा दिखाने की कोशिश की। दरअसल उनका इशरा क्वाड की ओर भी था जिसमें भारत शामिल है। लेकिन भारत का नजरिया बेहद संतुलित रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने रुस व चीन के राष्ट्राध्यक्षों के पूर्वाग्रही आग्रहों को अपने उपर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने रुस-यूक्रेन संकट अथवा रुस पर प्रतिबंध संबंधी मसले पर अपना विचार रखने के बजाए महामारी से उपजी वैश्विक चुनौतियों से निपटने पर बल दिया। उन्होंने ब्रिक्स मंच के जरिए दुनिया तक यह संदेश पहुंचाने में सफल रहे कि 2025 तक भारतीय डिजिटल अर्थव्यवस्था का मूल्य एक लाख करोड़ अमेरिकी डाॅलर तक पहुंच जाएगा। उन्होंने दुनिया को अवगत कराया कि राष्ट्रीय अवसंरचना के मुताबिक भारत में 1.5 लाख करोड़ डाॅलर का निवेश करने का अवसर है। न्यू इंडिया तेजी से बदल रहा है और हर क्षेत्र में नवाचार को स्वीकृति मिल रही है।

प्रधानमंत्री मोदी का यह संबोधन इस मायने में महत्वपूर्ण है कि अब चंद दिन बाद ही जी-7 देशों का सम्मेलन होने जा रहा है। प्रधानमंत्री इस सम्मेलन में शिरकत करेंगे। चूंकि इस सम्मेलन में यूक्रेन पर रुसी हमले से निपटने की रणनीति पर चर्चा होनी तय है ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का ब्रिक्स सम्मेलन में विवादित मसलों पर बोलना उचित नहीं होता। अब देखना दिलचस्प होगा कि रुस की मंशा के मुताबिक ब्रिक्स के सदस्य देश आर्थिक साझेदारी के नए आयाम तलाशने में कितना कामयाब हो पाते हंै। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स दुनिया की पांच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का संगठन है जिसमें ब्राजील, रुस, भारत, चीन और दक्षिण अमेरिका शामिल है। ब्रिक्स संगठन की उपलब्धियों और चुनौतियों पर नजर डालें तो 2009 में रुस के शहर येकाटेंरिनवर्ग से शुरु हुई यह यात्रा आर्थिक साझेदारी की उपलब्ध्यिों से भरपूर रही है। चूंकि ब्रिक्स के सदस्य देश उभरती हुई शानदार अर्थव्यवस्थाएं हैं और ऐसे में आने वाले दशकों में अमेरिका और यूरोपिय संघ की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ देते हैं तो आश्चर्य नहीं होगा।

ब्रिक्स के शिखर सम्मेलनों पर गौर करें तो इस संगठन ने कुछ महत्वपर्ण व ऐतिहासिक निर्णए लिए हैं। 13 वें शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष रहे प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिक्स को ताकतवर, जिम्मेदार और जवाबदेह संगठन बनाने की वकालत करते हुए आतंकवाद के खिलाफ मजबूती से लड़ने का आह्नान किया। ब्रिक्स देशों के सभी राष्ट्राध्यक्षों ने एक सुर में 'नई दिल्ली घोषणा पत्र' को मंजूरी देते हुए इंट्रा-अफगान संवाद के जरिए शांतिपूर्ण ढंग से अफगान संकट के समाधान की हामी भरी और अफगानिस्तान को आतंकवाद की पनाहगाह बनने से रोकने की अपील की। 12वें शिखर सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समेत विश्व व्यापार संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार पर जोर दिया गया। इसके अलावा सदस्य देशों के बीच व्यापार-कारोबार क्षेत्र में एकदूसरे की मदद करने, विकास परियोजनाओं का मदद की प्रक्रिया तेज करने, आपसी सहयोग से मौद्रिक नीति को अनुकूल बनाने, प्राकृतिक संपदा का संरक्षण करने तथा पर्यावरण सुरक्षा के प्रति संवेदनशील रुख अपनाने पर सहमति बनी। चीन के शियामेन शहर में संपन्न नौंवे शिखर सम्मेलन में आतंकवाद का मसला जोर-शोर से उठा और पाकिस्तान पोषित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, हक्कानी नेटवर्क और तालिबान पर नकेल कसने की सहमति बनी। इसी तरह गोवा ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स देशों ने संयुक्त राष्ट्र के 'कंप्रिहेंसिव कनवेंशन आॅन इंटरनेशनल टेररिज्म' (सीसीआइटी) के जल्द अनुमोदन के लिए मिलकर काम करने पर सहमति जतायी।

जोहान्सबर्ग सम्मेलन में सदस्य देशों ने एक स्वर में एकतरफावाद को खारिज करते हुए नियम-आधारित विश्व व्यवस्था गढ़ने, बहुपक्षीय संस्थानों को सुदृढ़ता प्रदान करने और अंतर-व्यापार को मजबूती देने की प्रतिबद्धता जाहिर की। इस घोषणापत्र में कट्टरपंथ से निपटना, आतंकवादियों के वित्त पोषण के माध्यमों को अवरुद्ध करना, आतंकी शिविरों को तबाह करना और आतंकी संगठनों द्वारा इंटरनेट के दुरुपयोग को रोकना मुख्य रुप से शामिल रहा। 2013 में डरबन शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने आपातकालीन स्थिति में ऋण संकट से उबरने के लिए 100 बिलियन डाॅलर का एक आपातकालीन कोष बनाने का सपना देखा और उसे 2014 के फोर्टलेजा शिखर सम्मेलन में साकार कर दिया। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स देशों के पास विश्व का 25.9 फीसद भू-भाग एवं 40 फीसदी आबादी है। विश्व में सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान 15 फीसदी है। अच्छी बात यह है कि ब्रिक्स देशों की आर्थिक ताकत लगातार बढ़ रही है। लेकिन राजनीतिक व कुटनीतिक नजरिए से देखें तो ब्रिक्स वर्तमान मत प्रणाली में ब्रिक्स देशों के मत देने का अधिकार उनकी आर्थिक शक्ति के लिहाज से काफी कम है। लेकिन ब्रिक्स बैंक की स्थापना से वैश्विक अर्थव्यवस्था में उनकी धाक मजबूत होगी। कहना गलत नहीं होगा कि ब्रिक्स देशों के पास प्रचुर मात्रा में संसाधन है जिससे वे एकदूसरे का सहयोग कर आर्थिक विकास को नई दिशा दे सकते हैं। चीन विनिर्माण के क्षेत्र में दुनिया में अव्वल है। दुनिया उसकी टेक्नालाजी की कायल है।

रुस के पास उर्जा का असीमित भण्डार है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वह सिरमौर है। ब्राजील कृषि क्षेत्र का महाशक्ति कहा जाता है। भारत कृषि और आईटी दोनों में तेजी से विकास कर रहा है। दक्षिण अफ्रीका प्राकृतिक संसाधनों से लैस है। यह स्थिति ब्रिक्स देशों को मजबूत बनाता है। अगर ब्रिक्स देश आपसी सहयोग दिखाते हैं तो इन देशों में पसरी गरीबी, भूखमरी और कुपोषण जैसी समस्याओं से निपटने में आसानी होगी और वैश्विक राजनीति में उनकी भागीदारी सशक्त होगी। उम्मीद जताया जा रहा है कि 2050 तक ब्रिक्स देशों की स्थिति और अधिक मजबूत होगी। चीन 70.71 मिलीयन डाॅलर के साथ पहला, भारत 37.66 मिलियन डाॅलर के साथ तीसरा, ब्राजील 11.36 मिलियन डाॅलर के साथ चैथा और रुस का 8.58 मिलियन डाॅलर के साथ छठा पायदान पर होगा। निश्चित रुप से ब्रिक्स ने कम समय में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं लेकिन उसके समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं है।

देश-दुनिया के सामने उसके सदस्य देशों का आपसी विवाद जगजाहिर है। अगर इसे दूर नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में ब्रिक्स के समक्ष कई किस्म की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। मसलन भारत के साथ चीन का जटिल सीमा विवाद और तनाव अभी भी बना हुआ है। पाकिस्तान के संदर्भ में चीन की भारत विरोधी नीति और दक्षिण चीन सागर में हाइड्रोकार्बन संपदा के प्रति उसका साम्राज्यवादी रवैया ब्रिक्स के उद्देश्यों को प्रभावित कर सकता है। हालांकि भारत और चीन दोनों देशों के बीच आपसी सहमति से सीमा विवाद को लेकर पसरे तनाव को खत्म करने का प्रयास हो रहा है। ब्रिक्स देशों को समझना होगा कि आपसी विवादों का निपटारा और आतंकवाद के मसले पर समान दृष्टिकोण से ही दक्षिण एशिया में शांति, सहयोग और आर्थिक विकास का वातावरण निर्मित हो सकेगा।

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