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माजिद अली खान (राजनीतिक संपादक)
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रियंका गांधी को नसीहत देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश छोड़ राजस्थान जाकर माताओं को सांत्वना दें। ये योगी जी की नसीहत मानें या प्रियंका गांधी का खौफ। नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शन के दौरान उत्तर प्रदेश में हुई हिंसा पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जारिहाना रवैये ने एकबारगी तो लोगों में दहशत पैदा कर दी थी लेकिन फिर जिस प्रकार कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश का रुख करते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस का शिकार हुए पीड़ितों से मुलाकात करते हुए प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तीर चलाए उससे लोगों के पैदा हुई दहशत चुटकियों में खत्म हो गई।
योगी आदित्यनाथ ने जिस प्रकार पुलिस को प्रदर्शनों को कुचलने का आदेश दिया था और आंदोलनकारियों से बदला लेने तक की बात कही थी जिस पर राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना की गई थी उस समय पर प्रदेश की जनता खासतौर से नागरिकता कानून के विरोधी लोग बहुत असहाय महसूस कर रहे थे। उस समय उन्हें एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत थी जो योगी आदित्यनाथ को उनकी ही भाषा में जवाब दे सके तथा निरंकुश हो चुकी पुलिस के खिलाफ भी मोर्चा खोल सके।
उत्तर प्रदेश में पिछले तीस साल से सत्ता पर काबिज़ रहने वाले तथा प्रमुख रूप से राजनीति करने वाले राजनीतिक दल सपा बसपा के नेता अखिलेश यादव और मायावती ने उत्तर प्रदेश की जनता को मायूस कर दिया। इस स्थिति को कांग्रेस ने समझा तथा प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश में भेजा जिसकी वो प्रभारी भी हैं। प्रियंका गांधी ने जिस तरह मंझे हुए तेवर के साथ लखनऊ, मेरठ और बिजनौर में जाकर पीड़ितों का हालचाल जाना और योगी आदित्यनाथ को नसीहते देते हुए उनकी भाषाशैली पर कटाक्ष किये उससे लोगों में एक नयी ऊर्जा का संचार हुआ।
प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश में सक्रिय होते ही उन्हें अगला मुख्यमंत्री के रूप में लोग चर्चा में लाने लगे। लोगों के बीच अक्सर ये बहस होने लगी कि अब राज्य को प्रियंका गांधी की जरूरत है क्योंकि अखिलेश और मायावती शायद गृहमंत्री अमितशाह के खौफ से उबर नहीं पाए हैं। लोग मुखर होकर ये बातें कह रहे हैं कि मायावती को सीबीआई कख डर है तथा अखिलेश को अपने खानदान वालों के जेल जाने का डर है। उत्तर प्रदेश का दलित समाज जिस पर मायावती का एकाधिकार रहा है अब मायावती के नेतृत्व से खुश नहीं है। मायावती ने भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर के नागरिकता कानून को लेकर जामा मस्जिद दिल्ली पर प्रदर्शन और फिर गिरफ्तार होने को लेकर भी खूब आलोचना की जिस पर दलित समाज मायावती की आलोचना करने को मजबूर हो गया। दलित समाज के लोग भी मुखर होकर प्रियंका गांधी के रुख से संतुष्ट हैं और वो सोच रहे हैं कि नागरिकता कानून दलितों के लिए बहुत नुकसानदेह है और इसे खत्म करने के लिए कांग्रेस का केंद्र में आना बहुत जरूरी है।
खुद प्रियंका गांधी ने भी अखिलेश और मायावती को मैदान में आकर नागरिकता कानून के खिलाफ लड़ने के लिए बोला था। इस पर अखिलेश यादव ने अपने विधायकों को नागरिकता कानून के विरोध के लिए साइकिल रैली निकालने के लिए कहा। लेकिन अब तक बहुत देर हो चुकी थी। प्रदेश का मुस्लिम और दलित वोटर मन ही मन कांग्रेस को संकटमोचक समझ रहा है और प्रियंका गांधी के रूप में प्रदेश के नये नेतृत्व की प्रतीक्षा कर रहा है। प्रियंका गांधी जिस प्रकार राजघाट पर उपवास रखने के लिए बैठी, उससे पहले इंडिया गेट पर धरने के लिए पहुंची उससे भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में बेचैनी पैदा हो गई थी और प्रधानमंत्री को खुद रामलीला मैदान में आकर एनआरसी के खिलाफ बोलना पड़ा।
इसके बाद प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश का रुख किया और सरकार के साथ मुख्यमंत्री योगी को भी आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया। मुख्यमंत्री योगी प्रियंका गांधी के इस रुख से सहमें हुए हैं। अखिलेश और मायावती के नरम रुख से योगी आदित्यनाथ बहुत अच्छा महसूस कर रहे थे और बहुत ही दबंग रवैया अपनाए हुए थे लेकिन प्रियंका गांधी ने योगी आदित्यनाथ को रवैया बदलने पर मजबूर कर दिया। बिजनौर में दरोगा समेत छह पुलिस वालों पर हुए हत्या के मुकदमे से पुलिस पर भी लगाम कसी गयी है। अब योगी आदित्यनाथ बहाना ढूंढ रहे हैं कि किसी प्रकार प्रियंका गांधी को राज्य से दूर रखा जाए।
राजस्थान में कोटा के एक अस्पताल में बच्चों की मौत पर बोलते हुए योगी आदित्यनाथ ने प्रियंका गांधी को राजस्थान जाने की नसीहत दी और उत्तर प्रदेश छोड़ने को कहा। योगी आदित्यनाथ को पता होना चाहिए कि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं। अगर प्रियंका गांधी ऐसे ही तेवरों के साथ प्रदेश में सक्रिय रहती हैं तो कोई आश्चर्य नहीं कि कुछ ऐसे परिणाम आएं जो अचंभित करने वाले हों।