अजब गजब

क्या धरती को भी निगल सकता है ये अंतरिक्ष में बसा ब्लैकहोल

Shiv Kumar Mishra
4 July 2020 1:16 PM GMT
क्या धरती को भी निगल सकता है ये अंतरिक्ष में बसा ब्लैकहोल
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ब्रह्मांड में एक ब्लैकहोल ऐसा भी है जो रोज एक सूरज निगल जाता है। यह ब्लैकहोल हमारे सूर्य का 3,400 करोड़ गुना है। खास बात यह है कि करोड़ों सूर्य की रोशनी सोखने वाला यह सुपरमैसिव ब्लैकहोल जे2157 बस एक ही माह में दोगुने आकार का हो जाता है।

यह ब्लैकहोल ब्रह्मांड के सबसे बड़े ब्लैकहोल एबेल 85 से बस कुछ ही छोटा है, जिसका वजन 4,000 करोड़ सूर्य के बराबर है। ऑस्ट्रेलियाई नेशनल यूनिवर्सिटी के एक नए शोध के मुताबिक, यदि मिल्की वे का यह ब्लैकहोल इसी तरह से बढ़ता रहा तो यह हमारी आकाशगंगा के दो तिहाई तारों को निगल जाएगा।

धरती से 120 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर यह ब्लैकहोल सैजिटेरियस ब्लैकहोल से आठ हजार गुना ज्यादा बड़ा है। सैजिटेरियस मिल्की वे के एकदम केंद्र में है। अध्ययन के मुताबिक, एक ब्लैकहोल कितने सूर्य या तारों को खाएगा, यह इस पर निर्भर करता है कि यह कितना बड़ा हो चुका है। यह ब्लैकहोल पहले ही इतना विशालकाय हो चुका है कि हर दस लाख साल में एक फीसदी बढ़ जाता है।

भीतर की गैसों को भी पीता है सबसे चमकदार ब्लैकहोल

यह ब्लैकहोल ब्रह्मांड का अब तक का सबसे चमकदार ब्लैकहोल है। इसे खोजने वाले क्रिश्चियन वुल्फ ने कहा, जितनी तेजी से यह बढ़ रहा है, उसी के साथ ही यह हजार गुना ज्यादा चमकदार होता जाता है। वजह यह है कि यह रोजाना अपने भीतर पैदा होने वाली सभी गैसों को पी जाता है। इससे बड़े पैमाने पर ऊर्जा और घर्षण पैदा होता है।

मरते तारे से ब्लैकहोल के जन्म और वजन का पता लगाया

मरते हुए तारे की प्रक्रिया के आधार पर जापान के भौतिकी के शोधकर्ताओं ने ब्लैकहोल की उत्पत्ति और उसके अधिकतम वजन का पता लगाने में कामयाबी पाई है। लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेब ऑब्जर्वेटरी (लिगो) और विर्गो इंटरफेरोमीट्रिक ग्रैविटेशनल वेब एंटीना (विर्गो) के जरिये गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि जीडब्ल्यू 170729 नाम के ब्लैकहोल में और तारों के समाने से पहले ही यह करीब 50 सूर्य के वजन (भार) के बराबर है। यह एक ब्लैकहोल में समा जाता है, जिससे सुपरनोवा विस्फोट होता है।

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