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क्या आप जानते है, मंत्री बनाने की प्रथा की शुरुआत कैसे हुई!
प्राचीन काल की बात है। एक छोटी सी रियासत के फक्कड़ राजा ने अपने साले की सिफारिश पर किसी योग्य बताए गए व्यक्ति को मौसम विभाग का मंत्री बना दिया।उन दिनों मौसम का मामला बहुत महत्वपूर्ण हुआ करता था। राजा के काम के बाद सबसे महत्वपूर्ण यह समझना और अंदाजा लगाना होता था कि मौसम कैसा रहेगा, बारिश होगी कि नहीं, समुद्र में तूफान कब आएगा आदि आदि।
राजा ये सूचनाएं प्रजा को देता तो प्रजा अपने जीने-खाने का इंतजाम करती। कहा तो आज भी जाता है, सारी दुनिया एक तरफ जोरू का भाई दूसरी तरफ। सो राजा जी ने जोरू के भाई की सिफारिश पर एक व्यक्ति को अपना सबसे महत्वपूर्ण काम सौंप दिया। उसे मंत्री कहा गया। राजा साहब के पास अब काम कम था। फुर्सत में थे सो शिकार पर जाने की योजना बनाई।
शिकार पर जाने से पहले अपने नए नवेले मंत्री से मौसम की भविष्य वाणी पूछी। मंत्री जी बोले "ज़रूर जाइए, मौसम कई दिनों तक बहुत अच्छा है!" राजा थोड़ी दूर ही गया था कि रास्ते में एक कुम्हार मिला - वो बोला, "महाराज तेज़ बारिश आने वाली है... आप कहाँ जा रहे हैं?" अब मंत्री के मुक़ाबले कुम्हार की बात क्या मानी जाती, उसे वही चार जूते मारने की सज़ा सुनाई और आगे बढ़ गये।
वही हुआ... थोड़ी देर बाद तेज़ आँधी के साथ बारिश आई और जंगल दलदल बन गया, राजा जी जैसे तैसे महल में वापस आए, पहले तो उस मंत्री को बर्खास्त किया. फिर उस कुम्हार को बुलाया - इनाम दिया और मौसम विभाग के मंत्री पद की पेशकश की - कुम्हार बोला, "हुज़ूर मैं क्या जानू, मौसम-वौसम क्या होता है?" वो तो जब मेरे गधे के कान ढीले हो कर नीचे लटक जाते हैं, मैं समझ जाता हूँ वर्षा होने वाली है, और मेरा गधा कभी ग़लत साबित नहीं हुआ!
राजा ने तुरंत कुम्हार को छोड़ कर उसके गधे को मंत्री बना दिया। तब से ही दुनिया के कई देशों में किसी को भी मंत्री बनाने की प्रथा चली आ रही है! चाहे वो जानता हो या कुछ नहीं जानता हो उसे मंत्री पद मिल जायेगा वशर्ते वो सरकार बनाना और बिगाड़ना जानता हो.