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हमें बचपन से ही अजनबियों पर भरोसा नहीं करना सिखाया जाता है. अजनबियों से बात नहीं करनी है. उनसे कुछ लेकर नहीं खाना है. हम ये बातें सफ़र करते हुए, नई जगह सेटल होने के दौरान, नए लोगों से मिलते हुए फॉलो करते हैं. मैं भी पढ़ाई के लिए मेरठ से दिल्ली रहने आई. मम्मी ने ख्याल रखने की नसीहत के साथ अजनबियों से सावधान वाला संशय मेरे दिमाग में मजबूत बनाया. लड़की होने के नाते तो हमें इस बात का ख्याल रखना ही पड़ता है. मैंने दिल्ली में पीजी में रहना चुना. वैसे भी छोटे शहर के मध्यवर्गीय परिवार की लड़की का महानगर में रूम लेकर अकेले रहना ख्वाबों की बातें है.
मुझे लक्ष्मीनगर में पीजी मिला, जिसका नाम अग्रवाल गर्ल्स होम (नाम बदला हुआ) था. पीजी एक आंटी अपने घर के ऊपर के तीन फ्लोर्स पर चलाती थीं. मैं पहली बार घर से अपना सामान लेकर पीजी पहुंची तो आंटी का रूखा व्यवहार देखकर गुस्सा आया.
मैं रात भर सोचती रही कि आखिर कैसे कोई इंसान से मशीनी बर्ताव कर सकता है, उनके लिए मैं जीती-जागती लड़की नहीं, सिर्फ महीने के 3500 रुपए थी.
मुझे थ्रीसीटर रूम मिला, जिसमें मेरे अलावा 2 और लड़कियां पहले से रह रहीं थी. जब आंटी ने मुझे उन दोनों से मिलवाया तो उन्होंने भी भाव नहीं दिया. जिसे देखकर मैंने सोचा कि अब तो यहां रहना और मुश्किल होने वाला है. उनमें से एक, अलका मुंबई की रहने वाली थी और किसी ट्रेनिंग के लिए दिल्ली में सिर्फ 6 महीने के लिए आई थी. दूसरी, विजेता दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेज से ग्रेजुएशन और सिविल सर्विसेज के लिए तैयारी कर रही थी.
ये कहानी तब शुरू हुई जब अपना सामन खोलते हुए मुझे बचपन से सिखाई हुई वो बात याद आ गई कि अजनबियों से बचकर रहना है. बस फिर क्या था, अपना सारा कीमती सामान, पैसे और खाने के सामान को मैंने ताले मेंं रखा. मैं लगातार उन दोनों पर नज़र रखती. कहीं उनमें से कोई मेरा सामान चुराने की कोशिश तो नहीं कर रही.
मैं बाज़ार जाकर बड़ा ताला लाई और उसे अलमारी पर लटका दिया. उन दोनों को मेरी इन हरकतों का कोई अंदाजा नहीं था.
मैं सुबह कॉलेज जाती और वापस लौटते ही सबसे पहले ताला खोलकर अपना सारा सामन चेक करती. अजनबी वाली सीख के चलते न मैं उनसे बात करती और न ही उनकी बातचीत में शामिल होती. वो अपनी बातें करके हंसती तो मुझे लगता वो मेरा मजाक उड़ा रही हैं. फिर एक दिन कॉलेज से घर लौटकर मैं अपना सामन चेक कर रही थी. विजेता ने मुझसे पूछा (हंसते हुए) मैं रोज़ ऐसा क्यों करती हूं? मेरे मन में इतने सारे शक पहले से बैठे थे कि मैंने रूड होकर उसे कह दिया, उसे इस बात से क्या मतलब है? उसने कुछ भी नहीं कहा. मुस्कुराते हुए चली गई.
मैं बस से कॉलेज जा रही थी. 2 लड़कों ने मुझे अजीब तरह से घूरा और फिर घिनौने स्पर्श से मुझे छूकर बस से उतर गए. मेरे मुंह से एक शब्द नहीं निकला. अगले स्टॉप पर बस से उतर कर मैं वापस पीजी आ गई.
मेरठ में भी लड़के घूरते और सीटी बजाते थे लेकिन ऐसे सरेआम छूकर, मुस्कुराकुराकर चले जाते लड़कों का ये मेरा पहला एक्सपीरियंस था.
मैं भी उन्हें इग्नोर करते हुए उठी. बाहर जाने के लिए जैसे ही कदम उठाया पूरी दुनिया घूमी और मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया.
जब मेरी आंख खुली तो विजेता मेरे सिरहाने खड़ी थी. अलका मेरे माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां रख रही थी. मुझे लगा जैसे ये सपना है और मेरी आंखें फिर बंद हो गईं. फिर मेरी आंख खुली तो रात के 3 बजे थे. विजेता-अलका तब भी ऐसे ही मेरे पास बैठी थीं. विजेता ने मुझे सहारा देकर बिठाया और आंटी को आवाज़ दी. मुझे भरोसा नहीं हुआ कि आंटी 5 मिनट बाद सूप बनाकर लाईं और मुझसे पीने के लिए कहा. अलका ने देखा कि मैं खुद सूप नहीं पी पा रही हूं. उसने मुस्कुराते हुए कटोरा मेरे हाथ से ले लिया और कहा, लाओ मैं पिला देती हूं. विजेता ने दवा दी और मैं फिर सो गई.
अगले दिन मेरी आंख खुली तो सुबह के 11 बज चुके थे, फीवर उतर गया था. सर अब भी बहुत भारी था. मैं उठकर रूम से बाहर आई तो देखा, अलका, विजेता और आंटी तीनों ही सामने सोफे पर बैठे हुए थे. मुझे आता देख आंटी ने डांट लगाते हुए कहा, बेटा हमें आवाज़ दे देतीं, हम अन्दर आ जाते. वे तीनों रात भर जागे और अलका, विजेता ने मेरा ख्याल रखने के लिए कॉलेज जाना कैंसिल कर दिया था. शाम में हम तीनों ब्लड टेस्ट कराने गए और उसमें कुछ भी नहीं निकला. अगले दिन मैं ठीक थी. मैंने कॉलेज जाना ठीक समझा और तैयार होने लगी. विजेता ने देखा तो कहा, जा सकती हो तभी जाओ नहीं तो आराम करो. अलका भी निकलने की तैयारी में थी.
जाते-जाते वे एक पर्ची थमा गईं जिस पर उन दोनों का मोबाइल नंबर लिखा था. निकलते हुए मेरे सिर पे हाथ फेरा और कहा, कोई भी जरुरत हो बे-झिझक कॉल कर लेना.
मैं नहाकर निकली तो दोनों जा चुकी थी. अचानक मुझे उनकी कमी महसूस होने लगी. मुझे लगा कितना कुछ है जो उन्हें बताना और उनसे पूछना है. मैं बीते इन दिनों में कितना कुछ मिस कर चुकी हूं. सोचते-सोचते आंसू टपकने लगे.
विजेता थक कर कॉलेज से लौटी. अलका भी कुछ ही देर में आ गई. मैं आंटी को कॉलेज के किस्से सुना रही थी और उनके हंसने की आवाज हमारे कमरे में गूंज रही थी.
विजेता ने पहले मुझे देखा और फिर मेरी अलमारी को. अब वहां अजनबियत का कोई ताला नहीं था.
पीजी आकर मैं खूब रोई और सो गई. सोकर उठी तो सर दर्द से भारी था. फीवर हो गया था. नया शहर, न कोई दोस्त और न मैं किसी को जानती थी. विजेता और अलका बैठी कुछ बातें कर रही थीं उन्हें मेरे सोने-जागने से कोई फर्क नहीं पड़ा.
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