बिहार में महागठबंधन की सरकार से जद यू के अलग होने के फैसले के बाद पार्टी का चुनाव चिन्ह तीर छाप पर कब्जा को लेकर शरद यादव द्वारा छेड़ी गयी जंग में फिलहाल नीतीश कुमार को फतह हासिल हो गयी है और भारत के निर्वाचन आयोग ने शरद यादव गुट को धीरे से लेकिन जोर का झटका दिया है. शरद यादव के राजनीतिक जीवन के इतिहास में यह शायद यह पहली और बड़ी घटना हे जिसमे खुद को समाजवादी कहलाने वाले शरद यादव को इतना बड़ा झटका लगा है.
गौर तलब है कि आज से 17 वर्ष पहले पार्टी में वर्चस्व को लेकर लालू और शरद के बीच चली जंग में लालू प्रसाद यादव ने पार्टी का चुनाव चिन्ह पर दावा छोड़ राजद बनाया था तो समता पार्टी का जद यू में विलय के बाद नीतीश ने भी समता पार्टी के मशाल चुनाव चिन्ह को छोड़ शरद का दामन पकड़ा था. लेकिन इस बार नीतीश से अलग हेने के बाद शरद की तीर पर कब्जा करने की रणनीति फेल कर गयी और नीतीश के तीर से शरद फिलहाल घायल हो गये हैं. चुनाव आयोग के फैसले के बाद शरद यादव की नीतीश के बिहार से बाहर बेदखल करने के अभियान को तो गहरा धक्का लगा ही है आने वाले चुनाव में नये चुनाव चिन्हे पर चुनाव लड़ने या फिर राजद मे शामिल होने के अलावे शरद के पास कोई विकल्प भी नही है.
यानि बिहार से बाहर तीर छाप के नाव पर राजनीति करने वाले शरद के समर्थको को तीर का तो मोह छोड़ना ही पड़ेगा नये चुनाव चिन्ह के साथ चुनाव मैदान में जाना किसी बड़े जोखिम से कम नही. नीतीश के लिये आज का दिन बेहतर इस मायने में कह सकते हैं कि शरद यादव के खिलाफ वगैर कोई कठोर कदम उठाये उन्होनें शरद और उनके तथाकथित समर्थको से मुक्ति तो पा ही ली है पार्टी में फूट की संभावना भी खत्म हो गयी है और एक छत्र कब्जा भी हो गया है.
शरद की इस हार का असर बिहार की राजनीति पर भी पड़ने की संभावना है. फिलहाल शरद तो जद यू के झंडे से अलग होगे ही उनकी राजनीतिक दावेदारी पर भी असर पड़ेगा और खासकर शरद के कंधे पर बंदूक रखकर जद यू को तोड़ने की मंशा पालने वाले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के लिये आने वाले दिनों में शरद यादव राजनीति के गले की हड्डी भी बने तो कोई आश्चर्य नही . फिलहाल देखिये आगे - आगे होता है क्या.