...जब स्वरा भास्कर ने पीरियड्स के बारे में पापा को बताया, तो मिली ये सीख
स्वरा भास्कर
मुंबई : मैं उस समय दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ा करती थी। मुझे अच्छी तरह याद है वो गर्मी के मौसम की एक उमस भरी दोपहर थी। मैं स्कूल से घर आई और खुद को कमरे में बंद कर लिया। कमरे के एक कोने में बैठकर में अपने भाग्य को कोस रही थी। मेरे दिमाग में सिर्फ एक ही बात घूम रही थी कि मैं कितनी बदकिस्मत हूं क्योंकि मेरा जन्म एक लड़की के रूप में हुआ है।
उस वक्त मेरी उम्र 14 साल थी और मैं नौंवी कक्षा में पढ़ती थी। उसी समय मेरे पीरियड्स शुरू हुए थे. इत्तेफाक से उसी समय मुझे वार्षिक लीडरशिप ट्रेनिंग कैंप पर जाना था। मेरे पीरियड्स के शुरुआती दिन थे और कैंप पर जाना भी जरूरी था। एलटीसी कैंप पर जाना बड़ी बात थी। मैं बहुत समय से इस कैंप में जाना चाहती थी और अब जब मुझे मौका मिला तो...
जब मुझे पता चला कि इस कैंप में जाने के लिए मेरा चयन हो गया है मैं खुशी से फूली नहीं समां रही थी। मैं स्कूल के बरामदे से गुजर रही थी कि मेरी यूनिफॉर्म पर वो धब्बा साफ नजर आने लगा। धब्बे के आगे मेरा सारा उत्साह ठंडा पड़ चुका था। मैंने दुखी होकर दोपहर बाद का समय घर में बिताया। शाम को मेरे पापा घर लौटे। (तब मेरी मां न्यूयॉर्क में पीएचडी कर रही थीं इसलिए मेरे और पापा के बीच जरूरत की वजह से मासिक धर्म को लेकर अच्छी समझ विकसित हो गई थी)
उन्होंने मेरे लटके हुए मुंह को देखकर पूछा तो मैंने उन्हें बता दिया कि मुझे अगले दिन और उसके एक दिन बाद होने वाले एलटीसी को छोड़ना पड़ेगा।
उन्होंने पूछा, 'क्यों?'
मैंने कहा, 'क्योंकि मेरे पीरियड्स शुरू हो रहे हैं।'
उन्होंने कहा, 'तो? इससे क्या हुआ?'
मैंने कहा, 'इसलिए मैं नहीं जा सकती।'
उन्होंने फिर पूछा, 'क्यों?'
मैंने कहा, 'क्योंकि वे मेरे शुरुआती दो दिन होंगे।'
उन्होंने फिर कहा, 'तो? इससे क्या?'
मैंने सीधा जवाब दिया, 'मैं अपनी उस हालत में कठिन काम नहीं कर सकती। मैं दौड़-दौड़कर खेल नहीं सकती।'
मेरे पापा ने पूछना जारी रखा, 'इसका मतलब है कि तुम कहना चाहती हो कि ऐसे समय में तुम शारीरिक और चिकित्सकीय वजहों से शारीरिक गतिविधियों के लिए सक्षम नहीं हो?'
मैंने कहा, 'हे भगवान, पापा आप समझते क्यों नहीं? यह चिढ़ पैदा करने वाला और तकलीफदेह है। अगर 'कुछ हो जाएगा' तो क्या होगा?' (यह एक ऐसी दहशत होती है जो सभी लड़कियों और महिलाओं को अपने में जकड़े रहती है)
पापा ने सोचते हुए कहा, 'अच्छा, इसका मतलब है कि तुम सिर्फ 'कुछ हो जाएगा' के डर से कल का कार्यक्रम छोड़ रही हो। अगले माह इस अवधि में फिर कोई काम आएगा तो उसे भी छोड़ोगी। अभी तुम 14 साल की हो. संभवत: अगले 30 साल तक तुम्हें मासिक धर्म आएगा। इस दो दिन के हिसाब से गणना करो तो करीब 720 दिन, 17280 घंटे तुम्हें छोड़ने होंगे। वह भी सिर्फ इस डर से कि 'कुछ हो जाएगा।'
मेरे पास उनकी इस बात का कोई जवाब नहीं था।
पापा ने कहना जारी रखा, 'देखो, तुम्हारी मां इन बातों को बेहतर तरीके से समझा सकती है। मैं एक पुरुष हूं और मुझे यह थोड़ा हास्यास्पद लग रहा है कि एक प्राकृतिक बात की वजह से मैं इतने घंटे बर्बाद कर दूं। एक ऐसी बात जो दुनिया की आधी आबादी के जीवन में हर महीने किसी न किसी समय सामने आती है।'
उन्होंने कहा, 'यह तुम्हारे शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया है। इससे नफरत करने या इससे डरने की जगह, इसे स्वीकार करो। इन दो दिनों या पांच दिनों को भी तुम महीने के सामान्य दिनों की तरह लो।'
मैंने पापा से 150 रुपये लिए। मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल करने के लिए पैड खरीदे। तब से अब तक मैं पापा की उस सीख पर अमल कर रही हूं।
शुक्रिया पापा, आपने उस दिन अपनी बेटी को एक मूल्यवान सीख दी-अपने शरीर को अपनाने की सीख। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और हमें इन पांच दिनों को इसी रूप में लेना चाहिए।