राजस्थान के बाड़मेर ब्रांच में एक फ्राड हुआ है जिसके बारे में सीबीआई ने केस दर्ज किया है। आरोप है कि वरिष्ठ ब्रांच मैनेजर ने 26 मुद्रा लोन के आवंटन में फ्राड किया है। 62 लाख रुपये का लोन ग़लत तरीके से दिया गया है। आरोप है कि मुद्रा लोन देने से पहले बैंक ने पूछताछ और जांच की प्रक्रिया पूरी नहीं की।
बैंकों के कई कर्मचारियों ने मुझे बताया है कि मुद्रा लोन के बंटवारे में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। सरकार अपने विज्ञापनों में आंकड़े बता सके इसलिए मैनेजरों को मजबूर किया गया है कि वे जल्दी जल्दी मुद्रा लोन दें। उन्हें लोन के बंटवारे का टारगेट दिया गया। एक बैंकर ने बताया कि कई खाताधारकों को पता भी नहीं होगा, उनके नाम भी मुद्रा लोन धारकों में गिना जा चुका है। हम सब बैंकिंग की प्रक्रिया को समझ नहीं पाते हैं इसलिए लिखने में भी सावधानी बरतनी पड़ती है।
मगर कई बैंकरों से बात कर समझ आ गया कि मुद्रा लोन के बंटवारे को लेकर सरकार जो दावे कर रही है वो सही नहीं है। किसी बैंक के चेयरमैन में हिम्मत है कि सही बात बोल दे। यही नहीं कुछ बैंकरों ने तो यह भी बताया कि उन्हें अटल पेंशन योजना का टारगेट दे दिया गया। ग़रीब आदमी वो भी लेने में सक्षम नहीं है लिहाज़ा बैंकरों से कहा गया कि वे अपने नाम या परिवार के नाम अटल पेंशन योजना ख़रीदें और बीमा भरें। यह सब इसलिए ताकि ऊपर के स्तर पर आंकड़ा बड़ा दिखे और दावे के साथ बोला जा सके कि इतने करोड़ लोगों को मुद्रा लोन दिया गया और इतने करोड़ लोगों को अटल पेंशन योजना के तहत बीमा दिया गया।
आलम यह है कि जो जागरूक ग्राहक है वो दोबारा बैंक लौटता है। बैंकर से झगड़ा करता है, गाली देता है कि जब हमने बीमा मांगा नहीं तो कैसे कर दिया। बैंकर गाली सुन लेता है। चुप रहता है क्योंकि अगर उसका टारगेट पूरा नहीं हुआ तो दूर किसी जगह पर तबादला कर दिया जाएगा। एक अध्ययन यही हो जाए कि कितने लोगों ने बीमा पालिसी लेकर इसका प्रीमियम देना बंद कर दिया तो हकीकत सामने आ जाएगी।
अटल पेंशन योजना का प्रीमियम भी बड़ी संख्या में लोगों ने देना बंद कर दिया है। बैंक की बीमा पॉलिसी की सर्विस बहुत ख़राब है। इससे होता यह है कि बीमा कंपनी की जेब में एक दो प्रीमियम का पूरा पैसा चला जाता है। पालिसी बंद हो जाने से उन्हें फायदा ही होता है। फ्री के दस हज़ार या पांच सौ जेब में आ गए।
कुछ बैंकरों ने बताया कि उनके बैंक ने बिना उनकी जानकारी के अटल पेंशन योजना की प्रीमियम काट लिया। 350 रुपये का प्रीमियम। पूछने पर जवाब मिला कि ऊपर का आदेश है। बैंकर चुप हो गए। सवाल है कि क्या यह योजना बैंकरों या मिडिल क्लास के लिए थी? नहीं। तो फिर किस लिए बैंकरों को बेच कर दिखाया गया कि इस योजना को इतने लाख करोड़ लोगों ने लिया है।
यह सब मैं बैंकरों से बात करने के बाद लिख रहा हूं। अब वे धीरे धीरे साझा कर रहे हैं। उन्हें अगर मीडिया से बात करने में डर लग रहा है तो अपने घर में, रिश्तेदारों को, मोहल्ले में और बस ट्रेन में लोगों को बताना चाहिए कि आपकी जमा पूंजी कैसे दबाव डाल कर हवा हो रही है।
बैंक में यह धांधली सबको मालूम है। उच्च स्तर के अधिकारी दो से तीन प्रतिशत हैं। उन्हें बीमा का कमीशन मिल रहा है। विदेश यात्राएं मिल रही हैं और वे सरकार के डर से चुप हैं। कर्मचारी और ब्रांच मैनेजर स्तर के अधिकारी पिस रहे हैं। वो अपनी आंखों से देख रहे हैं कि क्या हो रहा है, मगर ज़बान पर तबादले और बर्ख़ास्तगी के डर ने ताला लगा दिया है।
आपके संपर्क में जो बैंकर हैं, उनसे इन बातों की जांच कर सकते हैं। कोई साहसी और निष्पक्ष संस्था तो है नहीं वरना मुद्रा लोन और अटल पेंशन योजना की सही से ऑडिट हो जाती तो पोल खुल जाता। ज़रूरी नहीं है कि जो रिकार्ड पर कहा जाए वही सही हो, आप ख़ुद से भी पता कर सरकारी दावों पर चुपचाप मुस्कुरा सकते हैं। आपको यह भी पता चलेगा कि यह घोटाला बैंकरों से कराया गया है। उन्हें मजबूर किया गया है कि वे पालिसी बेचें या किसी को लोन दें।
आपको लगता है कि यह सही नहीं है तो इसका प्रिंट आउट लीजिए और किसी भी बैंकर से पूछ लीजिए। वो नहीं भी बोलेगा तो भी पता चल जाएगा कि मैंने जो लिखा है वही सही है। ताकत और भय के दम पर बात दबाई जा सकती है, बात मिटाई नहीं जा सकती। आख़िर सच बाहर आ ही गया न।