कोरोना के ज़ख्मों से अर्थव्यवस्था को उबरने में कितना वक़्त लगेगा?

Update: 2020-05-13 15:40 GMT

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दुनिया के तमाम देशों में अब लॉकडाउन में ढील दी जा रही है.अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी IMF ने कहा है कि इस साल दुनिया की अर्थव्यवस्था में 3 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज होगी. यह इसके पहले के अनुमान से बिल्कुल उलट है, जब इसने कहा था कि इस साल ग्लोबल ग्रोथ रेट 3 फ़ीसदी रहेगा.

दुनिया अब 1930 की महामंदी के बाद की सबसे बड़ी आर्थिक गिरावट का सामने करने की तैयारी में है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ग्लोबल अर्थव्यवस्था की यह गिरावट कब थमेगी? अगर रिकवरी होगी तो यह कैसी होगी?

मंदी क्या है?

ज़्यादातर देश मंदी की इस परिभाषा को मान्यता देते हैं कि अगर जीडीपी में लगातार दो तिमाहियों के दौरान गिरावट दर्ज की गई है तो इसका मतलब यह कि अर्थव्यवस्था मंदी से घिर गई है.

द यूएस नेशनल ब्यूरो ऑफ इकनॉमिक रिसर्च (NEBR) का कहना है, "पूरी अर्थव्यवस्था में अगर आर्थिक गतिविधियों की गिरावट कुछ महीनों से ज़्यादा वक़्त तक चलती रहती है तो यह मंदी है. यह गिरावट रियल जीडीपी, रियल इनकम, रोज़गार, औद्योगिक उत्पादन और थोक-खुदरा बिक्री में गिरावट के तौर पर दिखती है".

आईएमएफ़ ने अपने पूर्वानुमान में कहा है कि कोविड-19 का सबसे ख़राब असर अब दिख रहा है. यानी 2020 की दूसरी तिमाही में.

अर्थव्यवस्था पर पड़ा यह असर दूसरी छमाही में ही घटेगा. जैसे-जैसे कारोबार खुलेंगे और उनकी रफ़्तार बढ़ेगी, वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था झटकों से उबरेगी.

अगर लॉकडाउन दूसरी छमाही में भी जारी रहा तो और ज़्यादा उद्योग-धंधे बंद होंगे तो इससे भी ज़्यादा लोगों को बेरोज़गारी का सामना करना पड़ेगा. मंदी अभी जितनी दिख रही है उससे भी दोगुनी हो जाएगी. साथ ही रिकवरी की रफ़्तार भी ज़्यादा धीमी हो जाएगी.

लिहाज़ा, हमें हर उस तरह की मंदी का सामना करना पड़ेगा, जिसे अर्थशास्त्री अंग्रेजी के V, U, W और L अक्षरों से दिखाते हैं. मंदी और रिकवरी को समझाने के लिए अर्थशास्त्री इन अक्षरों के आकार में बने मॉडल का सहारा लेते हैं.

चिली की कैथोलिक यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री जोस टेसाडा का कहना है कि दरअसल इन अक्षरों के आकार वक़्त के साथ जीडीपी में आने वाले परिवर्तन को दिखाते हैं. 

V यानी आदर्श स्थिति

V यानी सबसे अच्छी स्थिति. सबसे बेहतर परिदृश्य. यह बताता है कि अर्थव्यवस्था तेज़ी से सीधे नीचे गिर रही है लेकिन बिल्कुल नीचे जाने के बाद यह तेज़ी से सीधे ऊपर भी उठ रही है.

प्रोफेसर टेसाडा कहते हैं, "इसका मतलब यह है कि अर्थव्यवस्था उस स्तर पर तेज़ी से लौट रही है, जहां आर्थिक गतिविधियां मंदी से पहले सक्रिय थी. यानी मंदी तुलनात्मक तौर पर कम वक़्त के लिए थी. फिर V आकार में मंदी और रिकवरी को दिखाने का मतलब यह भी होता है कि रिकवरी होने तक मंदी कुछ और तिमाहियों तक जारी रह सकती है."

वह कहते हैं, "अगर हम महामारी (कोविड-19) को रोक सके तो हमारे सामने V आकार की मंदी होगी. इसका मतलब यह कि अब आप प्रतिबंधों को हल्का करने जा रहे हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियां रफ़्तार पकड़ेंगीं और ग्रोथ अपने पुराने स्तर पर लौट सकेगी."

एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग, न्यूयॉर्क के चीफ इकोनॉमिस्ट पॉल ग्रन्वॉल्ड ने बीबीसी से कहा, "अगर सोशल डिस्टेसिंग ख़त्म होने लगे, कोरोनावायरस के ख़ात्मे के लिए कोई वैक्सीन ईजाद हो जाए या फिर इसका इलाज मिल जाए तो अर्थव्यवस्था फिर तेज़ी से पटरी पर आने लगेगी.

एसएंडपी का अनुमान है कि 2020 की दूसरी तिमाही में ग्लोबल अर्थव्यवस्था में 9 फ़ीसदी की तेज़ गिरावट दर्ज होगी. इस वक्त, वह अर्थव्यवस्था के तेज़ी से पुरानी रफ़्तार में लौटने के प्रति उतने आश्वस्त नहीं दिखते.

U: सबसे ज़्यादा संभावित स्थिति

एसएंडपी के अनुमान के मुताबिक़ 2020 में ग्लोबल अर्थव्यवस्था में 2.4 फ़ीसदी की गिरावट आएगी. 2021 में आर्थिक विकास दर 5.9 फीसदी रह सकती है.

ग्रन्वॉल्ड कहते हैं, "मंदी की जो स्थिति अब दिख रही है वह U के आकार जैसी है. मतलब अर्थव्यवस्था लगातार लग रहे ज्यादातर झटकों से उबर तो जाएगी, लेकिन रिकवरी की गति धीमी होगी."

न्यूयॉर्क में मूडीज़ इनवेस्टर्स सर्विसेज की एलेना डगर इस बात से सहमत हैं. मूडीज़ के ताज़ा अनुमान में कहा गया है कि कोविड-19, 2021 में पूरे साल अर्थव्यवस्था को 'ज़ख्म' देती रहेगी.

बीबीसी मुंडो से उन्होंने कहा, "अगर अर्थव्यवस्था दूसरी छमाही मे नहीं उबरी तो पहली छमाही में जीडीपी ग्रोथ की वजह से हासिल बढ़त ख़त्म हो जाएगी".

लेकिन एलेना चीन से अच्छी ख़बरें आते देख रही हैं. चीन की अर्थव्यवस्था बाक़ी दुनिया से एक तिमाही पहले गिरनी शुरू हो गई थी, लेकिन रिकवरी भी एक तिमाही पहले होती दिख रही है.

वह कहती हैं, "चीन में लॉकडाउन में ढील दी जा रही है. फै़क्टरियां फिर से खोली जा रही हैं. अलग-अलग उद्योगों के हिसाब से अब वहां फै़क्टरियों में उत्पादन शुरू हो गया है. इस वक़्त वहां उत्पादन क्षमता 45 से 70 फ़ीसदी के बीच है".

उनके मुताबिक़ इस वक़्त सरकारों ने एक मोर्चे पर काफ़ी तेज़ काम किया है. इकोनॉमी की रफ़्तार बढ़ाने के लिए उन्होंने बड़ी तेज़ी से एक साथ मिलकर क़दम उठाया है.

डगर कहती हैं, "हमें उम्मीद है कि प्रतिबंध हटते ही जैसे ही आर्थिक गतिविधियां शुरू होंगी, दूसरी छमाही में रिकवरी दिखने लगेगी."

W: उतार-चढ़ाव वाले हालात

ग्रन्वॉल्ड कहते हैं, "कोविड-19 का अब तक कोई वैक्सीन ईजाद नहीं हुआ है और न ही इसका ईलाज मिला है. लिहाज़ा हमारे सामने अब एक के बाद एक चुनौतियां हैं.

इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकारें अब प्रतिबंधों में ढील दे कर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती हैं. लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर आई तो प्रतिबंधों को फिर कड़ा करना होगा. यह अर्थव्यवस्था पर एक और चोट होगी."

ऐसी स्थिति में डबल-डीप की स्थिति पैदा हो जाएगी यानी दोहरी मंदी की स्थिति. इसमें मंदी के बाद थोड़ी रिकवरी होती है और फिर मंदी आ जाती है. एक तरह से यह स्थिति W जैसी होगी. ऐसी मंदी को दिखाने के लिए इसी अक्षर का सहारा लिया जाता है.

वह कहते हैं, "इस स्थिति में रिकवरी थोड़े अंतराल तक रहती है, लेकिन यह स्थायी नहीं होती. फ़ाइनल रिकवरी से पहले यह फिर गिर जाती है."

"हम सोशल डिस्टेंसिंग के नियम बंद करने और फिर लागू करने जैसी स्थिति में बने रहेंगे. यानी कभी आगे बढ़ेंगे और कभी पीछे हटेंगे तो अर्थव्यवस्था की सामान्य स्थिति बहाल होने में काफ़ी वक़्त लगेगा."

L: न्यू नॉर्मल

काफ़ी लोगों को यह सवाल परेशान कर रहा है कि क्या कोविड-19 दुनिया की अर्थव्यवस्था को एक 'न्यू नॉर्मल' में ले जाएगी.

अर्थव्यवस्था में जब मंदी को L आकार में दिखाया जाए तो इसका मतलब यह है कि इसमें रिकवरी गहरी गिरावट के बाद आएगी. लेकिन आर्थिक गतिविधियां निचले स्तर पर बनी रहेंगी.

प्रोफ़ेसर टेसाडा कहते हैं, "मंदी से ज्यादा यह ग्रोथ लेवल के स्थायी परिवर्तन को दिखाता है."

एसएंडपी का कहना है कि अगर कोविड-19 का वैक्सीन या इलाज न मिले तो उतार-चढ़ाव वाले आर्थिक हालात के बाद ग्रोथ की स्थिति तो आएगी. लेकिन आर्थिक नुक़सान का असर लंबे वक़्त बरक़रार रहेगा. ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में हालात सामान्य होने की संभावना बिल्कुल नामुमकिन हो जाएगी.

ग्रन्वॉल्ड कहते हैं मंदी और रिकवरी को V या U के आकार में देखने से ज़्यादा अहम सवाल यह है कि क्या हम उस स्थिति में लौट पाएंगे, जहां अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस से पहले थी.

यह सवाल भी बड़ा अहम है कि आख़िर हमें वहाँ तक पहुंचने में कितना वक़्त लगेगा?

साभार बीबीसी 

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