रेरा आने के बाद अब किसी निवेशक का पैसा डूब नहीं सकता है, जानते है क्यों?

रेरा आने के बाद अब शायद ही कोई ऐसा रियल एस्टेट प्रोजेक्ट या कंपनी होगी, जिसमें निवेशकों का पैसा इसलिए डूब जाएगा या फंस जाएगा;

Update: 2018-04-09 10:04 GMT
रेरा आने के बाद अब शायद ही कोई ऐसा रियल एस्टेट प्रोजेक्ट या कंपनी होगी, जिसमें निवेशकों का पैसा इसलिए डूब जाएगा या फंस जाएगा कि या तो वह प्रोजेक्ट समय से पूरा नहीं हुआ या फिर बिल्डर लोगों का पैसा लेकर ही फरार हो गया।

क्योंकि रेरा के तहत बैंक में तीन एकाउंट खुलवाना अब हर बिल्डर के लिए अनिवार्य है, जिसमें से एक में पैसा जमा होगा, जिसे कलेक्शन एकाउंट कहा जायेगा। इसी कलेक्शन एकाउंट से बाकी के दोनों एकाउंट में निवेशक का यही पैसा जाएगा। लेकिन एक में 30 परसेंट और दूसरे में 70 परसेंट। जो 30 परसेंट अमाउंट है निवेशक के धन का, वही बिल्डर अपने प्रोजेक्ट से अलग खर्च कर सकता है।
बाकी के 70 परसेंट में से एक-एक पाई उसे प्रोजेक्ट में ही लगानी है, जो कि वह बिना अपने सीए और आर्किटेक्ट/इंजीनियर की अनुमति के नहीं निकाल सकता। यानी झक मारकर बिल्डर को अपना मुनाफा जल्द से जल्द लेने और बिज़नेस का विस्तार करने के लिए प्रोजेक्ट को समय पर या उससे भी पहले पूरा करने की मजबूरी हो जाएगी। यानी रेरा कोड जिस भी प्रोजेक्ट में है, वह बिल्डर किसी भी सूरत में निवेशक का पैसा प्रोजेक्ट से बाहर नहीं ले जा पायेगा।
इसी कारण अब यह पूरी तरह से चाक-चौबंद व्यवस्था बन चुकी है कि जैसे-जैसे फ्लैट की बुकिंग आती जाएगी, वैसे-वैसे प्रोजेक्ट की बुलंद इमारत भी खड़ी होती जाएगी। यह भारत के रियल एस्टेट बाजार में नए और स्वर्णिम युग की शुरुआत है। हमारी कंपनी भी इसी स्वर्णिम युग की शुरुआत में ही रेरा के तहत अपना प्रोजेक्ट लांच करने जा रही है, तो इससे ज्यादा खुशी की बात मेरे लिए क्या हो सकती है।
बैंक में रेरा के तहत हमारे प्रोजेक्ट के तीन एकाउंट खुल चुके हैं। अप्रूवल सारे हो ही चुके हैं, बस रेरा कोड लेते ही हमारे प्रोजेक्ट की विधिवत शुरुआत हो जाएगी। थोड़ा बहुत समय यानी चंद दिन अभी और लग रहे हैं रेरा कोड लेने में तो वह भी इसीलिए क्योंकि रेरा के लिए दर्जनों की तादाद में डाक्यूमेंट्स जुटाने पड़ रहे हैं, जिसमें हमारे प्रोजेक्ट व कंपनी की हर छोटी-बड़ी डिटेल है।
वैसे भी, रेरा में दिया गया हर डॉक्यूमेंट पत्थर की लकीर है और कोई भी बिल्डर फिर उसमें कोई फेरबदल तभी कर सकता है, जब कि उसके प्रोजेक्ट के 60-70 प्रतिशत खरीदार/निवेशक उसे बाकायदा लिखित में ऐसा करने की अनुमति दें। अब वह दौर नहीं है, जहां बिल्डर जब चाहे, जो चाहे अपने प्रोजेक्ट/ फ्लैट आदि में बदलाव कर सकता है। अब तो सरकार ने अपना हंटर तान रखा है कि जो वादा किया, वो निभाना पड़ेगा....

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