कैसे हुए हम सन 700 में गुलाम, बौद्धों ने अरबों का साथ दिया और सिंध की फतह को आसान बना दिया
लेखक शम्भु दयाल बाजपेयी
बगदाद की नौकरशाही में धीरे धीरे ईरानियों का प्रभाव बढा और आठवीं सदी के अंत तक अब्बासियों के लिए विशाल साम्राज्य का शासन कठिन लगने लगा। सत्ता को लेकर दो भाईयों के झगडे ने चौथे गृह युद्ध का रूप लिया जो दो साल के लंबे बगदाद घेराव के बाद 813 ई. में एक भाई अल आमीन के मारे जाने और दूसरे भाई अल मामून के खलीफा बनने के साथ खत्म हुअा। सन् 870 आते आते मिस्र ,हेरात और बुखारा आदि स्वायत्त राज्य बन गए।
इसके पचास साल बाद शियाओं का शासन कायम होने के साथ ही उत्तरी अफ्रीका भी अब्बासियों के हाथ से निकल गया। ईरान में भी शियों की स्वतंत्र सत्ता कायम हुई। खलीफा की सत्ता ईराक तक ही सिमट कर रह गयी। महमूद गजनवी ने ' अपनी स्वतंत्र सत्ता कायम करते हुए अमीर' के बजाय सुल्तान की पदवी धारण की। 11वीं सदी तक खलीफा का सम्मान और गिर गया , कई मुस्लिम शासकों ने जुमे के खुतबा में ख्ालीफा का नाम लेना और सिक्कों में उसके नाम का उल्लेख करना तक बंद कर दिया। इस्लामी शासकों के लिए खलीफा औपचारिक धार्मिक प्रमुख भर रह गया।
मंगोलों ने 1258 ई. के हमले में बगदाद को तहस -नहस कर दिया , विश्व विख्यात पुस्तकालय भी जला दिया।
अब्बासियों ने समारा में राजधानी स्थानातंरित की । उन्हों ने अपनी बची -खुची सत्ता बनाये रखने के लिए ममलूकों की अलग सेना बनायी थी। विदेशी गुलामों की यह सेना खलीफा के प्रति ही निष्ठावान थी। सन् 1261 में ममलूकों ने मिस्र की सत्ता पर कब्जा कर लिया । अब्बासी शासन कला, साहित्य , विज्ञान के लिए स्वर्ण काल माना जाता है। वे शिक्षा को बहुत महत्व देते थे और कुरान और हदीस के इस संदेश के पक्षधर थे कि ' विद्वान की स्याही शहीद के खून से ज्यादा पवित्र होती है । ' बगदाद उनके समय में दुनिया का प्रमुख ज्ञान - केन्द्र बना , संस्कृत , फारसी समेत विभिन्न भाषाओं के ग्रंथों का अरबी में अनुवाद हुआ।
उनकी केन्द्रीय सत्ता बिखरते ही तमाम स्वायत्त मुस्लिम राज्य हो गए और इस्लाम में दाखिल हो बर्बर हूण - तुर्क आदि घुमंतू जातियां शक्तिशाली होने लगीं। इन्होंने और ऐसी ही विभिन्न जातियों के गुलामों ने भारत में ज्यादा अत्याचार किये। मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरब ने 707 ई. में जब सिंध में चढाई की तो देखा कि भारत में बौद्ध और ब्राह्मण शक्तियों में बंटा हुआ है। विशम्भर नाथ के अनुसार , ' बौद्धों ने अरबों का साथ दिया और सिंध की फतह को आसान बना दिया।'