'दि वायर' की टीम आज जय शाह की मानहानि के मामले में अहमदाबाद गई थी कोर्ट में पेश होने। जय शाह अदालत नहीं पहुंचे। उनके वकील द्वारा बताया गया कि वे किसी 'सामाजिक काम' में व्यस्त हैं। ट्विटर पर 'दि वायर' के संपादकों का जश्न देखिए। सब जय शाह के पेश न होने पर चुटकी ले रहे हैं। संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने लिखा है, ''मैंने ऐसा पहला मामला देखा है जहां शिकायतकर्ता अपना चेहरा दिखाने से डर रहा है, वहीं 'आरोपित' कैमरे के सामने मुस्कुरा रहे हैं।''
The Wire team outside the Ahmedabad courts today where Jay Shah did a no show, citing "social work", in his bogus criminal defamation case. First matter I've seen where the complainant is scared to show his face, while the "accused" are happy to smile for the cameras. pic.twitter.com/cx1kGAwsuP
— Siddharth (@svaradarajan) November 13, 2017
इस ट्वीट पर 'पेज3' फिल्म का एक डायलॉग याद आ गया, ''जिसकी चलती है, उसकी ... पर मोमबत्ती जलती है।'' अब वरदराजन कह रहे हैं कि उन्होंने ''ऐसा पहला मामला'' देखा जहां शिकायतकर्ता नदारद है, तो उनके अदालती तजुर्बे पर यकीन करना ही होगा। बड़े संपादक जो ठहरे। नीरज मेरी कालोनी का प्रेस वाला है। हरदोई में उसकी ज़मीन फंसी हुई है। बारह साल हो गया। आज तक दूसरी पार्टी तहसीलदार की अदालत में नहीं आई। दो बार मैंने खुद उसके वकील से बात की। एक्स-पार्टी फैसले की संभावना भी टटोली। कोई फायदा नहीं। अभी 2 नवंबर को उसकी मां तहसीलदार के यहां से फिर खाली हाथ लौट आई है।
शिकायत कर के दबंग आदमी सो जाता है। मानहानि करने वाला दौड़ता फिरता है। सिद्धार्थ इत्ती सी बात नहीं समझते। लगता है पहला मुकदमा झेल रहे हैं। आठ साल हो गए मुझे और मेरे साथियों को दिल्ली की रोहिणी कोर्ट का चक्कर लगाते। आज तक शिकायतकर्ता ने मुंह नहीं दिखाया। कोर्ट के बुलाने पर भी नहीं आया। उसने 2009 में मानहानि का मुकदमा किया था। जाने कैसी मानहानि थी कि उसे तो नोबेल पुरस्कार मिल गया, लेकिन हम लोग बस हाजि़री लगाते रहे। हमें तो फिर भी संतोष है कि हम एक नोबेल पुरस्कार विजेता का किया मुकदमा झेल रहे हैं, नीरज जैसे गरीबों का क्या?