क़ैफी की जयंती पर डाॅ.मालविका हरिओम ने बाँधा समा, 'वक़्त ने किया क्या हसीन सितम'

महफिल को अपने रंग में रंगने के बाद डाॅ. मालविका हरिओम ने 'अजीब दास्ताँ है ये कहाँ शुरु कहाँ ख़त्म', ये मंज़िलें हैं कौन सी ना वो समझ सके ना हम

Update: 2020-01-13 11:20 GMT

दिल्ली। मश्हूर शायर और गीतकार क़ैफी आज़मी की जयंती पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित 'एक शाम-क़ैफी आज़मी के नाम' कार्यक्रम में मश्हूर ग़ज़ल गायिका डाॅ. मालविका हरिओम ने समा बाँध दिया।जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पढ़ी और ख़ुद भी जनवादी विचारों की महिला डाॅ. मालविका हरिओम ने क़ैफी आज़मी को एक प्रगतिशील शायर और गीतकार के रूप में याद करते हुये कहा की महिलाओं को लेकर क़ैफी आज़मी की जो सोच और चिंता उनकी ग़ज़लों में दिखाई देती है वही हम महिलाओं को उनके ग़ज़ल शिल्प के क़रीब लाती है।क़ैफी आज़मी को लेकर कुछ बातचीत के बाद डाॅ. मालविका हरिओम ने तक़रीबन एक घंटे तक लगातार क़ैफी आज़मी द्वारा लिखित गीत सुनाये।

मालविका हरिओम ने 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो', 'वक़्त ने किया क्या हसीन सितम', 'जब पहले-पहले तूने मुझे ख़त लिखा होगा' को अपनी सुरीली आवाज़ में सुनाकर कार्यक्रम की शुरूआत की जिससे पूरी महफिल अपने रंग में आ गई।उसके बाद 'झुकी-झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं', 'मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा', कभी-कभी मेरे दिल में ख़्याल आता है कि जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिये' को भी डाॅ. मालविका हरिओम ने अपने अंदाज़ में सुनाकर पूरी महफिल को झूमने पर मजबूर कर दिया।

महफिल को अपने रंग में रंगने के बाद डाॅ. मालविका हरिओम ने 'अजीब दास्ताँ है ये कहाँ शुरु कहाँ ख़त्म', ये मंज़िलें हैं कौन सी ना वो समझ सके ना हम' सुनाकर महफिल में मौजूद तमाम लोगों को भी अपने साथ गुनगुनाने में शामिल कर दिया।इस मौक़े पर वहाँ मौजूद डाॅ. मालविका हरिओम की माता श्रीमती कृष्णा भाटिया ने भी अपनी सुरीली आवाज़ में 'आ जा सनम मधुर चाँदनी में हम' गीत गाकर पूरे सभागार का मन मोह लिया।

75 साल की उम्र में बेहद शानदार और जानदार आवाज़ में गीत गुनगुनाने पर सभागार में मौजूद तमाम लोगों ने ज़ोरदार तालियाँ बजाकर कृष्णा भाटिया का स्वागत किया।कार्यक्रम के अंत में डाॅ. मालविका हरिओम ने हाल ही में देशभर में चर्चा में रहे मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म 'लाज़िम है कि हम भी देखेंगे' सुनाकर कार्यक्रम में मौजूद तमाम लोगों को अपने साथ गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया और नज़्म ख़त्म होने पर जमकर तालियाँ बटोरीं। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की इस नज़्म को गाने के बाद पूरे सभागार में डाॅ. मालविका हरिओम के लिये लगातार 10 मिनट तक तालियाँ बजती रहीं।

कार्यक्रम में राकेश आर्या, मयंक तिवारी, राजीव थापा ने वाद्य यंत्रों पर डाॅ. मालविका हरिओम का साथ दिया।जगजीत सिंह और अनूप जलोटा जैसे कलाकारों के साथ काम कर चुके राकेश आर्या का अंदाज़ निराला रहा।कार्यक्रम को चार चाँद लगाने के लिये वहाँ मौजूद सैंकड़ों श्रोताओं के अलावा काँग्रेस नेता और MLC नसीब पठान, विश्वनाथ चतुर्वेदी, मश्हूर कवि अशोक चक्रधर, कवयित्री सरिता शर्मा, मिसेज़ एशिया माया सिंह, रजनीकांत राजू, डाॅ. ज़की तारिक़, सुशील शर्मा, अशोक कौशिक इत्यादि मौजूद रहे।कार्यक्रम के अंत में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के मेंबर और मैट्रोयुग फाउंडेशन के अध्यक्ष उस्मान सिद्दीक़ी ने सभी को धन्यवाद दिया।

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