क्या हमारे महापुरुषों और शहीदों के बारे में अफवाह फैलाकर उनको एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना राष्ट्रवाद है?

जेल के अंतिम क्षणों में भगत सिंह ने अपने वकील प्राणनाथ मेहता जी से कहा था- "पंडित नेहरू और सुभाष चंद्र बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें, जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।"

Update: 2022-08-13 06:49 GMT

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कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने आज फिर एक पोस्ट लिखा है। 

क्या हमारे महापुरुषों और शहीदों के बारे में अफवाह फैलाकर उनको एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना राष्ट्रवाद है? भाजपा-आरएसएस के बड़े-बड़े नेता दावा करते हैं कि शहीद भगत सिंह को फांसी हुई तो किसी कांग्रेस नेता ने उनकी खोज-खबर नहीं ली।

जब भगत सिंह और उनके साथियों ने लाहौर जेल में भूख हड़ताल शुरू की तो पंडित नेहरू उनसे मिलने गए। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है- "मैं उस समय लाहौर में था, जब भूख हड़ताल को एक महीने हो गए थे। मुझे जेल बंद कैदियों से मुलाकात की अनुमति दी गई और मैंने इसका लाभ उठाया। मैंने पहली बार भगत सिंह, जतींद्र दास और उनके साथियों को देखा।... मैं नायकों को ऐसे संकट में देखकर बहुत परेशान था। उन्होंने इस संघर्ष में अपनी जिंदगी दी है। वे चाहते हैं कि राजनीतिक कैदियों को राजनीतिक कैदियों के रूप में ही माना जाना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि उनके बलिदान को सफलता के साथ ताज पहनाया जाएगा।"

जब भगत सिंह को फांसी हुई, उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दफ्तरों पर छापे पड़ रहे थे और सभी बड़े नेता जेल में थे। जेल से छूटते ही महात्मा गांधी जी ने वायसराय को तीन चिट्ठियां लिखकर भगत सिंह की सजा माफ़ करने की अपील की, हालांकि भगत सिंह किसी तरह से माफ़ी मांगने के खिलाफ थे और उन्होंने अपने पिता से नाराजगी भी जाहिर की थी।

जेल के अंतिम क्षणों में भगत सिंह ने अपने वकील प्राणनाथ मेहता जी से कहा था- "पंडित नेहरू और सुभाष चंद्र बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें, जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी।"

भगत सिंह की फांसी के बाद कांग्रेस के कराची अधिवेशन में गांधी जी ने एक शोक प्रस्ताव पेश किया जिसे पंडित नेहरू जी ने सबके सामने रखते हुए कहा- "भगत सिंह की फांसी से मुल्क में एक अजीब लहर फ़ैल गई है। क्या वजह है कि आज भगत सिंह का नाम सबकी ज़ुबान पर है। आज गांव-गांव का बच्चा-बच्चा भगत सिंह का नाम जानता है। वह एक नौजवान लड़का था। उसके अंदर मुल्क के लिए आग भरी थी। वह शोला था। चंद महीनों में चिंगारी बन गया जो मुल्क के कोने-कोने में फ़ैल गई है। मुल्क में चरों तरफ अंधेरा था, वहां अंधेरी रात में एक रोशनी दिखाई देने लगी।"

सच्चाई यह है कि अलग-अलग विचार वाले हमारे क्रांतिकारियों ने देश के प्रति एकजुट होकर, मिल-जुलकर लड़ाई लड़ी, शहादत दी और अपना खून देकर हमें आज़ादी दिलाई जिसकी बदौलत 75 साल से हमारा तिरंगा शान से लहरा रहा है। जो लोग हमारे नायकों के बारे में अफवाह फैलाते हैं, ये उसी आरएसएस के लोग हैं जिसने अपने मुखपत्र में भगत सिंह की शहादत का मजाक उड़ाया था और अपने कार्यकर्ताओं को ताकतवर अंग्रेजों से न लड़ने की सलाह दी थी। जिन्होंने उस समय हमारे शहीदों की जगह अंग्रेजों का साथ दिया, वे आज भी हमारे शहीदों के बारे में गलत बातें प्रचारित कर रहे हैं क्योंकि उनकी मंशा ठीक नहीं है। 

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