शिवपाल और रामगोपाल की आपसी कलह के कारण हुआ था मथुरा में महाभारत

नेताओं के खिलाफ सीबीआई भी बिलकुल ढ़ीली पड़ जाती है

Update: 2020-07-10 08:03 GMT

इटावा के तुलसी यादव यानी जयगुरुदेव ने देश-दुनिया के 20 करोड़ भक्तों से चंदा लेकर केवल उत्तर प्रदेश में ही लगभग 15 हजार करोड़ रुपये का साम्राज्य खड़ा कर लिया था. 18 मई 2012 को जयगुरुदेव का निधन हुआ तो उनके तीन चेलों के बीच अरबों के साम्राज्य पर कब्जे को लेकर होड़ मच गई. चूंकि मुलायम कुनबे के गृह जनपद इटावा से जयगुरुदेव जुड़े थे और चेले भी यहां से जुड़ाव रखते थे इसलिए रामगोपाल और शिवपाल यादव की भी बाबा की संपत्ति पर नजर पड़ गई. शिवपाल और रामगोपाल ने बाबा जयगुरुदेव के एक एक चेले को अपना मोहरा बनाया ताकि अप्रत्यक्ष रूप से अरबों रुपये की संपत्ति पर कब्जा जमाया जा सके.

शिवपाल यादव ने अपने खास पंकज यादव को जयगुरुदेव का ड्राइवर बनवाया और बाद में पंकज यादव को 15 हजार करोड़ की संपत्ति मालिक बनाने में सफल रहे. इसके बाद बाबा जयगुरुदेव के तीन चेलों के बीच संपत्ति पर कब्जे का विवाद शुरू हुआ. पहला चेला पंकज यादव उनका ड्राइवर था. दूसरा चेला जयगुरुदेव के सेवक के तौर पर हमेशा साथ रहने वाला गाजीपुर निवासी रामवृक्ष यादव था. तीसरा चेला उमाकांत तिवारी था.

पंकज यादव ने शिवपाल यादव के दम पर मथुरा-दिल्ली हाईवे पर डेढ़ सौ एकड़ के जयगुरुदेव के मुख्य आश्रम तथा आसपास के जिलों में हाईवे किनारे स्थित तमाम आश्रम और अन्य रियल एस्टेट संपत्तियों पर कब्जा कर लिया. कुल संपत्तियों की कीमत लगभग 15 हजार करोड़ रुपये है. जब आश्रमों पर पंकज यादव का कब्जा हो गया तो पंकज ने प्रतिद्वंदी रामवृक्ष यादव को आश्रम से बाहर कर दिया.

लोकसभा चुनाव के दौरान रामवृक्ष यादव ने अपने तीन हजार समर्थकों के साथ रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव के लिए घर-घर जाकर चुनाव प्रचार किया. ये वे समर्थक थे जो जयगुरुदेव के समय से रामवृक्ष से जुड़े थे. अक्षय यादव की जीत में रामवृक्ष ने अहम योगदान दिया इसलिए रामगोपाल भी रामवृक्ष के मुरीद हो गए. रामवृक्ष भी कम चालाक नहीं था, उसने अपनी इस मेहनत की कीमत मथुरा के जवाहरबाग की 300 एकड़ जमीन हथियाकर वसूलने की सोची.

जब शिवपाल यादव के सहयोग से पंकज यादव ने जयगुरुदेव आश्रम पर कब्जा कर रामवृक्ष यादव को वहां से भगा दिया तो रामवृक्ष यादव रामगोपाल यादव के पास गया. रामवृक्ष ने मथुरा के जवाहरबाग की खाली पड़ी 300 एकड़ जमीन पर कुछ मांगों को लेकर कथित सत्याग्रह के लिए अनुमति दिलाने की मांग की. उसने देश में सोने के सिक्के चलाने, पेट्रोल एक रुपये लीटर देने जैसी अजीबोंगरीब मांग शुरू किया ताकि ये मांगे पूरी न हों और हमेशा के लिए जमीन पर धरने की आड़ में कब्जा किया जा सके. रामगोपाल के एक फोन करते ही तत्कालीन डीएम एसएसपी ने जवाहरबाग में दो दिन के सत्याग्रह की अनुमति दे दी और अनुमति मिलते ही रामवृक्ष ने 300 एकड़ जमीन कर लिया गया

प्रशासन से 2 दिन के लिए धरने की अनुमति ली गई थी लेकिन नीयत तो जवाहर बाग पर कब्जे की थी जिसका बाजार मूल्य लगभग 5000 करोड़ रुपये है. रामवृक्ष को डर था कि कभी कोई तेजतर्रार डीएम-एसएसपी आया तो उसके कब्जे की जमीन हाथ से निकल सकती है. इसलिए रामवृक्ष की मांग पर रामगोपाल ने अपने करीबी डीएम और एसएसपी को मथुरा तैनात करा दिया ताकि कब्जा खाली कराने को लेकर कभी प्रशासन एक्शन न ले. यही वजह थी कि रामवृक्ष और उसके गुर्गों ने धरने की आड़ में तीन सौ एकड़ जमीन पर 3 साल तक कब्जा जमाये रखा और प्रशासन की हिम्मत नहीं पड़ी की जवाहरबाग को खाली करा ले. जमीन पर ब्यूटी पार्लर और आटा चक्की जैसी व्यावसायिक गतिविधियां भी शुरू हो गयी जिससे स्पस्ट पता चलता है कि रामवृक्ष और कंपनी को वरदहस्त प्राप्त हो चुका था. रामवृक्ष को विश्वास हो गया था कि शासन और स्थानीय प्रशासन जवाहरबाग से कब्जा नहीं खाली कराएगा इसलिए स्थाई निर्माण कराया जाने लगा. यह तो गनीमत थी कि मथुरा के एक वकील ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल किया तब जाकर प्रशासन को कब्जा खाली कराने के लिए टीम भेजना पड़ा.

बाबा जयगुरुदेव के अरबों के साम्राज्य पर कब्जा करने के लिए शिवपाल और राम गोपाल यादव के बीच शीतयुद्ध चल रहा था और कई बार दोनों नेताओं के चेलों के बीच लड़ाई खुलकर सामने आई. शिवपाल यादव का पंकज यादव को मिले वीटो पावर से अपने हाथ से जयगुरुदेव की संपत्ति निकल जाने से रामवृक्ष मन मसोस कर रह गया था. फिर भी उसने संपत्ति हथियाने का ख्वाब नहीं छोड़ा और रामगोपाल यादव को अपना संरक्षक बना लिया और जवाहरबाग पर कब्जा कर अपने गुर्गों के रहने के लिए जमीन तैयार किया. इसके बाद उसका इरादा पंकज यादव से लड़कर जयगुरुदेव के पूरे साम्राज्य पर कब्जा करना था लेकिन जवाहबागकांड के बाद उसका खुद का निर्माणाधीन साम्राज्य तहस नहस हो गया. ऐसे राजनैतिक सरंक्षण प्राप्त गिरोह देश के लिए अत्यधिक घातक हैं और शासन प्रशासन को यह सब पता भी होता है. चाचा शिवपाल और रामगोपाल यादव को बचाने के लिये ही अखिलेश यादव ने मथुरा कांड की सीबीआई जाँच का आदेश नहीं दिया था.

जवाहर बाग कांड की सीबीआई जांच की मांग के लिए अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दाखिल किया और 9 महीने की लंबी बहस के बाद मार्च 2017 में हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश भी दिया लेकिन आजतक रामवृक्ष यादव और उसके बेटों का कॉल डिटेल तक नहीं देखा गया. इससे स्पस्ट है कि नेताओं के खिलाफ सीबीआई भी बिलकुल ढ़ीली पड़ जाती है

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