निर्भया केसः पटियाला कोर्ट तीसरी बार डेथ वारंट जारी करने से किया इनकार तो सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग फांसी होगी या नही सुनाया फैसला?
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निर्भया के दोषियों को जल्द फांसी पर लटकाने के लिए तिहाड़ जेल प्रशासन एक बार फिर पटियाला हाउस कोर्ट पहुंचा, जिस पर शुक्रवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने नया डेथ वारंट जारी करने से इनकार कर दिया। इससे पहले गुरुवार को कोर्ट ने सभी दोषियों से शुक्रवार तक जवाब दायर के निर्देश दिए थे, ताकि अदालत इस मामले में कार्यवाही को आगे बढ़ा सके। इस केस की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष इस बात पर अड़ा हुआ है कि जब दिल्ली हाईकोर्ट दोषियों को सात दिन का समय दे चुका है
तो डेथ वारंट के लिए इतनी जल्दी क्या है और सुप्रीम कोर्ट जाने की क्या जरूरत पड़ गई। इस पर अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद नया डेथ वारंट जारी करने से इनकार कर दिया। वहीं कोर्ट के फैसले पर निर्भया की मां आशा देवी ने नाराजगी जताई है।
उन्होंने कहा कि अदालत ने आज भी डेथ वारंट जारी नहीं किया है जबकि कोई केस लंबित नहीं था। अदालत के पास शक्ति थी और हमारे पास समय था। उन्होंने कहा कि यह हमारे साथ अन्याय है। उन्होंने आगे कहा कि हम भी देखेंगे कि अदालत कब तक दोषियों को समय देती है और सरकार उन्हें समर्थन करती है। चारों दोषियों को फांसी देने के लिए अब तक दो बार डेथ वारंट जारी हो चुका है.
निर्भया के चारों दोषियों को अलग-अलग फांसी देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों को नोटिस जारी किया है. साथ ही सुनवाई के लिए 11 फरवरी की तारीख तय की. कोर्ट अब 11 फरवरी की दोपहर 2 बजे मामले की सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का एक हफ्ते का समय 11 फरवरी को खत्म हो रहा है. इसलिए 11 फरवरी को मामले की सुनवाई की जाएगी. दरअसल, हाई कोर्ट ने दोषियों को अपनी रेमेडी का इस्तेमाल करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया था.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सभी चारों दोषियों को एक साथ फांसी की सजा दी जाएगी ना की अलग-अलग. अपनी अपील में केंद्र सरकार ने कहा कि सवाल यह है कि क्या एक दोषी जो अपने सभी उपचारों को समाप्त कर चुका है, उसे कानून से प्राप्त सजा को क्या सिर्फ इसलिए रोका जा सकता है क्योंकि सह-दोषियों में से एक की दया याचिका राष्ट्रपति के समक्ष लंबित है और दूसरे सह-दोषी ने अभी तक याचिका दायर भी नहीं की है।
कोर्ट ने कहा, 'जब दोषियों को कानून जीवित रहने की इजाजत देता है, तब उन्हें फांसी पर चढ़ाना पाप है।' हाईकोर्ट ने पांच फरवरी को न्याय के हित में दोषियों को इस आदेश के एक सप्ताह के अंदर अपने कानूनी उपचार का इस्तेमाल करने की इजाजत दी थी।
न्यायाधीश ने कहा, 'मैं दोषियों के वकील की इस दलील से सहमत हूं कि महज संदेह और अटकलबाजी के आधार पर मौत के वांरट को तामील नहीं किया जा सकता है। इस तरह, यह याचिका खारिज की जाती है। जब भी जरूरी हो तो सरकार उपयुक्त अर्जी देने के लिए स्वतंत्र है।' कोर्ट तिहाड़ जेल प्रशासन की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें दोषियों के खिलाफ मौत का नया वारंट जारी करने की मांग की गई है।
सुनवाई की शुरुआत में मेहता ने अदालत को बताया कि मामले में राष्ट्र के धैर्य की परीक्षा ली जा रही है और पीठ को इस मुद्दे पर कानून बनाना होगा।
आज में कोर्ट में क्या-क्या हुआ
सुनवाई शुरू हुई तो सरकारी वकील इरफान अहमद ने नए डेथ वारंट के लिए अपना आवेदन अदालत में पेश किया। इसके साथ ही इरफान ने पटियाला हाउस कोर्ट द्वारा इसी केस में पास पिछले चार आदेशों का अवलोकन करने का भी अनुरोध किया।
इसके बाद इरफान अहमद ने फांसी की प्रक्रिया के इतिहास को कोर्ट के सामने पढ़ा। इरफान अहमद ने ये दलील भी दी कि कोर्ट इस मामले में नया डेथ वारंट जारी कर सकती है क्योंकि किसी भी दोषी की कोई याचिका पेंडिंग नहीं है।
वकील इरफान ने कहा कि अदालत हाईकोर्ट द्वारा दी गई सात दिन की अवधि को ध्यान में रखते हुए डेथ वारंट जारी करे।
इस पर जज ने सरकारी वकील से पूछा कि आखिर किस दिन से 14 दिन मानकर हम नया डेथ वारंट जारी करें। तब वकील ने कहा पांच फरवरी।
इस पर जज ने सरकारी वकील से पूछा कि आपको क्यों लगता है कि पवन अपनी क्यूरेटिव याचिका और दया याचिका दाखिल नहीं करेगा। तब वकील ने कहा कि अगर वो चाहता तो इस अदालत के पिछले आदेश के बाद ही याचिकाएं दायर कर देता।
इसके बाद पीड़ित पक्ष के वकील जीतेंद्र झा ने अदालत में हाईकोर्ट का आदेश पढ़कर सुनाया जिसमें दोषी सजा में देरी करने की आदत अपनाते रहे हैं। हाईकोर्ट का आदेश भी पांच फरवरी से अमल में आता है। झा ने आगे कहा कि यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी सात दिन के समय को माना है, इसलिए उन्होंने 11 फरवरी को सुनवाई की तारीख रखी है।
इस पर बचाव पक्ष की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल के बहुत कहने पर भी सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को कोई नोटिस जारी नहीं किया है। इस पर जज ने पूछा कि क्या मैं कुछ समय के लिए ये मान लूं कि हम हाईकोर्ट का आदेश मानने के लिए बाध्यकारी हैं।
इसके बाद वृंदा ग्रोवर ने हाईकोर्ट के आदेश का पैरा नंबर 68 पढ़कर सुनाया कि अदालत ने दोषियों को अपने सभी विकल्प आजमाने के लिए सात दिन का समय दिया है। वो यह भी बोलीं कि यह आवेदन समय से पहले किया गया है।
वृंदा ग्रोवर ने ये भी कहा कि यह आवेदन सात दिन से पहले डाला गया है जो सही नहीं है। हाईकोर्ट इस पर फैसला लेने के लिए ठीक था फिर भी ये लोग सुप्रीम कोर्ट गए।
वृंदा ग्रोवर ने बताया कि इस केस में सुप्रीम कोर्ट के पास दो केस पेंडिंग हैं। साथ ही ग्रोवर ने तिहाड़ को स्टेटस रिपोर्ट दायर करने के लिए भी कहा।
बहस शुरू होने के तीस मिनट बाद दोषियों के वकील एपी सिंह कोर्टरूम में पहुंचे। उन्होंने कहा कि मुझे एक फोन कॉल पर इस केस के बारे में पता चला, जो बहुत ही विचित्र है। एपी सिंह ने कहा कि वो इसलिए देरी से पहुंचे क्योंकि वह आज की सुनवाई से अनजान थे। जज ने उन्हें प्वाइंट पर बात करने को कहा।
सभी पक्षों को सुनने के बाद एसजे धर्मेंद्र राणा ने तिहाड़ की याचिका खारिज करते हुए नया डेथ वारंट जारी करने से इनकार कर दिया। अदालत ने ये भी कहा कि यह दलील गुण से परे है, अनुमानों के आधार पर मृत्यु वारंट जारी नहीं किया जा सकता। अदालत ने आवेदन प्रीमैच्योर होने के कारण खारिज कर दी।
2013 में शुरू हुआ था केस का ट्रायल
पांच वयस्कों के खिलाफ मुकदमा मार्च 2013 में एक विशेष फास्ट ट्रैक अदालत में शुरू हुआ। किशोर ने महिला के साथ ज्यादा बर्बरता की थी और उसे तीन वर्षों तक सुधार गृह में रखा गया था। वर्ष 2015 में जब वह रिहा हुआ तो उसकी उम्र 20 वर्ष थी और उसे अज्ञात स्थान पर भेज दिया गया क्योंकि उसकी जान को खतरा था। मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित तौर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। मुकेश, विनय, अक्षय और पवन को दोषी ठहराया गया और सितम्बर 2013 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई।
क्या था मामला
23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा से 16 दिसम्बर 2012 को दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में छह व्यक्तियों द्वारा सामूहिक बलात्कार और बर्बरता की गई थी। उसे बाद में बस से नीचे फेंक दिया गया। बाद में छात्रा को निर्भया नाम दिया गया था।निर्भया ने 29 दिसम्बर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था।