सुरों की लता क्यों नहीं की शादी...!

Update: 2018-09-28 12:40 GMT

आज फिर जीने की तमन्ना है..., आज फिर मरने का इरादा है...!

अपने ही बस में नहीं मैं…, दिल है कहीं तो हूँ कहीं मैं…!!

जी हां दोस्तों...!

सुरीले गानों की बात हो तो हमारे दिमाग में सबसे पहले जिस चेहरे की छवि बनती है वो हैं हमारी स्वर कोकिला लता मंगेशकर. इंडियन सिनेमा का आज जो रूप है और यहां की फिल्मों में गानों की जो मुख्य भूमिका है उसमें लता मंगेशकर का जो योगदान है उसे कौन नकार सकता है. इंडियन क्लासिकल हो या कैबरे सॉग या फिर गम में डूबी किसी नायिका का दर्द, सभी कुछ लता दीदी की आवाज में पूरी तरह ढल जाता है. इसलिए अगर आज उन्हें हम सुरों की देवी का साक्षात रूप कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस सुरों की देवी को जान से मारने की साजिश भी हो चुकी है. जी हां 33 साल की उम्र में लता ने इस विश्वासघात को झेला था. आइए जानते हैं अपनी सुरों की जादूगरी करने वाली लता मंगेशकर के 89 वें जन्मदिन पर उनके जीवन के बारे में कुछ ऐसी ही खास बातें...!

पहली नजर का इश्क कभी नहीं भुलाया जा सकता है...सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर के लिए भी कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है...कहते हैं कि सुरों की महारानी लता मंगेशकर को एक महाराजा से इश्क हो गया था..., जो उनके भाई का दोस्त भी था...अगर शादी होती तो लता एक राज्य की महारानी बन जातीं...लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था...कभी स्कूल ना जाने वाली लता ने अपनी जिंदगी से ही कई सबक सीखे...अपने भाई-बहनों को कभी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी...लता दी का कहना था कि...उनके ऊपर पूरे घर की जिम्मेदारी थी इसीलिए उन्होंने कभी शादी नहीं की...भले ही लता जी अपनी जुबां से कुछ ना कहें लेकिन इस राज के पीछे की सच्चाई कुछ और है...बचपन में कुंदनलाल सहगल की फिल्म चंडीदास देखकर लता जी कहा करती थीं कि वो बड़ी होकर सहगल से शादी करेंगी लेकिन उन्होंने कभी शादी नहीं की...आज उनके जीवन से जुड़ी जो बात हम बताने जा रहे हैं वो शायद ही किसी को पता हो...हम बात करेंगे लता मंगेशकर की लव स्टोरी की...आइए जानते हैं लता जी को किससे प्यार हुआ था और उनकी शादी क्यों नहीं हो पाई... लता ने खुद कभी नहीं कहा लेकिन कई जानकारों ने इस संबंध को लेकर अपनी जुबान खोली थी... डूंगरपुर राजघराने के महाराजा राज सिंह से लता मंगेशकर बेहद प्यार करती थीं...लता के भाई हृदयनाथ मंगेशकर और राज सिंह एक-दूसरे के अच्छे दोस्त थे...वो एक साथ क्रिकेट खेला करते थे...उनकी मुलाकात उस समय हुई जब राज लॉ करने के लिए मुंबई आए...इस दौरान वो लता के भाई के साथ उनके घर पर जाया करते थे...यह सिलसिला बढ़ता गया और देखते ही देखते राज और लता की भी दोस्ती हो गई...धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदल गई...तब तक लता का नाम भी चर्चित हस्तियों में गिना जाने लगा था...इसलिए मीडिया में भी लता और राज के रिश्तों को लेकर बातें उड़ने लगीं...राज तीन भाइयों में सबसे छोटे थे...दोनों एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे लेकिन शादी नहीं हो पाई...कहा जाता है कि राज ने अपने माता-पिता से वादा किया था कि वो किसी भी आम घर की लड़की को उनके घराने की बहू नहीं बनाएंगे...राज ने यह वादा मरते दम तक निभाया...आपको जानकर हैरानी होगी कि लता की तरह राज भी जीवन भर अविवाहित रहे...राज..., लता से 6 साल बड़े भी थे...राज को क्रिकेट का भी बहुत शौक था...मौका मिलते ही वो लता के गाने सुनने लगते थे...बता दें कि 12 सितंबर 2009 को राजसिंह का देहांत हो गया था...साल 2012 में भूपेन हजारिका की पत्नी प्रियंवदा पटेल ने लता पर आरोप लगाया था कि उनका भूपेन के साथ अफेयर था...प्रियंवदा ने कहा था कि लता जब भी कोलकाता आतीं..., वह हजारिका के तीन बेडरूम में से एक शेयर करती थीं...हालांकि इस बारे में लता ने कभी कोई बयान नहीं दिया...!!

अपनी मधुर आवाज से पिछले कई दशक से संगीत के खजाने में नये मोती भरने वाली लता मंगेशकर 28 सितम्बर 1929 को इंदौर में मशहूर संगीतकार दीनानाथ मंगेशकर के यहां पैदा हुईं...दीनानाथ मंगेशकर भी संगीत के बड़े जानकार और थिएटर आर्टिस्ट थे..., इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को भी बोलना सीखने की उम्र में गाने की शिक्षा देना शुरू कर दी...लेकिन वह भी नहीं जानते थे कि यह काम करके वह अपनी बेटी का नहीं पूरे भारतीय संगीत का भविष्य गढ़ रहे हैं...लता मंगेशकर तीन बहनों मीना मंगेशकर..., आशा भोसले..., उषा मंगेशकर और एक भाई ह्रदयनाथ मंगेशकर में सबसे बड़ी हैं...उनके बचपन का नाम हेमा था लेकिन एक दिन थियेटर कैरेक्टर 'लतिका' के नाम पर उनका नाम लता रखा गया...कम ही लोग जानते हैं कि लता मंगेशकर को उनके करियर की ऊंचाईयों पर पहुंचा देख कोई इतना भी जल उठा था कि उन्हें जान से मारने की कोशिश तक करने से बाज नहीं आया...1962 में जब लता मंगेशकर 33 साल की थीं तो उन्हें धीमा जहर दिया गया था...लेखिका पद्मा सचदेव ने अपनी किताब 'ऐसा कहां से लाऊं' में इस बात को विस्तार से लिखती हैं...पद्मा सचदेव ने अपनी किताब में लिखा कि 'लता जी जब 33 साल की थीं तो उन्होंने मुझे ये बात बताई थी... एक दिन सुबह उनके पेट में तेज दर्द होने लगा...थोड़ी देर में उन्हें दो-तीन बार उल्टियां हुईं... जिसमें हरे रंग की कोई चीज थी... उन्होंने बताया कि वो बिल्कुल चलने की हालत में नहीं हैं... उनके पूरे शरीर में तेज दर्ज होने लगा...' पद्मा सचदेव ने आगे लिखा कि 'इस स्लो प्वॉइजन की वजह से लता मंगेशकर बेहद कमजोर हो गई थीं...उन्होंने तीन महीने तक बेड रेस्ट किया और कोई गाना नहीं गा पाईं...उनकी आंतों में दर्द रहता था...खाने में भी बेहद सावधानी बरतनी पड़ती थी...उन दिनों लता मंगेशकर केवल ठंडा सूप ही लेती थीं...' लता मंगेशकर को जहर देने वाले का नाम आज भी रहस्य ही है..., लेकिन बताया जाता है कि उस घटना के बाद से लता जी का कुक फरार हो गया था..., जिसके बाद वो कभी अपना बाकी बचा वेतन लेने भी नहीं आया... उस कुक ने लता मंगेशकर के पहले भी कई घरों में काम किया था...!!

लता दीदी...एक ऐसे समय में संभव हुई आवाज की दुनिया की घटना हैं..., जिसके होने से इस धारणा को प्रतिष्ठा मिलनी शुरू हुई कि गायन का क्षेत्र सिर्फ मठ, मंदिरों, हवेलियों और नाचघरों तक ही सीमित न रहकर बिल्कुल साधारण ढंग से मध्यवर्गीय परिवारों के रसोई-घरों तक अपनी पहुंच बना सकता है...उनके आने के बाद से ही..., लोगों की बेपनाह प्रतिक्रियाओं से तंग आकर रिकॉर्ड कंपनियों ने पहली बार फिल्मों के तवों पर पार्श्वगायकों एवं गायिकाओं के नाम देना शुरू किया...ऐसे में लता की उपस्थिति स्त्री की प्रचलित रूढि़वादी छवि को तोड़ने में अहम भूमिका निभाने की ओर अग्रसर दिखती है...भारत में फि़ल्म संगीत का उसी तरह कायाकल्प करने में तत्पर दिखाई देती हैं..., जिस तरह पारंपरिक नृत्य-कलाओं में नवोन्मेष ढूंढ़ने का काम रुक्मिणी देवी अरुण्डेल..., बाला सरस्वती एवं इन्द्राणी रहमान जैसी नर्तकियों ने किया है...वह 'अल्ला तेरो नाम', 'औरत ने जन्म दिया मरदों को...', 'मिट्टी से खेलते हो बार-बार किसलिए' और 'आज फिर जीने की तमन्ना है' जैसे ढेरों आकांक्षा और सपनों से भरे हुए यथार्थवादी गीतों को गाकर स्त्री मुक्ति की आकांक्षा की पैरोकार बन जाती हैं...ऐसी वैचारिक उपस्थिति..., जो हर काल में नयी और ताजगी भरी लगती है...भारत समेत पूरे दक्षिण एशियाई देशों में लता मंगेशकर अपनी आवाज से एक मानक ही बन चुकी हैं...आवाज की सत्ता का गौरव बखानने वाली एक जीवंत उपस्थिति..., जिसमें लता मंगेशकर होना..., सच्चे सुरों के साथ मौजूद होना है...नब्बे बरस की उनकी इस शानदार सांगीतिक पारी में हम गर्व से कह सकते हैं कि...लताजी का दैवीय साथ..., हर एक भारतवासी के साथ बना हुआ है...वे शतायु हों और संगीत के सौ बरस की जय-यात्रा की साक्षी बनें..., भारत रत्न..., सुरों की लता..., लता दीदी को जन्म-दिवस के इस शुभअवसर पर मेरी यही शुभकामना है...!!

कुंवर सी.पी. सिंह 

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