गुजरात चुनाव में किस जाति है कितना वोट, पटेल समुदाय पर क्यों टिकी है निगाह

Update: 2017-11-25 02:57 GMT
गुजरात के राजनीतिक और सामाजिक समीकरण बहुत तेजी से बदल रहे हैं. 1 मई, 1960 को गुजरात की स्थापना के बाद प्रारंभिक डेढ़ दशक में गुजरात के राजनीतिक जीवन में जाति, धर्म, संप्रदाय और समूह का इतना प्रभाव नहीं था, जितना 80 के दशक से लेकर हाल की परिस्थितियों में हुआ है. 1981 और 1985 में आरक्षण के खिलाफ मुहीम, 1994 में केशूभाई पटेल और बीजेपी की पारी, शंकरसिंह वाघेला की हजुरिया-खजुरिया और राष्ट्रीय जनता पार्टी की सरकार.
2002 में गोधराकांड के बाद नरेंद्र मोदी का लगभग 14 साल तक गुजरात में शासन और अब राजनीतिक, आर्थिक, और शिक्षित रूप से सबल होने के बावजूद आरक्षण की मांगकर सत्ताधारी बीजेपी के ही खिलाफ खड़े हुए उनके ही वफादार माने जानेवाले करीब-करीब 1 करोड़ पटेल मतदाताओं की आरक्षण को लेकर नाराजगी. आखिर गुजरात में पटेल समुदाय जो एक समय आरक्षण के खिलाफ उठ खड़ा था वही इस बात की मांग में क्यों लगा है? पाटीदारों की सोच में ये 360 डिग्री बदलाव क्यों आया? इस पूरी कहानी को समझने के लिए 80 के दशक के फ़्लैश बैक में जाना जरूरी है.
1981 का आरक्षण के खिलाफ जो आंदोलन था, वो मुख्यरूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिल रहे आरक्षण की नीतियों के खिलाफ था. इस आंदोलन की शुरुआत मेडिकल के छात्रों द्वारा शुरू की गई. बाद में दूसरे प्रोफेशनल कोर्स के छात्र भी इससे जुड़े. 1981 के इस आंदोलन में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के पक्ष में जिना भाई दरजी, माधवसिंह सोलंकी, मधुसुदन मिस्त्री और प्रबोध रावल आए. हालांकि, कुछ समय बाद ये आंदोलन पिछड़ी जातियों और उच्च वर्णों के बीच सामाजिक संघर्ष के रूप में परिवर्तित हुआ. अन्य पिछड़े वर्ग की 63 जातियों को भी जस्टिस राणे कमीशन की तर्ज पर आरक्षण देने का फैसला हुआ.
इस सामाजिक संघर्ष का राजनीतिक लाभ माधवसिंह सोलंकी ने एसटी, एससी के साथ अन्य पिछड़े वर्गों का आरक्षण बढ़ाकर लिया. काका कलेककर कमीशन से अलग गुजरात में पहले जस्टिस राणे कमीशन और बाद में जस्टिस बक्शी कमीशन की अध्यक्षता में अन्य पिछड़े वर्गों का कमीशन बनाकर राज्य की 82 जातियों को आरक्षण का फायदा देने का राज्य सरकार ने संकल्प लिया. इस बात का प्रभाव 1984 के चुनावों में इतना ज्यादा रहा कि सोलंकी ने गुजरात विधानसभा चुनावों के इतिहास में सबसे ज्यादा 149 सीटें प्राप्त कीं. 28 प्रतिशत आरक्षण देने को सैद्धांतिक रूप से स्वीकार करना ही सोलंकी सरकार को जबरदस्त फायदा पहुंचा गया.
6 फरवरी, 1984 में मोरबी के लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों द्वारा अन्य पिछड़े वर्गों को माधवसिंह सोलंकी सरकार द्वारा दिए गए 10 से लेकर 28% आरक्षण के खिलाफ आंदोलन छेड़ा. मजेदार बात ये है कि, 1981 और 1985 दोनों ही आरक्षण विरोधी आंदोलनों में पाटीदार या पटेल समुदाय आगे रहा. शंकरभाई पटेल नामक एक अध्यापक ने आरक्षण की इन नीतियों के खिलाफ अहमदाबाद से मोर्चा संभाला था.
आज करीब 30 साल बाद, इसी पटेल समुदाय का एक नेता- हार्दिक पटेल अपने समुदाय के गरीब और पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण की मांग कर रहा है. इस आंदोलन का गुजरात के राजनीतिक और सामाजिक समीकरण पर काफी ज्यादा प्रभाव पड़ा है. यहां तक कि इस मामले को सही तरह से सुलझा नहीं पाने की वजह से गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप से आंनदीबेन पटेल को इस्तीफा देना पड़ा. बात यहां रुक जाती तो ठीक था, लेकिन इस दौरान जूनागढ़ के ऊना में दलितों पर अत्याचार के स्वरूप जिग्नेश मेवानी और अन्य पिछड़े वर्ग का आरक्षण बचाये रखने की मंशा लिए ठाकोर समुदाय के एक और युवा नेता अल्पेश ठाकोर उठ खड़े हुए. युवा नेताओं की इस तिकड़ी के कारण गुजरात का 2017 का चुनाव काफी रसप्रद बना हुआ है.
पाटीदारों की सोच या मांग में 360 डिग्री का बदलाव, हार्दिक पटेल के कांग्रेस के साथ जाने की घोषणा, 1200 करोड़ की सौदेबाजी का हार्दिक का आरोप, सेक्स सीडी और फेक इस्तीफों का दौर चुनावों को दिलचस्प बनाता है. मुस्लिम महिलाओं का मोदी की पार्टी को ही वोट देने की मांग करता हुआ सूरत के लिम्बायत इलाके में निकला जुलुस, 'पास' के नेता के दफ्तरों पर हमला, सीटों के बंटवारे को लेकर तनातनी और पसंद किए गए उम्मीदवारों के खिलाफ असंतोष, इन सारी स्थितियों में गुजरात का चुनाव अब समूचे राष्ट्र के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है. देखते हैं, आखिर 18 दिसंबर का दिन कौन सी पार्टी को गुजरात चलाने का मैंडेट जनता देती है.
गुजरात में जाति समीकरण
कुल आबादीः 66056202 (2017 के अनुसार)
जाति/ धर्म                     प्रतिशत    आबादी
ब्राह्मण                             1.5         995133
बनिया                              1.5        995133
राजपूत                              5          3331111
पाटीदार (कडवा, लेउवा)      12         7961038
दलित                                 7          4343956
आदिवासी                           15        9951335
ओबीसी (147 जाति)              40        26536894
मुस्लिम                                9           5970801
अन्य(अल्पसंख्यक/
जैन, पारसी, क्रिश्चियन)              3         1990267
अन्य(सोनी, लोहाना, etc..)​         6         3980534
कुल                                     100      66056202

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