1996 में डॉक्टर मोहम्मद जोबायेर चिश्ती ने बांग्लादेश के सिलहट मेडिकल कॉलेज के शिशु चिकित्सा विभाग में प्रशिक्षु के तौर पर काम करना शुरू किया था. उस रात उन्होंने तय किया कि वो निमोनिया से बच्चों को बचाने के लिए कुछ ना कुछ करेंगे.
हर साल करीब 9 लाख 20 हज़ार बच्चे निमोनिया से दुनिया भर में मारे जाते हैं जिसमें से ज्यादातर मौतें दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ़्रीका में होती हैं.
दो दशकों के शोध के बाद अब डॉक्टर चिश्ती ने एक कम लागत वाले उपकरण तैयार किया है जिससे हज़ारों बच्चों की ज़िंदगियां निमोनिया से बचाई जा सकती है.