आइसोलेशन वार्ड है क्या, जहां कोरोना वायरस के मरीजों को रखा जाता है?

दुनियाभर मे वैश्विक महामारी बनकर फैले कोरोना वायरस के खौफ की वजह से कई राज्यों में स्कूल कॉलेज बंद करने का फैसला लिया गया है।

Update: 2020-03-13 11:51 GMT

चीन के वुहान शहर से फैले कोरोनावायरस ने दुनियाभर में अब तक 3100 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है और इस पर उतना काबू नही पाया गया जितना काबू पाया जाना चाहिए फिर भी कोरोना वायरस को रोकने के लिए सरकार ने हर कदम पर प्रयास करने में लगी है। भारत में कोरोनावायरस संक्रमितों की संख्या बढ़कर 77 हो गई है। इस बीच लोगों में भय का माहौल है। तो महामारी बनकर फैले कोरोना वायरस के खौफ की वजह से कई राज्यों में स्कूल कॉलेज कुछ दिनों के लिए बंद करने का फैसला किया है।

ऐसे में बीमारी से निपटने के लिए कई चरण तैयार किए गए हैं संदिग्ध लगने वाले मामलों में मरीज के सैंपल लेकर जांच के लिए अलग लैब में भेजे जाते हैं. रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर मरीज को आइसोलेशन में रखा जाता है. अस्पताल के इस कमरे में इंफेक्शन कंट्रोल के सारे प्रोटोकॉल पूरे किए जाते हैं. यहां सिर्फ कोरोना के मरीजों को रखा जा रहा है ताकि उनकी सांस, थूक या बलगम से संक्रमण न फैले।

आइसोलेशन वार्ड क्या है 

इन मरीजों को "respiratory isolation" में रखा जाता है. यानी इनके वार्ड में कोई भी बगैर N-95 रेस्पिरेटर मास्क लगाए बिना प्रवेश नहीं कर सकता. N-95 एक खास तरह का मास्क है जो हवा में पाए जाने वाले 95 प्रतिशत बैक्टीरिया और वायरस को फिल्टर कर देता है. आइसोलेशन रूम को निगेटिव प्रेशर रूम माना जाता है, जहां मरीजों को संभालने के लिए किसी भी किस्म की अफरातफरी न हो और पर्याप्त स्टाफ हो. इस कमरे के दरवाजे हरदम बंद रहते हैं. एकदम खास तरह के इन कमरों को इस तरह से तैयार किया जाता है कि यहां की हवा बाहर नहीं जा सकती है. यहां तक कि आसपास के कमरों या कॉरिडोर में भी इस कमरे की हवा नहीं फैल सकती है. मरीजों की देखरेख करने वाला अस्पताल स्टाफ मास्क, गाउन, और आंखों पर खास किस्म का चश्मा पहनता है ताकि संक्रमण से बचा जा सके।

कब रखा जाता है मरीज को इस कमरे में

रेस्पिरेटरी डिसीज से जूझ रहे हर मरीज को इस रूम में नहीं रखा जाता, बल्कि ये देखा जाता है कि मरीज के लक्षण कितने गंभीर हैं और वो सोशली कितना एक्टिव है. अगर मरीज लगातार खांस या छींक रहा है और तेज बुखार है तो उसे आइसोलेशन में तुरंत रखा जाता है. जब तक ये लक्षण सामने नहीं आते हैं, उसे पैरासीटामोल देकर घर पर ही सेल्फ क्वेरेंटाइन में रहने को कहा जाता है. इस दौरान मरीज घर पर रहता है लेकिन सबसे अलग-थलग रहता है. यहां तक कि उसका टॉयलेट, तौलिया, खाने के बर्तन, कंघी और दूसरी टॉयलेटरीज भी अलग कर दी जाती हैं।


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