आईपीएस अजय पाण्डेय ने लिखा मानव जीवन का सच, जीवन वन है; वन रहने दो, मानव को मानव रहने दो

क्यों बटोरते कंकड़ पत्थर, जीवन को जीवन रहने दो !

Update: 2020-10-11 06:24 GMT

अजय कुमार पाण्डेय 

आज जीवन का सार ही बदलता नजर आ रहा है. जब जीवन का सार बदल जाएगा तो सब कुछ ही बदला बदला सा नजर आना शुरू हो जाएगा. जिससे हम सबके मन में विकार उत्पन्न हो जायेगा. जो सबका जीवन ही बदल देगा. अर्थात जीवन वन है उसको वन रहने दो. उसमें फसल रूपी पेड़ अपने आप उत्पन्न हो जायेंगे. जिससे मानव रूपी पेड़ का निर्माण होता है जो सबको प्रिय होता है. मानव बनिये.

...जीवन वन है

जीवन वन है; वन रहने दो !

मानव को मानव रहने दो !

*क्यों बटोरते कंकड़ पत्थर, *

जीवन को जीवन रहने दो !

वन में शांति रहती है, वन में पग पग पर ख़तरे भी रहते हैं; इसलिए वन में जीवित रहने के लिए सदा सतर्क रहना पड़ता है। असली जीवन भी ऐसा ही एक वन है। पर, वर्तमान में मानव को वन की अपेक्षा बहुत ढेर सारी सुविधाएँ मिली हुई हैं, उसके बावजूद भी उसके मन की शांति में बहुत कमी आई है, जो कि एक विचारणीय विन्दु है।

हमने अपनी नैसर्गिक मनोस्थिति को खो दिया है। हमारी नैसर्गिक मनोस्थिति शांति और आनन्द की है। हम भौतिकता में, क्षणिक सुखों की तलाश और अभ्यास में, ईंट-कंकड़-पत्थर-ज़मीन-मकान-दूकान-सोना-चाँदी खोजने-सँभालने में इतने मशगूल हो गए हैं कि ख़ुद को भी भूल बैठे हैं। इसलिए, यह ज़रूरी है कि हम ज़रा ठहरें, ख़ुद को देखें, ख़ुद के यात्रा-पथ को निहारें और विचारें कि क्या हम उस मंज़िल की तरफ़ जा रहे हैं जहाँ जाने को कभी सोचा था; या हम भीड़ में भटक गए हैं...

लेखक यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी है इस समय मैनपुरी पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात है. 

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