विनय मौर्या
प्रचंड गर्मी के तपिश के बाद होने वाली बरसात का पानी जब सुखी धरती से टकराता है तो एक सोंधी सी खुश्बू नथुनों में उतर जाती है। यह आम अहसास हो न हो मगर प्रेम विह्लल जोड़ों के लिए यह एक मस्ताना लुभावना अहसास होता है।
रिमझिम आवाज के साथ हल्की-हल्की बूंदाबांदी प्रेम अगन में मगन करने के लिए पर्याप्त होता है। नवविवाहित जोड़ों के लिए यह यादगार पल होता है। जिसे पुरुष भले ही भुला दे,मगर ढलते उम्र के साथ महिलाएं अपनी स्मृतियों में संजोय रखती हैं।
वहीं सामान्य महिलाओं से इतर यह तमाम खुशनुमा मौसम, माहौल उन महिलाओं के लिए एक जैसा होता है। जिनके पति फौज या अर्धसैनिक बलों में होते हैं। उनके लिए जाड़े की सर्द शाम हो या सावन की पहली फुआर,उनके साजन का उनको नहीं हो पाता है दीदार।
वह कुछ कहें न कहें मगर उनके अंतर्मन में । सूफ़ी गीत पिया रे...पिया रे...पिया रे...पिया रे...थारे बिना लागे नाहीं म्हारा जिया रे...बजता रहता है।
उनके जीवन में सावन की पहली फ़ुहार है। पिया जी दूर किसी नक्सल आतंक निरोधक कार्यवाही की योजना में व्यस्त हैं। उन्हें इतनी भी फुर्सत नहीं होती कि फोन की बजती घन्टी पर हेल्लो कैसी हो कह दें।
मौसम सर्द और गुलाबी ठंड है,पता चला कि अल्लसुबह ही पिया जी काम्बिंग पर निकल गए हैं। जहां उनसे संपर्क साधना भी मुश्किल है। ऊपर से काम्बिंग से वापसी करने तक दिल में धुकधुकी सी बनी रहती है। तब "उन्हें दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है"।
जब दीपावली की आतिशबाजी हो रही है। तब उन्हें पता चलता है कि आतिशबाजीयों के धूम धड़ाके से अलग पिया जी नक्सलियों आतंकियों से मोर्चा ले रहे होते हैं। आईएएस पीसीएस की पत्नियां होना आसान होता है।
मगर एक सैनिक की पत्नी बनने के लिए सैकड़ों अरमानों को ख़ाक करना पड़ता है।
ऊपर से जल्दी छुट्टी नहीं मिलती। अगर पति छुट्टी से आ भी गया तो पत्नि की पति
से चिरौरी होती है कि
"जाए नौकरी पर अबहीं ना कहिये बलम जी।
एगो छुट्टी लेके कुछ दिन रहिये बलम जी"
फिर भी पति जाने के लिए बैग पैक करता है तो चिढ़ के उनका मन "रेलिया बैरंग पिया को लिए जाय रे,बरसे पानी टिकस गल जाय रे" कहने लगता है।
अंत में घड़ी के टिकटिक और ट्रेन की छुक-छुक पर दिल से एक ही आवाज़ आती है। तुम कब आओगे...कहो कब आओगे।