बीजेपी के दिग्गजों को मिल रही है कड़ी टक्कर, चुनाव में जीत नहीं आसान

Update: 2019-04-25 07:23 GMT

 लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी के ज्यादातर प्रत्याशी 1 लाख से ज्यादा मतों से जीते थे. लेकिन इस बार गिनी-चुनी सीटों को छोड़कर जीत का अंतर हजारों तक सिमट जाएगा। कुछ सीटों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी सीटों पर कड़ा मुकाबला है। जिनमें बीजेपी के मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह को जबलपुर, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को मुरैना और नंदकुमार चौहान को खंडवा में कांग्रेस प्रत्याशी कड़ी टक्कर दे रहे हैं। हालांकि खंडवा एवं मुरैना में कांग्रेस ने उन्हीं प्रत्याशियों को उतारा है, जिन्हें बीजेपी के मौजूदा प्रत्याशी पिछले चुनावों में बड़े अंतराल से चुनाव हरा चुके हैं

मुरैना संसदीय क्षेत्र में बीजेपी के नरेन्द्र सिंह तोमर के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व विधायक रामनिवास रावत को उतारा है। रावत चार महीने पहले विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। इतना ही नहीं वे 2009 में भी तोमर के खिलाफ मुरैना से ही लोकसभा चुनाव लड़े थे, तब तोमर ने रावत को हराया था। वे इस बार फिर तोमर के खिलाफ चुनाव मैदान में है। लेकिन इस बार मुरैना संसदीय क्षेत्र के जातिगत समीकरण बिल्कुल बदले हुए हैं। यहां गुर्जर, ब्राह्मण समाज भाजपा से बेहद नाराज है। जिसकी वजह विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दोनों समाज के प्रतिनिधियों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी। वहीं पिछड़े वर्ग के अन्य समाज भी बीजेपी से नाराज है। जिसका नुकसान बीजेपी को चुनाव में उठाना पड़ सकता है। हालांकि मुरैना से बसपा के टिकट पर हरियाणा के पूर्व मंत्री करतार सिंह भड़ाना चुनाव मैदान में है, बीजेपी से नाराज मतदाता खासकर गुर्जर समाज का वोट करतार के पक्ष में जाने से भाजपा को फायदा हो सकता है। पहले बसपा ने पूर्व सांसद रामलखन सिंह कुशवाह को उतारा था, लेकिन कुशवाह चुनाव लडऩे से पीछे हट गए। हालांकि इसके पीछे की वजह जातिगत समीकरण बताई जा रही है।

जबलपुर से कांग्रस ने राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा को प्रत्याशी बनाया है, चूंकि तन्खा जमीनी नेता नहीं है और न हीं उनकी मतदाताओं में मजबूत पकड़ है। इसके उलट राकेश सिंह से भी स्थानीय मतदाता ज्यादा खुश नहीं है। राकेश को सबसे ज्यादा खतरा भितरघात और बागियों से है। सोमवार को ही भाजयुमो के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष धीरज पटेरिया कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। पटेरिया की जबलपुर में मजबूत पकड़ है, वे राकेश को हराने की खुली चुनौती दे चुके हैं। इससे पहले पटेरिया ने विधानसभा चुनाव में भी भाजपा प्रत्याशियों को कराने की चुनौती दी थी। नतीजे भाजपा के खिलाफ ही आए थे। जबलपुर संसदीय क्षेत्र में इस बार राकेश सिंह के व्यवहार से जनता नाखुश बताई जा रही है। इस बार मुकाबला कड़ा है, जिस वजह से राकेश सिंह के लिए जीत की राह आसान नहीं लग रही है।

भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार चौहान खंडवा से फिर चुनाव मैदान में है। क्षेत्र में सरल एवं जनता के सीधी पकड़ रखने वाले नंदकुमार चौहान का इस बार विरोध भी है। हालांकि कांग्रेस के अरुण यादव भी इतने मजबूत दिखाई नहीं दे रहे हैं। लेकिन नंदकुमार को भितरघात का ज्यादा खतरा है। बुरहानुपर क्षेत्र से बीजेपी नेता नंदकुमार चौहान के खिलाफ खुलकर चुनाव मैदान में है। जिसकी वे संगठन के समक्ष भी शिकायत दर्ज करा चुके हंै। हालांकि भाजपा सूत्र बताते हैं कि विधानसभा चुनाव के दौरान नंदकुमार के समर्थकों ने बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ काम किया था। यहां बता दें कि नंदकुमार चौहान और वरिष्ठ बीजेपी नेत्री अर्चना चिटनीस के संबंध फिलहाल मधुर नहीं है। जिसका बीजेपी को लोकसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा सकता है।

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