दिल के अरमां आंसुओं में बह गए, वेबफाई करके भी तन्हा रह गए!

उनका फ़िलहाल राज्यसभा भी क्लियर नही हो पाया जबकि अधिकतर लोग राज्यसभा सासंद निर्विरोध निर्वाचित हो चुके थे. अब उनका मंत्री बनना भी मुश्किल नजर आ रहा था.

Update: 2020-04-13 02:52 GMT

मध्यप्रदेश में बीते माह मार्च में एक बड़ा उलट फेर हुआ जिसके मुताबिक कांग्रेस के प्रदेश के कद्दावर नेता और ग्वालियर किले के महाराज ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस से अपना इस्तीफा दे दिया. उसके बाद राज्य में कार्य कर रही कांग्रेस नीति कमलनाथ सरकार धराशाई हो गई. जिसका कारण भी महाराज थे. 

लेकिन एक बात बताई जाय यह सब खेल कांग्रेस के सरकार के पूर्व मुखिया रहे दिग्विजय सिंह के चलते हो रहा था. चूँकि महाराज के मुखर विरोधी रहे दिग्विजय सिंह की सरकार में अब चलने लगी थी जबकि महाराज समर्थक मंत्रियों की भी बात नहीं सुनी जाती थी. इसके चलते एक दिन महाराज समर्थक बाईस विधायक रातोंरात भोपाल से बैंगलूरू पहुँच गए और मेल से अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया. उसके बाद अल्पमत में आई कमलनाथ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक़ बहुमत सिद्ध होने से चंद घंटे पहले इस्तीफा दे दिया. 

इस दौरान महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थाम लिया और बीजेपी ने मध्यप्रदेश से उन्हें राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया. उनका केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री बनना भी तय हो गया. लेकिन कुदरत को कुछ और मंजूर था. देश में कोरोना नामक महामारी फ़ैल गई और राज्यसभा का चुनाव स्थगित हो गया. उनका फ़िलहाल राज्यसभा भी क्लियर नही हो पाया जबकि अधिकतर लोग राज्यसभा सासंद निर्विरोध निर्वाचित हो चुके थे. अब उनका मंत्री बनना भी मुश्किल नजर आ रहा था. 

उधर उनके समर्थक विधायक भी अब अपना इस्तीफा देकर मायूस जरुर हो रहे होंगे क्योंकि मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह ने शपथ ग्रहण तो कर ली लेकिन मन्त्रिमंडल का विस्तार नहीं किया और अब होना भी मुश्किल दिख रहा है. 

तो अब महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया पर यह लाइने सटीक बैठती है कि दिल के अरमा आंसुओं में बह गए हम वेवफाई करके भी तन्हा रह गये. ...

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