शहीदों की छाती पे श्राप का सियासी विलाप...!Hindi News, Latest News, National news
आतंक के आरोपों में कैद एक महिला बरसों से जेल की सलाखों में है, उसके मुंह से, दिल से आत्मा से कोई आह, कोई बद्दुआ, कोई श्राप नहीं निकला.. एक और ऐसा ही मामला, कैद में एक और महिला... पूछताछ, पुलिसिया कार्यवाही, किसी सख्ती के बदले मन से निकली बद्दुआ का असर ये कि किसी की जान चली गई, बेमौत मारे गए हेमन्त करकरे को देश के दुश्मनों से छलनी होना पड़ा.. और उनकी शहादत पर अब बरसों बाद सियासी आंसुओं की बौछार होने लगी है...
किसी बद किरदार इंसान की मौत के बाद भी उसे बुरा कहने से गुरेज किया जाता है, किसी की बुराई, गलती या गुनाह को दुनिया से छिपाना भी ईश्वर की नज़र में किसी पुण्य से कम नहीं होता... लेकिन देश की खातिर शहादत देने वाले हेमंत की लाश पर अब बद्दुआओं की भट्टी जलाई जाने लगी है.. सियासी हसरतों को पूरा करने के लिए मानवीय संवेदनाओं को दूर फेंक देने वाले तपस्वियों के लिए आमजन की निष्ठा की उम्मीद निर्थक ही कही जा सकती है...
दुनिया त्यागे लोगों से दुनियावी लोगों की अपेक्षा और आस्था बढ़ने की एक ही वजह हो सकती है कि वे शायद ईश्वर के नजदीकी माने जाने लगते हैं... लेकिन एक हाथ से ईश्वर की डोर थामे होने का ढोंग और दूसरी तरफ मन में दुनिया को बेवकूफ बनाने की मंशा रखने वाले कभी किसी मंज़िल पर न पहुँचने का लम्बा इतिहास रखते हैं.. राजधानी में चल रहे धार्मिक+सात्विक+सियासी ड्रामे की पर्दा गिराई निश्चित तौर पर एक ऐसे जनादेश के रूप में होने वाली हैं, जो अंध भक्तों की आंखों पर बंधी पट्टी भी खोलेगा, सियासी साधुओं की मंशा का हरण भी करेगा और इस शहर की गंगा-जमुनी तहजीब को बचाने की तहरीर भी लिखेगा..
पुछल्ला
चट मंगनी, पट ब्याह...!
राजधानी भोपाल, चार महीने में एक ही हालात को दूसरी बार देख रहा है। पार्टी भी वही, पार्टी से चुने जाने वाली भी दोनों महिलाएं। विधानसभा और लोकसभा दोनों में तय किए गए केंडिडेट सुबह सदस्यता और शाम टिकट के सौभाग्य पर खरे उतरे हैं। बदकिस्मती उन कार्यकर्ताओं की गहराती नजर आ रही है, जो डंडे, झंडे, जाजम उठाने-बिछाने में जिंदगी की आहुति दे चुके हैं।