संविधान दिवस : 70 साल में संविधान ने जो उपलब्धि हासिल की उसके लिए नागरिक सराहना के पात्र: राष्ट्रपति कोविंद

संविधान दिवस पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर ने संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया

Update: 2019-11-26 09:02 GMT

नई दिल्ली : संविधान दिवस के मौके पर मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि हमने अपने संविधान में विश्व के कई संविधानों की उत्तम व्यवस्था को बखूबी अपनाया है। इसके लिए सभी देशवासी सराहना के पात्र हैं। मोदी ने कहा कि 1947 में आजादी के बाद हम गणतंत्र हुए यह बात बाबा साहेब अंबेडकर ने याद दिलाई। 1950 के बाद देशवासियों ने संविधान पर कभी आंच नहीं आने दी। संविधान की इसी मजबूती के कारण हम एक भारत-श्रेष्ठ भारत बना पाए।

राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, ''70 साल पहले आज के दिन हम भारत के लोगों ने संविधान को अंगीकृत किया था। संविधान दिवस मनाना इसके शिल्पि के प्रति श्रद्धांजिल है। हमारे संविधान निर्माताओं ने दूरदर्शी और परिश्रम के द्वारा कालजयी प्रति का निर्माण किया, जिसमें हम सभी नागरिक सुरक्षित हैं। यह हमारा मार्गदर्शन करता है। इसी साल देशवासियों ने चुनाव में हिस्सा लिया। मतदान में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर रही। लोकसभा में 78 महिलाओं का चुना जाना गौरव की बात है।''

''25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में अपना अंतिम भाषण देते हुए डॉक्टर आंबेडकर ने कहा था कि संविधान की सफलता भारत की जनता और राजनीतिक दलों के आचरण पर निर्भर करेगी। डॉ अंबेडकर ने सभा के एक भाषण में 'संवैधानिक नैतिकता' के महत्व को रेखांकित करते हुए इस बात पर जोर दिया था कि संविधान को सर्वोपरि सम्मान देना और वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर, संविधान-सम्मत प्रक्रियाओं का पालन करना, 'संवैधानिक नैतिकता' का सार-तत्व है।''

'संविधान में मूल्यों का समावेश और चुनौतियों का समाधान भी'

मोदी ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने 1950 में याद दिलाया था कि हम गणतंत्र बन गए हैं और इस आजादी को बनाए रख सकते हैं। 130 करोड़ भारतीयों के प्रति नतमस्तक हूं, उन्होंने कभी इसे झुकने नहीं दिया। देशवासियों ने कभी संविधान पर आंच नहीं आने दी। संविधान की मजबूती के कारण एक भारत-श्रेष्ठ भारत बना पाए। 70 साल पहले आज के दिन संविधान के एक-एक अनुच्छेद पर चर्चा हुई। यह सदन ज्ञान का महाकुंभ था। राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, हंसा मेहता, गोपाल स्वामी आयंगर ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष योगदान देकर यह महान विरासत सौंपी है। संविधान की भावना एक पंथ है। यह हमारा पवित्र ग्रंथ है। ऐसा ग्रंथ जिसमें हमारा जीवन, मूल्य, व्यवहार, परंपरा आदि का समावेश हैं। साथ ही इसमें चुनौतियों का समाधान भी है। संविधान में अधिकारों के साथ कर्तव्यों का अनुपालन भी है। राजेंद्र बाबू ने कहा था कि जो संविधान में जो लिखा नहीं है, उसे हम आपसी सहमति से पूरा करेंगे।

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