गांधी जी के बारे में गलतफहमी न फैलाएं !

गांधी जी के बारे में बिना गहराई से पढ़े और विचार किए कुछ लोग उनके विरुद्ध अनर्गल टिप्पणियां करते रहते हैं।

Update: 2018-05-09 07:11 GMT
Mahatma Gandhi
अवधेश कुमार
गांधी जी के बारे में बिना गहराई से पढ़े और विचार किए कुछ लोग उनके विरुद्ध अनर्गल टिप्पणियां करते रहते हैं। इस समय जिन्ना तस्वीर विवाद में मैंने सोशल मीडिया पर ऐसे-ऐसे विचार पढ़ रहा हूं जिनसे मन दुखी हो जाता है। कुछ लोग गांधी जी को ही भारत विभाजन के लिए जिम्मेवार साबित कर रहे हैं। वे उस समय की घटनाओं का ऐसा एकपक्षीय विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं जिनसे गांधी जी जैसा महात्मा खलनायक नजर आने लगता है।

भारत विभाजन का इतिहास बड़ा जटिल है। उस समय के कांग्रेस का जो निर्णायक नेतृत्व था उसमें से आप जिसकी भी भूमिका का इस नजरिए से विश्लेषण करेंगे कि वह विभाजन के लिए जिम्मेवार था या नहीं वहीं आपको जिम्मेवार नजर आ जाएगा। उस समय की परिस्थितियां ही ऐसी थीं। कांग्रेस में दो नेता मुख्य निर्णायक की भूमिका में थे-प. जवाहरलाल नेहरु और सरदार पटेल। बहुत सारे नेता कांग्रेस के अंदर एवं जो कांग्रेस में नहीं थे वे अपने-अपने तरीके से विभाजन का विरोध कर रहे थे। कुछ संगठन भी विरोध कर रहे थे। किंतु लार्ड मांडटबेटन के सामने मुख्य पक्ष कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग ही था। कांग्रेस में वे मुख्यतः नेहरु एवं पटेल से बात करते थे तथा मुस्लिम लीग की ओर से मुख्य व्यक्ति जिन्ना थे।

गांधी जी हालांकि तकनीकी तौर पर उस समय कांग्रेस के सदस्य नहीं थे, लेकिन उनको कांग्रेसी ही माना जाता था। अगर उस समय के सरकारी दस्तावेज पढ़ेंगे तो साफ हो जाएगा कि गांधी जी ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी कि स्वतंत्रता अखंड भारत को मिले। भारत विभाजन को रोकने की जितनी कोशिश वे कर सकते थे किया। किंतु कांग्रेस के नेता ही उनकी बात नहीं मान रहे थे। उन्होंने नेहरु एवं पटेल को मनाने का जितना संभव था प्रयास किया। जिन्ना के सामने भी हाथ जोड़े। वे कई बार माउंटबेटन के पास गए कि आप अखंड भारत को स्वतंत्रता दे दीजिए। खूब बहस की। लेकिन उस समय का ऑफिसियल माइन्यूट्स बताता है कि कांग्रेस की ओर से नेहरु और पटेल ने माउंटबेटन को बता दिया कि गांधी जी की अखंड भारत की बात अब व्यावहारिक नहीं है, इसलिए उसे मानने की जरुरत नहीं है। हालांकि वे न बताते तो भी माउंटबेटन अंग्रेजों की नीति के तहत ही काम करते।  

सच यह है कि गांधी जी उस समय निस्सहाय हो गए थे। जब उनको कोई चारा नहीं सूझा तो वो अंतिम बार माउंटबेटन के पास गए और कहा कि आप एक सैनिक हैं। अपनी जमीर को झकझोड़िए। आप कह रहे हैं कि हिन्दू मुसलमान इकट्ठे होकर आएं। इस समय ऐसी स्थिति नहीं है कि ये एक साथ आ सकें। इसलिए आप स्वतंत्रता की घोषण कर दीजिए। लेकिन उनकी एक न चली। न माउंटबेटन उनकी बात मानने को तैयार थे, न नेहरु एवं पटेल और न जिन्ना ही। फिर गांधी जी क्या करते। किंतु उनके मन में अखंड भारत का ही सपना था। वे अपना दुख किससे बताते? इसलिए मैं आग्रह करुंगा की गांधी जी के बारे में उल्टी-पुल्टी बातें करके गलतफहमी न फैलाई जाए। अगर उनकी निर्मम हत्या न हुई होती तो वे विभाजन के बाद भी भारत पाकिस्तान को एक करने की कोशिश जारी रखते।

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