राष्ट्रपति भवन की अपनी भव्यता है। उसका अपना ऐश्वर्य, वैभव और सौंदर्य है। उसकी अपनी शानो-शौकत है। लेकिन उसकी विराटता में पूरे भारत की विराटता समाहित है। उसमें भारत का लोकतंत्र भी समाया हुआ है। हमारा लोकतंत्र जैसे-जैसे मजबूत और परिपक्व होता जाएगा, वैसे-वैसे देश के प्रथम नागरिक के घर का दरवाजा भी "खास" के साथ-साथ "आम" के लिए भी खुलता जाएगा।
सोमवार, 16 अक्टूबर 2017 को भारत यात्रा के समापन के अवसर पर राष्ट्रपति भवन में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। उसके दरवाजे भारत के उन वंचित बच्चों के स्वागत और सम्मान के लिए खोल दिए गए जो शोषण और हिंसा के शिकार रहे हैं और "सुरक्षित बचपन, सुरक्षित भारत" का सपना आंखों में लिए नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में भारत में 12,000 किलोमीटर का सफर तय करके दिल्ली पहुंचे हैं। विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर रचित राष्ट्रगान "जन-गण-मन…" जब बैंड-बाजों की धुन में राष्ट्रपति भवन में बजना आरंभ हुआ, तो यह शिद्दत से अहसास किया जा रहा था कि "जन-गण" के "मन" का आज सही मायने में यहां प्रतिनिधित्व हो रहा है। राष्ट्रपति भवन के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि यौन शोषण और हिंसा के शिकार 100 से ज्यादा बच्चे महामहिम से मिले और रेड लाइट इलाके से मुक्त कराई गई एक बच्ची मनीषा ने उनके साथ मंच भी साझा किया।
सोमवार को भारत यात्रा का समापन राष्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक केंद्र में महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद के हाथों संपन्न हुआ। इस अवसर पर उन्होंने उन वंचित बच्चों के नाम पर एक दीया भी जलाया, जिनके जीवन में अंधेरा है। इस मौके पर श्री कैलाश सत्यार्थी ने लोगों से अपील की कि वे भी इस दीवाली पर उन गुमनाम बच्चों के नाम एक दिया जलाएं जिनका बचपन गुलामी और शोषण की चाहरदीवारी में कैद है। महामहिम के साथ नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी और बाल अत्याचार की शिकार रही सुश्री मनीषा भी थी। भारत यात्रा के समापन के अवसर पर उसके प्रभाव को दर्शाती एक छोटी सी फिल्म भी दिखाई गई। समारोह में यौन शोषण और अत्याचार की शिकार रही दो बच्चियों और एक बच्चे ने भी अपनी व्यथा को महामहिम, भारत यात्रियों और अतिथों से साझा किया और कहा कि शिक्षा ने ही उन्हें आज सवाल करना सिखा दिया है। मनीषा, तारा बंजारा और मनीष ने लोगों को संबोधित करते हुए बाल हिंसा के अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की भी मांग की।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बाल यौन शोषण और दुर्व्यापार के खिलाफ देशव्यापी भारत यात्रा निकालने के लिए श्री कैलाश सत्यार्थी और उनके भारत यात्रियों को बधाई देते हुए कहा कि हजारों बच्चों के जीवन को संवारने वाले श्री सत्यार्थी की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह बहुत ही कम है। उन्होंने कहा कि बच्चों की जब बात चली है तो मुझे भी अपने बचपन की याद आ रही है। उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि ग्रामीण परिवेश में बच्चों के लिए शिक्षा प्राप्त करना बहुत ही कठिन होता है। गांव में बचपन आसान नहीं होता। बच्चों का जीवन वहां बहुत ही कष्टप्रद होता है। ऐसे में बाल हिंसा, बाल यौन शोषण और दुर्व्यापार के खिलाफ श्री सत्यार्थी ने एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि बाल विवाह भी एक बड़ी सामाजिक बुराई है। बाल यौन हिंसा एक ऐसी सामाजिक विकृति है जिसको देखकर माता-पिता भी कहते हैं कि यह हमारी संस्कृति और परंपरा के खिलाफ है, फिर भी वे इस बुराई के खिलाफ चुप रह जाते हैं। वे यहां अपनी मान-मर्यादा और इज्जत का हवाला देकर अपनी संतानों को चुप रहने की नसीहत दे देते हैं।
महामहिम ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि श्री सत्यार्थी ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है और समाज का ध्यान बाल अधिकारों की ओर दिलाकर एक महत्वपूर्ण काम किया है। उन्होंने इस अवसर पर नोबेल विजेता से कहा कि 2022 में आजादी की जब 75वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी चल रही है. ऐसे में वे बच्चों के लिए एक रोडमैप तैयार करके भारत सरकार को सौंपे, क्योंकि बच्चों के अधिकारों के बगैर इस देश का विकास और निर्माण अधूरा होगा। केंद्र सरकार मेक इन इंडिया के तहत 2022 तक सुख सुविधा से लैस एक नए भारत के निर्माण में जुटी है। लेकिन अगर हम बच्चों का बचपन सुरक्षित नहीं कर पाए तो आजादी का यह जश्न अधूरा रहेगा।
उन्होंने कहा कि यहां तीन बच्चों ने जो अपनी आपबीती सुनाई है उसको आज पूरा देश जान गया है। बच्चों के लिए सुरक्षित भारत बनाने में जुटे ये बच्चे ही असली राष्ट्र निर्माता हैं। उन्होंने कहा कि इंसानों की शक्ल में हैवान आज भी हमारे बच्चों का जीवन तबाह कर रहे हैं। महामहिम ने वैज्ञानिक प्रगति के युग में नैतिकता और संवदेनशीलता की पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि अगर इस देश का एक भी बच्चा असुरक्षित है तो यह देश के प्रत्येक नागरिक के माथे पर कलंक है। उन्होंने कहा कि भारत यात्रा के जरिए श्री कैलाश सत्यार्थी ने बाल हिंसा के खिलाफ पूरे देश को जागरुक और संवदेनशील बनाने का जो काम किया है हम उसके लिए पूरे देश की ओर से कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास में देश के नव-निर्माण के लिए कई लोगों ने यात्राएं आयोजित की है। भारत यात्रा को भी हम ऐसी ही ऐतिहासिक यात्रा की श्रेणी में रखते हैं और पूरे देश की संवदेनशीलता और जागरुकता ही "सुरक्षित बचपन, सुरक्षित भारत" का निर्माण करेगी। अपनी बात को खत्म करते हुए उन्होंने कहा कि हम एक ऐसे भारत का निर्माण करेंगे, जिसमें बाल यौन शोषण और दुर्व्यापार की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी।
नोबेल शांति विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी ने समापन समारोह में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आज भारत के प्रथम नागरिक के घर का दरवाजा समाज के हाशिए पर खड़े उन बच्चों के लिए खुल गया है, जिनकी कोई आवाज नहीं है। यात्रा में शामिल बच्चों के एक-एक कदम ने आज इतिहास रच दिया है और उन्होंने नए भारत के निर्माण की धुन छेड़ दी है। उन्होंने बाल यौन शोषण और दुर्व्यापार के खिलाफ भारत यात्रा को एक अहिंसक आंदोलन बताया और कहा कि यह चुप्पी और भय के खिलाफ एक सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति भी है। इस अवसर पर उन्होंने मनीषा की ओर संकेत करते कहा कि मेरी जानकारी में इतिहास में कोई ऐसा बच्चा नहीं है, जिसे जानवरों से भी कम कीमत पर खरीदा बेचा गया हो और वह राष्ट्रपति महोदय के साथ इस तरह मंच पर बैठा हो। बच्चों के लिए वर्तमान समय को उन्होंने विकट बताया और लोगों से बचपन को सुरक्षित करने की अपील भी की। उन्होंने कहा कि बच्चे आज सम्मान और गरिमा की मांग कर रहे हैं।
नोबेल विजेता ने इस मौके पर यात्रा के दौरान बाल हिंसा के शिकार रहे उन बच्चों की भी चर्चा की जिन्होंने उनसे प्रभावित और प्रेरित होकर अपने-अपने इलाकों में बाल अधिकारों के लिए काम करने की बात की। उन्होंने कहा कि बच्चों के हितों के लिए हमने भारत यात्रा के जरिए विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के लोगों, धर्मगुरुओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कॉरपोरेट हस्तियों और कानून और नीति-निर्माताओं को जोड़ कर इस मुद्दे पर एक राष्ट्रीय सहमति बनाने का प्रयास किया है। इसमें हमें सफलता भी मिली है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने भारत के बजट का बच्चों पर मात्र 4 फीसदी हिस्सा खर्च करने पर चिंता जाहिर की और एंटी ट्रैफिकिंग लॉ को जल्द से जल्द पास कराने की मांग की। उन्होंने ग्रीन ट्रिब्यूनल की तर्ज पर बच्चों के लिए एक नेशनल चिल्ड्रेन ट्रिब्यूनल बनाने की मांग के साथ-साथ बच्चों के लिए देश के हरेक जिले में एक्सक्लूसिव कोर्ट भी बनाने की पुरजोर वकालत की। अपनी बात को खत्म करते हुए श्री सत्यार्थी ने कहा कि आज महामहिम ने राष्ट्रपति भवन में बच्चों के नाम एक दीया जलाया है और हमें पूरा विश्वास है कि दीपावली के अवसर पर भारत के हर घर में "गुमनमा बचपन" के नाम पर एक दीया जलाया जाएगा।
सभा का संचालन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन की निदेशक श्रीमती ज्योति माथुर ने जोरदार अंदाज में किया और धन्यवाद ज्ञापन फाउंडेशन के प्रबंध निदेशक रीयर एडमिरल (सेवनिवृत्त) श्री राहुल स्रावत ने किया। श्री स्रावत ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए महामहिम राष्ट्रपति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की और कहा कि भारत यात्रा "सुरक्षित बचपन, सुरक्षित भारत" बनाने की एक शुरुआत है। सभा में नोबेल विजेता की धर्मपत्नी श्रीमती सुमेधा कैलाश की गरिमामयी उपस्थिति भी रही।
समापन समारोह के दूसरे चरण में शाम को दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनाट प्लेस के पालिका पार्क में भारत के चर्चित बैंड "इंडियन ओशन" की ओर से एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली में भारत यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई है, बल्कि अभी यह और आगे बढेगी. उन्होंने बच्चों के लिए एक ऐसी दुनिया बनाने की जरूरत पर बल दिया, जैसा माता-पिता के रूप में हम अपने बच्चों के लिए चाहते हैं। इस अवसर पर उन्होंने श्री कैलाश सत्यार्थी से कहा कि हम अपने बच्चों के लिए जैसी बेहतर दुनिया चाहते हैं वैसी दुनिया के निर्माण के लिए आप बार-बार हमें अपना कर्तव्य याद दिलाते रहें। अपनी बात को खत्म करते हुए उन्होंने कहा कि लोग चाहते हैं कि उनका आंदोलन ज्यादा से ज्यादा लंबा चले, लेकिन मैं चाहता हूं कि भारत यात्रा जल्दी से जल्दी खत्म हो और यह तभी संभव है जब बाल यौन शोषण और दुर्व्यापार समाज से जल्द से जल्द खत्म हो जाए।
इस अवसर पर श्री कैलाश सत्यार्थी ने भारत यात्रा की उपलब्ध्यिों पर प्रकाश डाला और कहा कि कैसे मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, पुलिस अधिकारियों, जजों, कॉरपोरेट हस्तियों और धर्मगुरुओं ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे बाल यौन शोषण और दुर्व्यापार को रोकने के लिए काम करेंगे। यहां उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारे सामने ये जो 100 से ज्यादा बच्चे बैठे हैं और जो कभी शोषण के शिकार रहे हैं, कभी भी बाल हिंसा के प्रति चुप नहीं बैठे। ये ऐसा प्रयास कर रहे हैं कि दूसरा कोई भी बच्चा इनकी तरह शोषण का शिकार न हो पाए।
कन्याकुमारी के विवेकानंद शिला स्मारक से 11 सितंबर, 2017 को शुरू हुई भारत यात्रा अपने लक्ष्य 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरते हुए लगभग 12 हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करके अब समाप्त हो चुकी है। बाल यौन शोषण और दुर्व्यापार के खिलाफ इस यात्रा में शामिल हो कर 12 लाख से ज्यादा लोग सड़कों पर उतरे।