Chandra Grahan 2018: चांद को क्यों कहा गया Super Blue Blood Moon?

Update: 2018-01-31 16:42 GMT
आज और आज से लगभग 150 बरस यानी शायद 1866 के आसपास, अमेरिका के लोगों ने सुपर ब्लू ब्लड मून का यह अद्भुत नजारा देखा होगा। तब भारत में अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में छिड़ी आजादी की पहली लड़ाई को लगभग 9 बरस बीत चुके होंगे। उस वक्त जब आसमान में यह संयोग बना था, उसी साल भारत के उड़ीसा प्रान्त में बेहद भयंकर अकाल भी पड़ा था, जिसमें लगभग 5 करोड़ भारतीय भूख-प्यास से तड़प तड़प कर मारे गए थे। ज्योतिष के मानने वाले शायद इस बार भी चांद की इस तिहरी युति को ऐसी ही किसी अच्छी या बुरी घटना के आगमन के संकेत के रूप में देखें। लेकिन विज्ञान इसे एक रेयर आकाशीय संयोग ही मानता आया है।

हालांकि इसके बाद 1982 में, यानी आज से 35 बरस पहले जब मैं सात बरस का था, तब अमेरिका में तो नहीं लेकिन धरती के कुछ हिस्सों में ऐसा ही सुपर ब्लू ब्लड मून देखा गया था।

जबकि सुपर ब्लू मून तो हर दो-तीन बरस में लोगों को दिखाई दे ही जाता है लेकिन सुपर ब्लू ब्लड मून की तिहरी विशेषता लिए हुए आज जैसा ही यह दृश्य अब 31 जनवरी 2037 में ही नजर आ सकेगा। यानी अब लोगों को इसके लिए डेढ़ सौ साल तक भले ही नहीं लेकिन कम से कम 19 बरस का लंबा इंतजार तो करना ही पड़ेगा।

मैंने यह विलक्षण दृश्य अपने 11 बरस के बेटे के साथ अपनी छत से खड़े होकर काफी देर तक निहारा। और इस विलक्षण पल का साक्षी बनने की यादगार के तौर पर अपने गूगल पिक्सेल फ़ोन से न सिर्फ इसका वीडियो बनाया बल्कि कई तस्वीरें भी खींची। फेसबुक लाइव से वीडियो बनाने के कारण उसमें ज़ूम नहीं हो पा रहा था इसलिए वीडियो में चांद की लालिमा और उसका बड़ा आकार स्पष्ट नजर नहीं आ सका।

लेकिन कैमरा में जब ज़ूम किया तो वाकई तस्वीरें बेहद अच्छी खिंच गईं। इन सभी तस्वीरों में चांद का आकार और उसका रक्त वर्ण साफ दिखाई दे रहा है।

जिनके पास अत्याधुनिक कैमरा होंगे, उनके पास तो वाकई ऐसे मनमोहक दृश्य की तस्वीरें और भी जबरदस्त आई होंगी। प्रकृति का हर रूप, हर रंग मुझे इसी तरह आकर्षित करता है। चाहे वह अथाह समंदर से जुड़ा दृश्य हो, विराट रेगिस्तान से जुड़ा, अंतरिक्ष या फिर पहाड़ों-नदियों-जंगलों से जुड़ा दृश्य हो। प्रकृति को किसी दार्शनिक की तरह निहारना और किसी वैज्ञानिक की तरह समझना मेरे जीवन का सबसे गहरा शौक रहा है।

अगर यह शौक भी मेरी जिंदगी में नहीं होता तो शराब-सिगरेट या अन्य नशों तथा किसी भी और तरीके के व्यसन या बुरी लत से दूर रहकर जिंदगी बिताने में वह रस नहीं आता, जो मुझे सादगी के जीवन के बावजूद आ जाता है। प्रकृति की खूबसूरती और शांति अगर मुझे इस तरह आकर्षित न कर पाती तो शायद मैं कई बरस पहले मीडिया की नौकरी से उकता कर योगी बन जाता। लेकिन अब ऐसा ख्याल भी दिल में नहीं आता।
"कूचे को तेरे छोड़कर, जोगी ही बन जाएं मगर,
जंगल तेरे, पर्वत तेरे, बस्ती तेरी, सेहरा तेरा...
कल चौदहवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा,
कुछ ने कहा ये चांद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा...
हम भी वहीं मौजूद थे, हमसे भी सब पूछा किये,
हम चुप रहे, हम हंस दिए मंजूर था पर्दा तेरा..."

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