सपा-बसपा गठबंधन, समाज हित या निजी हित! सुनकर उड़े सपा बसपा के होश, नहीं किया गठवंधन तो ....
चाँद फरीदी की ख़ास रिपोर्ट
आगामी लोकसभा चुनाव 2019 में अपना भविष्य संवारने के लिए मायावती और अखिलेश गठबंधन करने को बेकरार से नज़र आ रहे हैं. दोनों ही बीजेपी को रास्ते से हटाना चाहते हैं. सपा बसपा दोनों ही पार्टी मोदी के वर्चस्व ओर ख्याति के किले को ढाहने का प्रयास अवश्य करेंगे, क्योंकि बिहार और पंजाब इससे अछूते नही रहे है। 2019 में अलग अलग चुनाव लड़े तो सूबे से सूपड़ा साफ़ होना निश्चित है.
परन्तु प्रश्नन यह है कि क्या मायावती गेस्ट हाउस कांड को भूल जएगी.? क्या मायावती खुद पर हुए जानलेवा हमले को भूल कर सपा से हाथ मिलाएगी. ? यदि हाथ मिला तो क्या चुनाव में टिकट बटवारे पर सामंजस्य बन पाएगा.? लेकिन मायावती बिहार की तरफ़ देख कर आश्वस्त हो सकती है। कि नीतीश और लालू जैसे एक दूसरे के कट्टर विरोधी एक दूसरे से हाथ मिला सकते हैं तो फिर अखिलेश से हाथ क्यू नही मिलाया जा सकता है। दस साल सत्ता से बाहर रहने का मतलब मायावती ख़ूब समझती हैं औऱ यह भी समझती हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में खुद और पार्टी को ज़िंदा रखना है तो 2019 चुनाव में किसी न किसी पार्टी का साथ लेना पड़ेगा। एक मुख्य कारण यह भी है कि वर्तमान समय में बसपा पार्टी के अंदर कोई भी ऐसा मुस्लिम दिग्गज नेता नही है, जो मुस्लिम वोट पर सेंधमारी कर सके। वही कमोवेश सपा का भी यही हाल है जिसके चलते दोनो ही पार्टी का जातिगत समीकरण चरमरा चुका है.
सपा और बसपा का गठबंधन सिर्फ़ गठबंधन नहीं होगा.? यह दोनों पार्टी की सूझबूझ की अग्निपरीक्षा मानी जाएगी. क्युकी सपा बसपा का गठबंधन यदि हुआ, तो गठबंधन का मुखिया कौन होगा. सपा और बसपा के दोनों नेता राजनीतिक रूप से अतिमहात्वाकांक्षी हैं। लगता नही कि कोई एक दूसरे की सरपरस्ती में राजनीति कर पाएंगे. दूसरी औऱ एक अहम वजह यह है कि मायावती और अखिलेश में से कोई नेता ऐसा नहीं है, जिसका उत्तर प्रदेश से बाहर जानाधार हो. मायावती तो लोक सभा और विधान सभा दोनों में यूपी से साफ़ हो गई हैं, और सपा की हालत वेन्टीलेटर पर पड़े हुए मरीज़ से कम नही हैं.?यूपी में अस्तित्व बचाने के लिए गठबंधन माया और अखिलेश की मजबूरी हो सकती है परन्तु बंगाल में कांग्रेस, टीएमटी, लेफ्ट किस हद तक साथ आएंगे.? वही बिहार में सपा,बसपा, कांग्रेस, आरएलडी साथ आ सकते है. ?
सपा बसपा गठबंधन होता है तो मोदी विरोध के अलावा इस गठबंधन की विचारधारा औऱ घोषणापत्र क्या होगा. ये गठबन्धन केवल मोदी फैक्टर के विरुद्ध भोली भाली जनता के सामने क्या क्या वादे करेंगे ? बीजेपी प्रत्येक चुनाव में मोदी के चेहरे पर जीत रही है, औऱ मोदी की आक्रामक नीति के विरुद्ध यह गठबंधन कितना वोट हासिल कर सकता है, एक बड़ा सवाल है. यूपी मे करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस ने जो अपनी रिपोर्ट तैयार की है, उसके अनुसार कांग्रेस पार्टी की हिंदुत्व विरोधी छवि और मोदी का विरोध करना ही भारी पड़ा है।
कांग्रेस पार्टी भी अपनी सोच बदलने में काम कर रही हैं। यदि मोदी के विरोध में सपा-बसपा का गठबंधन होता है तो देखना यह होगा कि कौन कितनी लम्बी रेस का घोड़ा साबित हो सकता है .? कौन कितनी लम्बी राजनीतिक पारी खेलेगा यह तो दोनो पार्टी के मुखिया, वक़्क्त औऱ जनता जनार्दन तय करेंगें।