हरियाली तीज स्पेशल: जानिए पूजा करने का सही मुहूर्त और उसकी परंपराएं

Update: 2017-07-26 10:30 GMT

नई दिल्ली : आज हरियाली तीज का त्यौहार है। यह सावन महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को मनायी जाती है। इस दिन तृतीया तिथि सुबह 9 बजकर 57 मिनट से रात 8 बजकर 8 मिनट तक है। तीज के विधि विधान इसी समय किए जाएंगे।

बारिश के इस मौसम में वन-उपवन, खेत, संपूर्ण प्रकृति हरे रंग में रंगी रहती है इसलिए सावन की तृतीया को मनाए जाने वाले इस त्यौहार को 'हरियाली तीज' कहते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि सावन महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी चुना। शिव के वरदान से देवी पार्वती के मन में जो हरियाली छाई वह उस आनंद से झूम उठी थीं।

उत्तर भारत की स्त्रियों का यह प्रिय पर्व केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं बल्कि प्रकृति का उत्सव मनाने का भी दिन है। इस पर्व को श्रावणी तीज या कजरी तीज भी कहते हैं। इस साल यह बुधवार को यानी 26 जुलाई को पड़ रही है।

हरियाली तीज का महत्व और परंपरा

इस विशेष अवसर पर नवविवाहिताओं को उनके ससुराल से मायके बुलाने की परंपरा है। वे अपने साथ सिंघारा लाती है। साथ ही ससुराल से कपड़े, गहने, सुहाग का सामान, मिठाई और मेंहदी भेजी जाती है, जिसे तीज का भेंट माना जाता है।

इस पर्व में मेंहदी, झूला और सुहाग-चिह्न सिंघारे का विशेष महत्व है। स्त्रियां मेंहदी, जो कि सुहाग का प्रतीक है, से हाथों को सजाती हैं। विवाहित महिलाएं अपने सुखमय विवाहित जीवन और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति लिए यह व्रत रखती हैं। परंपरा के अनुसार योग्य वर की प्राप्ति के लिए कुंवारी कन्याएं भी यह व्रत रखती हैं।

हरियाली तीज में मायके से जो सुहाग सामग्री आती है उससे सुहागन श्रृंगार करती हैं। इसके बाद बालूका से बने शिवलिंग की पूजा की जाती है। बालूका से बने शिवलिंग की पूजा करने के पीछे मान्यता है कि देवी पार्वती ने वन में बालूका से ही शिवलिंग बनाकर उनकी तपस्या की थी।

इस पर्व में गांव-कस्बों में जगह-जगह झूले लगाए जाते हैं। कजरी गीत गाती हुई महिलाएं सामूहिक रुप से झूला झूलती हैं।

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