रहमतों औऱ बरकतों का महीना है माह ए रमजान, मौलाना अल्वी एजाज खांन

ramjan month of the muslim

Update: 2017-06-08 12:25 GMT
असदुल्लाह सिद्दीकी

सिद्धार्थ नगर।माह-ए-रमजान रहमतों और बरकतों का महीना है।आज से एक महीने का रोजा शुरू हो गया है। इसमें हर नेकी का कई गुना सवाब मिलता है। इबादत से राजी होकर खुदा बेपनाह रहमतें बरसाता है। 

इसी महीने में आखिरी नबी हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कुरआन शरीफ नाजिल हुआ था। इसलिए इस महीने में इबादत करने का कई गुना सवाब मिलता है।

खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना 'माह-ए-रमजान न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है।

उर्दू कैलेंडर के मुताबिक रमजान नौवां महीना है। इसी माह-ए-मुबारक में आसमानी किताब कुरआन नाजिल हुआ था। इसके अलावा तौरेत, जबूर, इंजील आसमानी किताबें भी इसी माह-ए-मुबारक में उतारी गईं।

रमजान महीने का  कुरआन-ए-मुकद्दस से गहरा रिश्ता है।
बखिरा के ग्राम पंचायत हारापट्टी मस्जिद के इमाम मौलाना अल्वी एजाज खांन बताते हैं कि हदीस शरीफ में है कि रमजान में ही हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपने सहाबियों के साथ कुरआन-ए-पाक का दौर (एक-दूसरे को कुरआन सुनाना) किया करते थे। उन्होंने कहा कि रोजेदारों को इस माह-ए-मुबारक में ज्यादा से ज्यादा कुरआन की तिलावत करनी चाहिए। अन्य दिनों के मुकाबले में रमजान में कुरआन की तिलावत करने का कई गुना सवाब है।


इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है। भूखे-प्यासे रहकर अल्लाह की इबादत करने वाले बंदों का गुनाह खुदा माफ कर देता है। इस महीने दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। और जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। पूरी दुनिया की कहानी भूख, प्यास और इंसानी ख्वाहिशों के गिर्द घूमती है और रोजा इन तीनों चीजों पर नियंत्रण रखने की साधना है।

रोजा का असली मकसद
रोजे रखने का असल मकसद महज भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना नहीं है बल्कि रोजे की रूह दरअसल आत्मसंयम, नियंत्रण। अल्लाह के प्रति अकीदत और सही राह पर चलने के संकल्प और उस पर मुस्तैदी से अमल में बसत

किन-किन लोगों पर रोजा फर्ज है
रमजान के महीने में दिन में रोजा रखना हर मुसलमान बालिग मर्द, औरत, गैर मुसाफिर (जो सफर में न हो), गैर बीमार (जो बीमार न हो) पर फर्ज है।

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