पत्रकारोें की सेक्यूलर पिटाई! चारों ओर चुप्पी का अर्थ क्या है?
पत्रकार संगठन कहां हैं? ब्रोडकास्ट्स एडिटर्स एसोसिएशन कहा हैं?;
अवधेश कुमार
पूरे देश ने उस दृश्य को देखा जिसमें बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के सुरक्षा गार्ड पत्रकारों को पीट रहे हैं। पिटने वाले पत्रकारों का दोष क्या था? उन्हांेने ऐसे सवाल किए जो तेजस्वी के लिए असुविधाजनक थे। तेजस्वी यादव का एक बयान यह है कि भीड़ बहुत थी इसलिए वे देख नहीं पाए कि क्या हो रहा है। विजुअल में साफ दिख रहा है कि पिटाई से अपने को बचाने के प्रयास में कई पत्रकारों के कैमरे तेजस्वी के शरीर से भी लगते हैं। यह मानने का कोई कारण ही नहीं है कि उनके सुरक्षा गार्ड पत्रकारों को पीट रहे हों और उनको पता नहीं हो।
उनका बयान भी उस समय का देखिए। वे कह रहे हैं कि मीडिया में जो भाजपा के समर्थक पत्रकार हैं उनको गठबंधन के न टूटने से समस्या है वे गुंडे हैं। इस तरह के बयान को क्या माना जाए? कोई पत्रकार यदि भाजपा समर्थक है तो क्या उनके सुरक्षा गार्डों को उसे पीटने का अधिकार मिल गया? जिस तरह आम जीवन मेें अलग-अलग राजनीतिक विचार हैं वैसे ही पत्रकारों के बीच भी है। यह किसी खुले समाज के लिए स्वाभाविक स्थिति है। वैसे यह कैसे तय होगा और कौन तय करेगा कि कौन भाजपा समर्थक पत्रकार है और कौन तटस्थ? इसके लिए क्या पिटाई का रास्ता अपनाया जाएगा? एक प्रदेश के मुख्यमंत्री का यह रवैया हर दृष्टि से आपत्तिजनक और शर्मनाक है। कायदे से अभी तक उनके सुरक्षा गार्डों पर कानूनी कार्रवाई हो जानी चाहिए थी। किंतु यदि पिटवाने के पीछे उप मुख्यमंत्री की सोच हो तो फिर कानूनी कार्रवाई होगी कहां से। सच कहा जाए तो इसके लिए कानूनी कार्रवाई खुद तेजस्वी के खिलाफ भी होनी चाहिए।
लेकिन जो लोग देश में असहिष्णुता का राग अलापते हैं, नौट इन माई नेम से अभियान चलाते हैं, पुरस्कार वापस करते हैं....वे सब कहां हैं? क्या पटना में पत्रकारों की पिटाई सहिष्णुता का पर्याय है? इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला नहीं है? पत्रकारों की आजादी पर यह हमला नहीं है? एडिटर्स गिल्ड कहां है? पत्रकार संगठन कहां हैं? ब्रोडकास्ट्स एडिटर्स एसोसिएशन कहा हैं? चारों ओर चुप्पी का अर्थ क्या है? अगर यही पिटाई किसी भाजपा शासित राज्य में भाजपा के मंत्री या जन प्रतिनिधि के सामने हुई होती तो पूरे देश में तूफान खड़ा हो गया होता। शायद इनकी नजर में यह सेक्यूलर पिटाई है इसलिए ये खामोश हैं। भाजपा शासित राज्य में ऐसा होता तो सेक्यूलर विरोधी पिटाई हो जाती इसलिए उस पर इतना चीखना आवश्यक हो जाता। इस पूरे वर्ग का यह रवैया शर्मनाक है। लानत है इन पर।
लेकिन हमको-आपको तो पत्रकारों की पिटाई के विरोध में सामने आना चाहिए। इसके विरुद्ध अभियान तो चलना चाहिए।