संसद में नानी

Nanny in parliament;

Update: 2017-06-06 04:15 GMT

कंदला और पारो की कथा सुनी है आपने ? नहीं सुनी होगी . गुणीजन हैं आपलोग . शास्त्रीय साहित्य पढ़ते हैं . आपके साहित्य में बड़ी -बड़ी बातें होती हैं ,बड़े -बड़े विचार . आप गॉडफादर की कथा पढ़ते हैं ,या ऐसा ही कुछ और . आपके साहित्य में झूठ ,प्रपंच ,युद्ध और हिंसा हुआ करते हैं , तख्तापलट की कहानियां होती हैं . 

लेकिन हमारा बचपन लोक कथाओं के बीच से गुजरा .. वे कथाएं हमारे अवचेतन का हिस्सा बन चुकी हैं . उनमे राजा -रानियां भी हैं , सोनल बालों और नीली आँखों वाली राजकुमारी भी . आसमान में पैबंद जोड़ने वाली हुनरमंद महाठगनी बुढ़िया भी है और अपनी हरकत से सबको हैरान करने वाला छोटू 'बित्तना' भी . जाने कितने चिरइन -चुरमुन ,बाघ -सियार इन कथाओं में करतब दिखलाते हैं . एक कथा में एक दाने केलिए एक तोते ने आकाश -पाताल एक कर दिया था . उसकी लम्बी गीतात्मक फरियाद हमारी जुबान पर होती थी . हमारे पास पंचतंत्र या हितोपदेश की कथाएं नहीं थीं और न ही शर्लक होम्स और रुडयार्ड किपलिंग की किताबें . हमने सब कुछ नानी -दादी से सीखा था - जो निरक्षर थीं - जिन्होंने किताबों को छुआ तक नहीं था . लेकिन उनकी कथाओं में हमेशा सच्चाई की जीत होती थी ,सबको न्याय मिलता था . इन कथाओं में किसी ईसा को क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया , न ही किसी गाँधी को गोली मारी गई . हमेशा आतताई हारते रहे इन कथाओं में . तमाम कथाएं एक खूबसूरत विन्यास में होती थीं .उनमे राग -अनुराग होता था ,आरोह -अवरोह भी . इन्ही कथाओं से हमने छोटी -छोटी बातों पर रोना सीखा ,बड़ी बड़ी बातों पर हँसना . इन्ही कथाओं के सहारे हमारे पुरखों ने सारे जीवन संघर्ष झेले , महामारियां झेलीं . .बादशाहों , भगवानों और आतताइयों की उपेक्षा की .कूपमंडूप बने रहे ,लेकिन अपनी अस्मिता और आज़ादी नहीं खोई . 

जैसे ही हमने इन कथाओं को खोया हमारा अवचेतन कंदला -पारो से रहित हो गया .उसमे शास्त्र आ बैठा ,भाषा का तिलिस्म आ बैठा और दुनिया की होशियारी आ बैठी . हम लोकतान्त्रिक और वैश्विक हो गए .तोप और मिसाइलों के बूते टिकी सरकारों में हमारी हिस्सेदारी हो गई . सबसे बड़ी उपलब्धि यह कि हम नानी -दादी को भूल गए . पुरानी दुनिया से असम्बद्ध होना आधुनिकता की पहली शर्त होती है . 

एक रोज जैसे ही टीवी खोला ,लोकसभा कि कार्यवाही चल रही थी . अफरा -तफरी जैसी मची थी .नीचे ब्रेकिंग न्यूज़ दिया जा रहा था . संसद में एकाध बार आतंकवादी हमले हो चुके हैं . मैं चौकन्ना हुआ . लेकिन यह तो कुछ अजीब हो रहा था . आज संसद में एक तोते का भाषण चल रहा था . वह अपने दाने केलिए संघर्ष करता हुआ संसद तक पंहुच चुका था . मैंने देखा उसके साथ किसान -मजूरों की पूरी टोली है . मैंने देखा उस भीड़ में मेरी नानी भी है ,दादी भी . 
लेकिन नींद टूटी तो मेरी तन्हाई के सिवा कहीं कुछ नहीं था....


प्रेमकुमार मणि

Similar News