इस इकलौते आईपीएस का खौफ नक्सलियों पर था फिर क्यों हटाया सरकार ने?

Update: 2017-04-25 13:01 GMT
रमन सिंह , मुख्यमंत्री , छतीसगढ़
रायपुर: नक्सलियों के हिट लिस्ट में नम्बर वन आईपीएस एसआरपी कल्लूरी के बस्तर में आईजी रहने के दौरान इकलौते आईपीएस हैं, जिनका खौफ तो नक्सलियों पर है, इन दो साल में एक भी बड़ा हमला नहीं हुआ। अलबत्ता, नक्सली ही बैकफुट पर रहे। या सरेंडर किया। कल्लूरी के हटते ही बस्तर में माओवादियों ने बस्तर को पहले की तरह फिर लहूलुहान करना शुरू कर दिया है।
ऐसे में, लगता है कल्लूरी को सुनियोजित तौर पर मानवाधिकार रैकेट और अरबन माओविस्ट ने तो अपना शिकार नहीं बनाया।


हालांकि, कल्लूरी बस्तर में कभी फर्जी मुठभेड़ तो कभी अपने बयानो को लेकर विवादों में रहे। मगर उनके लिए नुकसान की सबसे बड़ी वजह बनी मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया। बेला बस्तर में क्या करने दिल्ली से आई या इस नाम की कोई मानवाधिकार कार्यकर्ता जगदलपुर में रहती है, छत्तीसगढ़ में किसी को नहीं मालूम था। बेला भाटिया के घर का घेराव और पथराव के बाद वे यकबयक सुर्खियो में आ गई।


पुलिस के खिलाफ कार्रवाई को लेकर रायपुर से लेकर दिल्ली तक के अरबन माओविस्ट सामने आ गए। प्रेशर इतना बढ़ा कि सरकार को पीएस होम और स्पेशल डीजी नक्सल को बेला के घाव पर मलहम लगाने के लिए रायपुर से जगदलपुर भेजना पड़ा। इसके बाद कल्लूरी के सपोर्ट में बनी अग्नि संस्था पोस्टरबाजी चालू कर दी। कुल मिलाकर नक्सल समर्थक मानवाधिकार कार्यकर्ता और शहरी नक्सली जो चाहते थे, कल्लूरी उसमें घिरते गए। मामला इतना तूल पकड़ता गया कि सरकार को कल्लूरी से हाथ झाड़ना पड़ा। वरना, कल्लूरी के हटने का नुकसान सरकार भी समझ रही थी।


नक्सली मामलों के जानकार मान रहे हैं कि कल्लूरी अगर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के जाल में न फंसे होते तो कम-से-कम दो घटनाओं में 36 जवानों की शहादत नहीं होती। क्योंकि, कल्लूरी जो भी हो, जैसे भी हों, छत्तीसग़ढ के इकलौते आईपीएस हैं, जिनका खौफ तो नक्सलियों पर है।

व्यूरो चीफ छत्तीसगढ़ 

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