ये क्या कह दिया रवीश कुमार ने!

What did this Ravish Kumar say?

Update: 2017-08-08 04:12 GMT

2010 के साल से ही न्यूज़ चैनलों को लेकर मन उचट गया था। तभी से कह रहा हूँ कि टीवी कम देखिये। कई बार ये भी कहा कि मत देखिये मगर लगा कि ऐसा कहना अति हो जाएगा इसिलए कम देखने की बात करने लगा। मैंने इतना अमल तो किया है कि न के बराबर देखता हूँ।


बहुत साल पहले कस्बा पर ही डिबेट टीवी को लेकर एक लेख लिखा था जनमत की मौत। मैं टीवी में रहते हुए टीवी से बहुत दूर जा चुका हूँ। जब कभी समीक्षा करना होती है तभी देखता हूँ वरना जब मेरा कार्यक्रम भी चल रहा होता है तो वो भी नहीं देखता। पांच छह अपवादों को को छोड़ अपने कार्यक्रम को भी शेयर नहीं करता। कुछ लोगोँ को व्यक्तिगत रुप से लिंक ज़रूर भेजता हूँ । अगर ठीक ठीक कहूं तो पूरे महीने में कोई दो दिन आधे एक घंटे के लिए देखता हूँ।


आफिस में चारों तरफ टीवी है तो दिख जाता है। मेरी बातों और करनी में ये सब थोड़े बहुत अंतर्विरोध हैं मगर इसके बाद भी ये कहना चाहता हूँ कि न्यूज़ चैनल मत देखिये। ये वाक़ई आपकी चेतनाओं की हत्या करने का प्रोजेक्ट हैं। क्या आप ख़ुद से कभी नहीं पूछेंगे कि क्या देख रहे हैं और क्यों देख रहे हैं। न्यूज चैनल भले आज गोदी मीडिया हो गए हैं मगर जब ये पूरी तरह गोदी नहीं थे तब भी उतने ही ख़राब थे।


आप एक दो उदाहरणों से न्यूज चैनलों की प्रासंगिकता साबित करते रहिए लेकिन काफी सोच विचार के मैं यह पोस्ट कर रहा हूँ। जिनके घर में बच्चे हैं वहाँ कनेक्शन कटवाना आसान नहीं है। मगर आप न्यूज चैनल के कनेक्शन तो कटवा ही सकते हैं या देखना छोड़ सकते हैं। यह कोई मामूली जोखिम नहीं है। इस तरह की बातें करते इस क्षेत्र में अपनी संभावनाओं पर कुल्हाड़ी ही मार रहा हूँ । फिर भी जो बात दिमाग़ में जम गई है उसे नहीं कहना भी ख़ुद के साथ बुरा करना है। मैं इस वक्त जो महसूस कर रहा हूँ वो आपसे कहना चाहता हूँ। बाकी आप मालिक हैं ।

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