किसानों को न्याय चाहिए, जब सरकार डिजिटिल तो किसान बर्बाद क्यों?

कर्जमाफी की लालच देकर एक गंदी सियासत ,Farmers need justice

Update: 2017-06-08 03:21 GMT
आजादी के बाद से आज तक देश में किसी की भी सरकार रही हो वह किसानों को सताने और उन्हे मौत के मुँह में ढकेलने से बाज नही आयी। फर्क सिर्फ इतना है कि वही पार्टी जब सत्ता में आती है तो वह सारे वादे और सारी बातें भूल जाती है जो विपक्ष में रहकर गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाये होती है। जनता समझती सब है। पर , उसके पास जब कोई विकल्प नहीं होता तो वह क्या करे ? आखिर उसे लोकतंत्र भी बचाना है। आप सोचिये जिस देश में विकास की इतनी - इतनी डींगे हाँकी जा रही है इन 70 सालों में किसान का कितना विकास हुआ। सन् 1947-48 में जन्मा किसान जितना भूखा तब था , उतना ही आज भी । बल्कि यों कहें कि उसकी आर्थिक -सामाजिक और मानसिक स्थिति पहले से कहीं ज्यादा खराब हो चुकी है। उसकी इस भयावह स्थिति की पहली जिम्मेदार कांग्रेस सरकार है जो अभी तीन साल पहले तक किसानों को मारने का हर औजार तैयार करती रही।


पं0 जवाहरलाल नेहरू और इन्दिरा गाँधी ने पूरे देश में कर्ज का ऐसा जाल बुना कि किसान उसी में फँसा छटपटाता रहे। साहूकारों से मुक्ति- के नाम पर सरकार ने बस उसे अपने पाले में कर लिया और उसका भक्षण करना शुरू कर दिया। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कर्जमाफी की लालच देकर एक गंदी सियासत की नींव रख दी। किसान को एक नये भयावह रास्ते पर उतार दिया। किसान को मजबूत करने के बजाय उसे लालच की दलदल में ढकेलने का कुचक्र रचा गया। लगभग सभी सियासी दलों ने कर्जमाफी को अपने घोषणा पत्रों में शामिल किया। कांग्रेस ने तो भाजपा को चुनौती दे डाली थी कि वह जनता को ठग रही है और किसानों का कर्जमाफ करने की उसकी हिम्मत नहीं। उधर प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचाार के दौरान माइक पर वादे पर वादा कर रहे थे कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आयी तो किसानों का पूरा कर्जमाफ। 


मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में जो घटित हुआ वह किसी भी देश और समाज के लिए डूब मरने के समान है। हुआ यों कि मध्यप्रदेश में फसलों के उचित दाम और अन्य माँगों को लेकर किसान आन्दोलित हो उठे। धीरे - धीरे करके भीड़ बेकाबू होने लगी। जिसको नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने सीधे गोलियाँ चला दीं और 5 किसानों की मौत हो गयी। शिवराज सिंह चौहान की भाजपा सरकार से पहले शायद ही किसी और सरकार ने किसानों के साथ ऐसा बुंरा बर्ताव किया हो। मध्यप्रदेश सरकार की बेशर्मी की तब और हद हो जाती जब वह पहले किसानों पर गोली चलवाती है । फिर जाँच के आदेश देती है और मृतक किसानों के परिवार वालों को महज 5-10 लाख का मुआवजा देकर मामले को रफा-दफा कर देना चाहती है। इस सबसे किसान आन्दोलन और उग्र होता जा रहा है । मृतकों की लाशों को लेकर किसानों ने रास्ता जाम कर दिया। वहाँ के डीएम के साथ जमकर हाथापाई हुई। विपक्ष और आन्दोलनकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की माँग पर अड़े हैं। उनकी यह भी माँग है मृतकों के परिवार वालों को 1 करोड़ से कम का मुआवजा मान्य नहीं है। साथ ही किसानों की जो भी माँगें है उन्हें तत्काल पूरा होना चाहिए ।


मध्यप्रदेश ही क्यों महाराष्ट्र में भी फसलों के उचित दाम और कर्जामाफी को लेकर हंगामा मचा हुआ है। सड़कों पर हजारों लीटर दूध फेंक दिया गया। रोजमर्रा की इस्तेमाल की चीजों और फलो-सब्जियों की आपूर्ति को बाधित किया गया है। किसानों का यह प्रदर्शन अगर शीघ्रता से न रोका गया तो अभी तो यह कुछ ही प्रान्तों तक सीमित है लेकिन आगे पूरे देश में फैल सकता है । केन्द्र सहित जिन- जिन प्रान्तों में भाजपा की सरकारें है वहा आये दिन कुछ न कुछ अप्रिय घटनाएँ घट रही है। किसान संगठन आये दिन उत्तर प्रदेश में भी जगह - जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे है । तकरीबन 20ः-25 दिन पहले एक किसान संगठन ने दिन भर सुलतानपुर के पुलिस कप्तान के दफ्तर का घेराव कर रखा था। किसानों के धैर्य की जितनी परीक्षा यह सरकार ले रही है उतनी कभी किसी ने नहीं ली है। स्वामीनाथन आयोग के सुझाव के अनुसार किसानों को 'न्यूनतम समर्थन मूल्य' के अलावा कम से कम 50 प्रतिशत 'लाभकारी मूल्य' देने की बात कही गयी थी । जिससे किसान अभी महरूम है। आज की सबसे बड़ी समस्या किसानों के लिए यह है कि 'वास्तविक लागत मूल्य' और 'निर्धारित लागत मूल्य 'में बहुत अंतर है। जिसकी वजह से उसे 'समर्थन मूल्य' नहीं मिल रहा। इस प्रंकार किसानो की मूलभूत जरूरतों को दरकिनार करना कितना अन्याय पूर्ण है। रासायनिक खादों का मूल्य हाल ही में 300 सेबढ़कर 1100 रूपये तो 100 रूपये में मिलने वाला कीटनाशक 400 रूपये का हो गया है। खेती दिनो दिन घाटें का सौदा हो गयी है। इस खेती को घाटे से उबारने के लिए हर सरकार पल्ला झाड़ लेती है। यह सरकार पिछले तीन साल से कहती आ रही है कि वह पाँच साल में किसानों की आय दो गुंनी कर देगी। पर सवाल है कैसे ? चौतरफा किसान के पेट पर लात मारा जा रहा है। ''किसान विकास पत्र्र '' सहित तमाम छोटी बचतों पर ब्याज में भारी कटौती कर दी गयी। जो रकम कभी 6 साल से पहले दूनी हो जाती थी अब वह 8 साल में भी दूनी न हो पायेगी । किसान विकास पत्र पर ही नहीं तमाम जमा योजनाओं पर भी ब्याज दर घटा दी गयी है। इन योजनाओं का सीधा असर किसान पर पड रहा है।


इधर मौसम भी किसानों का साथ नहीं दे रहा। समय पर बारिष नहीं होती। या सूखे से फसल नश्ट हो जा रही। सरकार का ' आपदा - प्रबंधन विभाग ' फाइल में बन- बिगड़ रहा है। यह बात हमारे देष के लिए कितनी ंिचंताजनक है । किसानों की आत्महत्याओं में लगातार इजाफा हो रहा है। आँकडों के अनुसार साल 2014-15 में 5650 किसानों ने आत्म हत्या की तो 2015-16 में बढ़कर यह संख्या 8 हजार से कहीं अधिक हो गयी। महाराष्ट्र में गत वर्ष 3 हजार से भी ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की। सर्वेक्षण करने से पता चला है कि तीन - चौथाई आत्महत्याओं का कारण बैंक कर्ज है । बैंक कर्ज के मामले में कोई भी सरकार चाहे वह वी पी सिंह की सरकार रही हो या कांग्रेस की या आज की योगी सरकार ही क्यों न हो उतनी ईमानदार नहीं जितने का दिखावा करती आ रही है। योगी सरकार की ओर से भी किसानों को दिया जाने वाला कर्ज अभी मूर्तरूप में नही आया। दूसरी तरफ अभी तक बैंको को जो निर्देष मिले है उसके अनुसार वही किसान लाभान्वित होगे जो मार्च 2016 तक किसान कार्ड में बकायेदार होगे। उसके अनुसार फिर ईमानदार और मेहनत किसानों को बड़ा झटका लग सकता है।आगे चलकर नादिहन्दा किसानो की बड़ी तादात उभर सकती है और बैकिग - अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

जरा गौर करिये ----

कौन कहता है कि वो फंदा लगा करके मरा
इस व्यवस्था को वो आईना दिखा करके मरा।
ज़ु़ल्म से लड़ने को उसके पास क्या हथियार था
कम से कम गुस्सा तो वो अपना दिखा करके मरा।
ख़त्म उसकी खेतियाँ जब हो गयीं तो क्या करे
दूर तक भगवान की सत्ता हिला करके मरा ।
भूख से मरने से था बेहतर कि कुछ खा कर मरा
चार -छै गाली कमीनों को सुना करके मरा।
रोज़ ही वो मर रहा था , जान थी उसमें कहाँ
आज तो अपनी चिता वो बस जला करके मरा ।
मुफ़लिसों की आह से जो हैं तिजोरी भर रहे
उन लुटेरों को हक़ीक़त तो बता करके मरा।
सुन ऐ जालिम अब वो तेरे ही गले की फांँस है
वो सियासत में तेरी भूचाल ला करके मरा ।



डॉ डी एम मिश्र

लेखक वरिष्ठ कवि व साहित्यकार हैं

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