YASHBHARTI: यश भारती को बंदरबॉट कहें

YASHBHARTI TREATED BIG CORRUPTION

Update: 2017-05-28 11:53 GMT
वरिष्‍ठ आई पी एस अधिकारी का साक्षात्‍कार लेते वरिष्‍ठ कवि-साहित्‍यकार डॉ डी एम मिश्र
' यशभारती ' के नाम पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर सरकारी ख़जानें को खैरात की तरह लुटाने की जो कवायद चली उसका विस्तार से पर्दाफाश किया है। कवि डॉ डी एम मिश्र ने अपने लेखों में इस मुददे की पडताल जिस गंभीरता से की तो उसकी आवाज योगी की नई सरकार तक पहॅुची, सीएम योगी ने ' यशभारती ' को भी एक बडा घोटाला मानते हुए जाँच के आदेश दे दिये यह भी कहना समीचीन होगा कि इस गंभीर अपराध से जनमानस तो आन्दोलित हो उठा।

पर , तथाकथित धुरंधर कलमकार जिसका अपना हक गया वह खामोशी की चादर ताने सोता रहा। गूँगा - बहरा - अंधा बने रहने में ही वह अपना निमित्त और फायदा समझता रहा। वहीं एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने अपनी नौकरी की परवाह किये बिना इस सरकारी सांस्कृतिक - घोटाले को देखकर माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा दिया। इस पूरे प्रकरण को लेकर .....

लेखक- कवि डॉ डी एम मिश्र ने अमिताभ ठाकुर से विस्तार में बातचीत की

डी एम मिश्र -मुख्यमंत्री ने ' यश भारती ' जिस प्रकार से अपने रसोइये , पारिवारिक चिकित्सक, मनोरंजन करने वालों , कार्यक्रम संचालिकाओं आदि को दे डाला , उसके सम्बन्ध में आप क्या कहना चाहेगे ?

अमिताभ ठाकुर -जिस प्रकार इधर लगातार तीन - चार वर्षो में ' यश भारती ' लोगों को मिली और अलग - अलग समय में मिली उसे देखकर आश्चर्य होता है। कई बार तो अंतिम समय तक नाम बढ़े। यह भी कहा गया कि जो कार्यक्रम संचालिकाएँ थीं जब उन्होने कह दिया कि साहब जब सबको दिया जा रहा है तो मुझे क्यों नहीं ? तो उनको भी दे दिया गया। इसी प्रकार दो लड़कियों को यह पुरस्कार इसलिए दे दिया गया क्योंकि उन्होंने मेट्रो चला दिया। वह भी कुछ घंटे के लिए । मेट्रो तो कोई भी ट्रेन का ड्राइबर चला देगा । हम उस युग में नहीं रहते जहाँ बादशाहत का युग हो । हम एक लोकतंत्र में रहते हैं । यहाँ 11 लाख का इतना बड़ा धन कोई अपनी जेब से नहीं दे रहा। इसलिए मजबूरन मैने शासकीय धन के इतने बड़े अपव्यय पर आपत्ति की है । मैं मानता हूँ कि इस प्रकार से राज्य की सम्पत्ति किसी को नहीं दी जा सकती।

डी एम मिश्र- सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हुआ कि -यूपी सरकार ने वोट बैंक के लिए कुछ जाति विशेष और सम्प्रदाय विशेष के ही लोगों को ' यश भारती ' दे दी । जब एबीपी न्यूज ने इसकी पड़ताल की तो पाया कि इसमें पूरी सच्चाई नहीं है फिर भी 2015 -16 में 56 लोगों की सूची में 14 यादव और 8 मुसलमान थे । 2016-17 में इस संवर्ग का अनुपात और बढ़कर सामने आया। इस पर सरकार की खूब किरकिरी हुई और लोगों ने इसे वोट की राजनीति से जोड़कर देखा। इस बारे में आप का क्या कहना है ?


अमिताभ ठाकुर - मैं उसको इस रूप में कहूँ कि असंभव नहीं कि किसी जाति या सम्प्रदाय विशेष के ज्यादा लोग हो जाँय। मेरा मानना है कि जो भी नाम हो, जिसका भी नाम हो उसकी पात्रता ' यश भारती ' के लिए अक्षुण्ण हो। वह पूर्ण अर्हता वाला व्यक्ति हो। जिसकी योग्यता निर्विवादित हो। जिसको सब कहें कि हाँ वह ' यश भारती ' के मापदण्डों पर खरा उतर रहा है। जिसकी ख्याति भी राष्ट्रीय- अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की हो। वरना किसी जाति या सम्प्रदाय विशेष के ज्यादा लोग होगे तो उँगली उठेगी ही। जब भी ' यश भारती ' बँटी मीडिया और अखबारों में भी यह बात सुर्खियों में रही कि कहीं न कहीं राजनैतिक फायदे की बू भी इससे आ रही है।


डी एम मिश्र-वरिष्ठ आलोचक वीरेन्द्र यादव नें मुख्यमंत्री को इस आशय का पत्र जो दैनिक जनसंदेश टाइम्स में छपा भी था लिखकर चेताया था कि जिस तरह अंतिम क्षण तक पुरस्कार पाने वालों का नाम जुड़ता और कटता रहा है - वह सचमुच शर्मनाक है। क्या कहेंगे इस पर आप ?

अमिताभ ठाकुर - मैं वीरेन्द्र यादव जी की बातों से पूरी तरह सहमत हूँ कि ' यश भारती ' की जो गरिमा है ,जो महिमा है, जो महत्ता है उसको अक्षुण्ण रखने के लिए आवश्यक है कि पूरी प्रक्रिया का बहुत ही गहराई के साथ, बहुत ही ठोस तरीके से पालन हो। कहीं ऐसा न महसूस हो कि उनसे किसी प्रकार का विचलन हुआ हो या उनका उल्लंधन किया गया हो। जब अंतिम समय तक बार -बार नाम बढ़े तो इससे एक प्रकार से लोगों के दिमाग में बात गयी कि लगता है कि जिसकी पैरवी हो जा रही है या जिसकी बात वहाँ तक पहुँच जा रही है, उसका नाम बढ़ जा रहा है । ऐसी स्थिति में गलत संदेश जाने की संभावना बनी रहती है।

डी एम मिश्र -' यश भारती ' का यह सारा गोरखधंधा वोट की राजनीति को ध्यान में रखकर रचा गया। लेकिन उसका कोई फायदा अखिलेश यादव को हुआ नहीं ?

अमिताभ ठाकुर - गोरखधंधा क्या एक तरह से इसे बँदरबाँट कहें। देखिये सत्ता में बैठे लोग जनता को जितना बेवकूफ समझते है वह उतनी होती नहीं। वह चुपचाप सब देखती और समझती रहती है और समय आने पर सबका हिसाब कर देती है। एक बात और। जब पक्षपात पूर्ण फैसले लिये जाते हैं तो उससे खुश होने वालेां की संख्या अत्यन्त अल्प होती है। लेकिन नाराज होने वालों की संख्या तेजी से बढ़ जाती है।

डी एम मिश्र - सेंटर फार सिविल लिबर्टीज की ओर से अधिवक्ता डॉ नूतन ठाकुर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में एक याचिका दायर की है और याचिका में दावा किया है कि उ0प्र0 सरकार तमाम लोगों कों ' यश भारती ' के नाम पर सरकारी धन लुटा रही है। यह सेंटर फार सिविल लिबर्टीज कौन हैं ? इनका मुकदमा क्या आपके मुकदमें से भिन्न है ?

अमिताभ ठाकुर - सेंटर फार सिविल लिबर्टीज एक सामाजिक संगठन है। डॉ नूतन ठाकुर ने इस संगठन की तरफ से भी एक मुकदमा -' यश भारती ' की अनियमितताओं को लेकर दायर किया है । इस मुकदमें में भी सेंटर फार सिविल लिबर्टीज ने भी वही बातें उठायी हैं जो मैंने अपनी याचिका में उठायी हैं। इसमें भी राज्य सरकार ने अपना शपथ -पत्र दे दिया है। राज्य सरकार का कहना है कि हमने 'यश भारती ' पुरस्कारों को नियमानुसार दिया है। अभी उस पर अंतिम फैसला आना बाकी है। उसकी सुनवाई की अनवरत तारीखें लग रही हैं। माननीय उच्च न्यायालय विषय की गंभीरता को समझ रहा है।

डी एम मिश्र - वर्तमान प्रदेश सरकार जो भाजपा की है, क्या समाजवादी पार्टी की इस महत्वाकांक्षी पुरस्कार योजना को आगे भी चालू रखेगी या नही ?

अमिताभ ठाकुर - मेरा मानना है कि सरकार उत्तर प्रदेश की होती है किसी पार्टी या व्यक्ति विशेष की नहीं। जहाँ तक पुरस्कारों को देने के बारे में नीति है तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि पुरस्कार देना गलत नहीं है और पुरस्कार देना कहीं से संविधान की नीतियों का उल्लंघन भी नहीं हैं। इसलिए पुरस्कार दिये जा सकते हैं । यदि कोई सरकार देना चाहती है तो वह दे सकती है।

डी एम मिश्र - सरकार बदली तो पिछली सरकार की पोल भी खुलती जा रही है। ' यश भारती ' पुरस्कार कुछ इस कदर बाँटे गये कि इस मद में स्वीकृत बजट तो खत्म हो ही गया , संस्कृति विभाग को 11 - 11 लाख रूपये के पुरस्कार के चेक और पुरस्कार वितरण समारोह के खर्चे के लिए एल डी ए से उधार लेना पडा। इतना ही नहीं 2016-17 के लिए कुल 82 लोगों को 50- 50 हजार रूपये मासिक की पेन्शन देने के लिए भी विभाग को नई सरकार से धनराशि माँगनी पड़ेगी । करीब पाँच करोड रूपये का यह उधार चुकाने के बाद अब भी एक करोड रूपये और वापस करने हैं। विभाग को कुल 25 लोगों को 11- 11 लाख रूपये के ' यश भारती ' पुरस्कार के चेक देने और आयोजन के लिए कुल साढे तीन करोड मंजूर हुए थे। साथ ही पूर्व में यशभारती पाये 171 लोगों को पेंशन देने के लिए स्वीकृत 10 करोड़ मिले थे जो खर्च हो गये। इतनी बडी रकम जुटा पाना अब संस्कृति विभाग के गले की फाँस बन चुका है। तत्कालीन संस्कृति विभाग के सचिव डॉ हरिओम का स्थानान्तरण किया जा चुका है। इस गंभीर समस्या के बारे में आपका क्या कहना है।

अमिताभ ठाकुर - हाँ समस्या गंभीर है। पुरस्कार पाये हुए लोगों में ऐसे -ऐसे लोग हैं जिन्हें पचास - पचास हजार रूपये महीने की पेन्शन दी जा रही है। उससे भी गंभीर बात यह है कि ऐसे - ऐसे लोग हैं जो इतनी मोटी रकम पेन्शन में ले रहे हैं जैसे मुजफ्फर अली , रिटायर्ड आई ए एस आलोक रंजन की पत्नी, नौकरी में रहते हुए आई पी एस अफसर अपर्णा कुमार वेतन के साथ पचास हजार महीने कर पेन्शन भी ,ले रही हैं । जो नियमों और नीतियों के वि़रूद्ध है। कितने रिटायर्ड प्रोफेसर हैं , वाइस चांसलर हैं जो दो - दो पेन्शने ले रहे हैं। कितने चिकित्सक ऐसे है जिनकी प्रतिदिन की आमदनी पचास हजार से अधिक है, वह भी पेन्शन ले रहे हैं। यह सब बहुत गलत हो रहा है। इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर अनायास एक बड़ा बोझ पड़ रहा है। मुझको लगता है जिस प्रकार से गलत लोगों को ' यश भारती ' पुरस्कार दिये गये है उसकी नये सिरे से समीक्षा की जाय और पात्र लोगों की ही पेन्शन चालू रखी जाय। जिससे ' यश भारती ' जैसे सर्वोच्च पुरस्‍कार की गरिमा लौट सके । यदि आगे ' यश भारती ' दी जाय तो सीमित संख्या में केवल पा़त्रता और उपलब्धि के आधार पर ही दी जाय। नई सरकार ने जाँच के आदेश फिलहाल दे दिये है। हम उसका स्वादगत करते हैं। पर हमारी असली जीत तो माननीय उच्च न्याशयालय के फैसले पर ही टिकी है।

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