अब उपभोक्ता से सीधे जुड़ेंगे अन्नदाता, कमीशनखोरों से मिलेगी मुक्ति

Now the donor will be directly connected to the consumer, the commissioners will get freedom;

Update: 2017-07-17 06:47 GMT
आशुतोष त्रिपाठी 
एक तरफ सरकारे किसानों के लिए लगातार योजनाए ला रही है जिसके माध्यम से किसानों की खेती और विकसित हो साथ ही उन्हें फसल का सही दाम मिल सके ,तो दूसरी तरफ किसानों को बेहाली और बदहाली भी उसी तेजी से बढ़ रही ,तामाम योजनाओ का लाभ बड़े किसानों को ही मिल रहा जो कि पहले ही समृद्ध है ,छोटे और काम खेत वाले किसान की हालत अब भी वही है वो साल भर इसी उधेड़बुन में रहता है कि क्या उपजाए और क्या खाएं और क्या बेच के अतिरिक्त आय करे ।
दर असल इसका मुख्य कारण बहुराष्ट्रीय और चेन शॉप वाली कंपनियों के भारी पूंजी के साथ बाजार पर छा जाने की पॉलिसी है जिससे अन्न उपजाने वाला किसान लाख मेहनत मौसम के मेहरबानी और सरकार की सब्सिडी के बाद भी खुद बेचारा बना रहता है

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क्योकि उत्पादन करने के बाद भी उसे ये अधिकार नही रहता कि अपने सामान की की कीमत वो तय करे, क्योकि कर्ज में डूबे किसान को जरूरत होती है पैसे कि और फसल तैयार होते ही गाँव के बनिये( ये बड़े आढ़तियों औऱ कंपनियों के एजेंट होते है )नकदी पैसा देकर सस्ते में उनका समान खरीद कर जमाखोरी शुरू कर देते है जिसे वो समय आने पर अपनी कीमत पर बेचते है।
बाजार के इस खेल में लाभ उसे होता है जो कभी खेत मे गया ही नही होता या जिनके पास बहुत ज्यादा खेत है और वे ठेके पर खेती करवा रहे वही कुछ लोग जमाखोर के रूप में पैसे फेककर किसानों के मजबूरी का फायदा उठाता है। और किसान यो बेचारा ही बना रहता है क्योंकि उसे बमुश्किल इतना ही पैसा मिल पाता है जिससे वह कीसी खाद बीज और सिचाई का उधार चुका के घर मे खाने भर को अनाज रख पाता है ,वो भी तब जब मौसम मेहरबान रहा अन्यथा कर्ज के जाल में इस कदर फसता है कि उलझता ही जाता है।
कम शब्दों में कहे तो बड़े व्यवसायियो (ब्रांडेड फ़ूड कंपनी ,चेन शॉप इत्यदि) ,के कारण किसान दर दर भटकने को मजबूर है।लेकिन यकीन मानीये वो दिन दूर नही जब वाराणसी और आसपास के किसानों के कारण ये बड़े व्यवसाई या तो बाजार से भाग खड़े होंगे या फिर इन्हें सुधरना होगा अर्थात उत्पाद के लाभ में किसानों को उचित हिस्सेदारी देनी ही पड़ेगी।

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क्योकि वाराणसी और उससे लगे जनपद चंदौली ,भदोही मिर्जापुर और सोनभद्र के किसान कुछ ऐसा करने जा रहे जो अब तक नही हुआ और बहुत पहले हो जाना चाहिए था, ये किसान अब खुद अपने सामान को बेचने के लिए बाजार में उतर रहे है । लगभग 200 की संख्या में ये किसान अब अपने सामान को किसी मल्टीनेशनल कंपनी की तरह ब्रांडिंग कर सीधे उपभोक्ता तक पहुँचाने का काम शुरू करने जा रहे है।
और इस तरह औसतन इंटर पास ये किसान बड़ी कंपनियों से दो दो हाथ भिड़ने को तैयार हो रहे है।
ये किसान विगत 6 माह से आपस मे बैठक कर विचार विमर्श कर अपनी खेती को सामूहिक खेती के रूप में करके उत्पादन लागत को घटाने के साथ तकनीकी पर आधारित खेती का सहारा लेकर खुद उत्पाद बेचने की दिशा में चुपचाप कार्य कर रहे है।
इन किसानों की पॉलिसी क्या है कहा और कैसे समान बेचेंगे इसपर ये समय से पूर्व कुछ बताने को तैयार नही लेकिन चंदौली के किसान जनार्दन सिंह ने इशारे में इतना ही कहकर बहुत कुछ आभास करा दिया कि जो गेहू हम 15 में बेच रहे मगर उसका आटा उपभोक्ता तक 30 से 40 रुपये किलो पैकेट में बंद कर पहुच रहा उसे हम अगर काफी कम।दाम में सीधे ग्राहक को दे तो हमे कौन रोकेगा और उपभोक्ता को तो सस्ता पड़ेगा ही हमे भी 15 के बदले 20 रुपये मिलेंगे। इसका सीधा मतलब है बीच से कमीशन लेने वाले वो लोग गायब होंगे जिन्हें आढ़तिया ,स्टॉकिस्ट एजेंसी और रिटेलर कहा जाता है ,और इनका प्रयास ये रहता है कि किसान से कम से कम दाम में खरीद कर उपभोक्ता को अधिक से अधिक मुनाफा लेकर बेचा जा सके। और ये बिचौलिये जब गायब होंगे तो इसका फायदा किसान के साथ उपभोक्ता को मिलना तय है।

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जनार्दन सिंह की माने तो हम किसान ये प्रयास करेंगे कि हर अनाज का एम आर पी तय कर बाजार में लाएंगे और पूरे साल एक संतुलित कीमत और लाभ पर बेचेंगे ,ऐसा नही होगा कि प्याज 20 से 100 रुपये पहुच जाएगी दाल 65 से 150 पहुच जाएगी,उन्होंने बताया कि अचानक कीमतों के बढ़ा देना ग्राहकों के साथ धोखा है और जब ग्राहक सीधे किसान से जुड़ेगा तो ऐसा नही होगा।
किसानों ने अपने इस कार्य को गृहस्थ आंदोलन का नाम दिया है और कहते है कि ये हम किसानों का अपने अधिकार और रोजगार का ऐसा आन्दोलन है जिसमे न कोई धरना प्रदर्शन है न कोई हिंसा ,न कोई तीखी बहस है न किसी से कोई याचना करना है ,न सरकार की बुराई करनी है न किसी तरह की राजनीति ,ये तो बस हमारे मेहनत आत्मविश्वास और एक अभिनव प्रयोग कर अपनी किस्मत अपने हाथ से लिखने का जुनून है जिसे लेकर 200 किसानों का समूह हाईटेक और पूंजी पर आधारित बाजारवाद से 2 हाथ करने को कमर कस रहा है।
 इस काम मे किसानों के साथ कृषि के विशेषज्ञ भी शामिल है उन्ही में से एक कन्हैया जी कहते है हमारा मुख्य फोकस है उपभोक्ताओं को न्यूनतम कीमत पर शुद्ध और ताजा अनाज सब्जी और दुग्ध उत्पाद उनके दरवाजे तक उपलब्ध कराना ,जिसके लिए किसान प्रशिक्षण ले चुके है और उत्पादन की तैयारी अंतिम चरण में है।
हालांकि इस बात पर किसान चुप्पी साधे है कि उनकी स्ट्रेटिजी क्या है ,क्या अपना सामान ब्रांड के साथ लाएंगे स्टोर खोलेगे या दुकानों में रखेंगे ,इस बात पर कन्हैया जी कहते है बस थोड़ा इंतजार कर ले ये किसान का एक अभिनव प्रयोग है जो जल्द आपके सामने होगा।
कुल मिलाकर देखा जाए तो आज के बाजार से लड़ना इन किसानों के लिए आसान नही है लेकिन इनकी लगन जुनून और बहुत सधी हुई कार्यशैली से यही लगता है कि ये आज के बाजार में स्थापित बड़े खिलाड़ियों की लाइन लेंथ बिगड़ सकते है साथ ही उपभोक्ता के लिए भो एक नया विकल्प और अनुभव पेश कर सकते है।बहरहाल ये किसान तैयार है बाजार रूपी अखाड़े में लड़ने को और इंतजार इस बात का है कि पी एम के संसदीय इलाके से शुरू होने वाला ये किसानों के प्रयोग किस तरफ जाता है और जैसा कि ये किसान दावा

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