कलिखो पुल अरुणाचल प्रदेश के नए बीजेपी समर्थित मुख्यमंत्री बन गए हैं। सुप्रीम कोर्ट की ओर से अरुणाचल प्रदेश में सरकार गठन की मंजूरी के बाद शुक्रवार को कांग्रेस से असंतुष्ट चल रहे कलिखो पुल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। कलिखो पुल को राज्यपाल जेपी राजखोवा ने पद और गोपनियता की शपथ दिलाई। बीते करीब एक महीने से राज्य में सियासी अस्थिरता का माहौल था। शपथ ग्रहण के बाद कलिखो पुल ने कहा कि सहयोगियों से चर्चा के बाद मंत्रिमंडल विस्तार पर फैसला किया जाएगा।
We'll expand our cabinet after consulting my colleagues: Kalikho Pul after being sworn in as Arunachal Pradesh CM pic.twitter.com/igjH3wekxK
— ANI (@ANI_news) February 19, 2016
अरुणाचल प्रदेश के इतिहास में इससे पहले मई 2011 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता जारबोम गामलिन ने रात में ही राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी। दरअसल, तब हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मुख्यमंत्री दोरजी खांडू का निधन हो गया था और ऐसे में आनन-फानन में गामलिन को नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाना जरूरी हो गया था। नए मुख्यमंत्री के लिए तब 6 नाम प्रस्तावित किए गए थे, जिनमें से गामलिन के नाम पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रात लगभग 9 बजे अपनी सहमति दी थी।
Itanagar: Kalikho Pul being sworn in as Arunachal Pradesh Chief Minister by governor JP Rajkhowa pic.twitter.com/KrfROnPkjD
— ANI (@ANI_news) February 19, 2016
आपको बता दें कि राज्य में संवैधानिक संकट की शुरुआत बीते साल तब हुई जब 60 सदस्यों वाली अरुणाचल विधानसभा में तब की कांग्रेस सरकार के 47 विधायकों में से 21 (इनमें दो निर्दलीय) विधायकों ने अपनी ही पार्टी और मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी। मामला नबम तुकी और उनके कट्टर प्रतिद्वंदी कलिखो पुल के बीच है। पुल चाहते थे कि तुकी की जगह उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाए। इसके बाद 26 जनवरी 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
राजनीतिक अस्थिरता के बीच 15 दिसंबर को कांग्रेस ने दावा किया था कि पूर्व विधानसभा स्पीकर नबम रेबिया ने 14 विधायकों को अयोग्य करार दिया था। पार्टी बागियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पूरे घटनाक्रम के बीच कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राज्यपाल जेपी राजखोवा 'बीजेपी के एजेंट' की तरह काम कर रहे हैं।