राजस्थान में भाजपा की हार के बाद मचा हड़कंप, असली गुनहगार कौन?
दो बूथ पर बीजेपी को एक भी वोट भी नहीं मिला. यानी बूथ पर बैठा कार्यकर्ता और पार्टी के अपने अधिकारी तक ने बीजेपी को वोट नहीं दिया;
राजस्थान के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की करारी हार से आलाकमान के कान खड़ें हो गए हैं. वो भी ऐसे वक्त पर जब लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू होने वाली है. राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं, ऐसे में यहां दो सीटों पर हार बीजेपी के लिए भारी पड़ सकती है. इस के साथ साथ एक विधानसभा पर भी हार का मुंह देखना पड़ा.
तभी तो वित्त मंत्री अरुण जेटली मान रहे हैं कि ये हार चिंता का विषय है और राज्य में कोर्स करेक्शन की ज़रुरत है.अब सवाल तो यही उठता है कि ये कोर्स करेक्शन आखिर क्या हो सकता है? इसके लिए सबसे पहला क़दम है लीडरशीप में बदलाव का लेकिन इसके लिए काफी देर हो चुकी है. शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि अगर ऐसा किया गया तो गुटबाज़ी को रोकना मुश्किल होगा. पार्टी के सामने दूसरा विकल्प है संगठन में भारी फेरबदल. जिसके तहत बूथ स्तर से प्रदेश स्तर तक के पदाधिकारी बदले जाएं.अरुण जेटली की चिंता वाजिब है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह मिशन 2019 को पूरा करने में लग गए हैं लेकिन राजस्थान में सेमीफाइनल भी है जिसे जीतना ज़रुरी भी है और मजबूरी भी. वक्त आ गया है कड़े फैसले लेने का ताकि कोर्स करेक्शन समय रहते हो जाए.
सूत्रों की मानें तो दो बूथ पर बीजेपी को एक भी वोट भी नहीं मिला. यानी बूथ पर बैठा कार्यकर्ता और पार्टी के अपने अधिकारी तक ने बीजेपी को वोट नहीं दिया. यानी लापरवाही हुई है और वो भी शीर्ष स्तर से ले कर बूथ लेवल तक.
राजस्थान में वैसे भी सत्ता परिवर्तन होते रहते हैं एक बार बीजेपी को जीत मिलती है तो अगली बार क्रांगेस सत्ता में आती है. इसलिए नतीजे आते ही संगठन के महासचिव वी सतीश जयपुर पहुंचे. वो यहां मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के साथ लगातार मंथन कर रहे हैं. इसके तहत मंत्रियों, विधायकों और ज़िला अध्यक्षों को लगातार जवाब तलब किया जा रहा है.
सूत्रों की माने तो पूरे मंथन से एक ही बात सामने आ रही है कि लापरवाही ऊपर से नीचे तक हुई है. चुनाव में खड़े हुए उम्मीदवारों को लोकल लेवल पर पार्टी से पूरा सहयोग नहीं मिला. ज़ाहिर है ज़रुरत है संगठन को मज़बूत करने की और बूथ लेवल तक कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की. इसलिए आलाकमान को संकेत भी यही मिल रहे हैं कि संगठन को दुरुस्त किया जाए. साथ ही टिकट बटवारे में आलाकमान कड़े फैसले ले और नए चेहरे मैदान में उतारे.
आपको बता दें कि राजस्थान में बीजेपी की शर्मनाक हार से एक प्रश्नवाचक चिन्ह लग गया है. हालांकि मिडिया में आ रही खबरों के अनुसार इस तरह के परिणाम आना कोई नई बात नहीं है यह पहले से ही उम्मीद थी. क्योंकि सरकार के प्रति आम आदमी की गुस्सा का नतीजा है. अगर इसी तरह विधानसभा का चुनाव हुआ तो बीजेपी के लिए अच्छी खबर मिलना मुश्किल नजर आ रहा है.