औरत के लिए खूबसूरती के मायने को दर्शाता नाटक सूरमा
बेटी फहमीदा को अपनी आँखों में हरदम सूरमा लगाना बेहद पसंद है और इसीलिए वो अपने निकाह के समय भी अपनी अम्मी से 'सूरमे' और 'चांदी की सुरमेदानी' की माँग कर बैठती है और ससुराल आ जाती है।;
हिमा अग्रवाल
जयपुर: रविन्द्र मंच सोसाइटी की फ्राइडे थियेटर योजना के अंतर्गत शुक्रवार शाम यहाँ सआदत हसन मंटो लिखित और प्रियंका खांडेकर निर्देशित नाटक 'सूरमा' का प्रभावी मंचन किया गया।
नाटक सूरमा के ज़रिए औरत के लिए खूबसूरती के मायने दर्शाने का प्रयास किया गया। नाटक का सम्पूर्ण घटनाक्रम एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमता है जिनकी बेटी फहमीदा को अपनी आँखों में हरदम सूरमा लगाना बेहद पसंद है और इसीलिए वो अपने निकाह के समय भी अपनी अम्मी से 'सूरमे' और 'चांदी की सुरमेदानी' की माँग कर बैठती है और ससुराल आ जाती है। यहीं से नाटक का कथानक आगे बढ़ता है जब फहमीदा का पति उसकी आँखों में लगे बेहिसाब सूरमे के लिए उसे टोक देता है। वो फहमीदा को बड़े ही प्यार से समझाता है कि किसी भी चीज़ का थोड़ा किफायती इस्तेमाल करने से उसकी खूबसूरती बढ़ जाती है।
फहमीदा को अपने पति के शब्द चुभ जाते हैं,वो उनका अभिप्राय नहीं समझ पाती और फिर हमेशा के लिए अपनी आँखों में सूरमा लगाना छोड़ देती है। कुछ समय बीतने पर उनके एक बेटे का जन्म होता है जिसका नाम आसम रखा जाता है। अब फहमीदा अपनी खूबसूरती अपने बच्चे में देखती है और अपनी बरसों पुरानी दबी इच्छा को बच्चे में पूरा होते देखती है।वो रोज़ अपने बेटे की आँखों में सूरमा लगाकर उसे निहारती है,दुलारती है और बेहद खुश होती है। एक दिन अचानक बेटे की तबियत खराब हो जाती है और वो चल बसता है। यह देख उसके सदमे से वो पागलों जैसा व्यवहार करने लगती है और एक दिन खुद भी इस फ़ानी दुनिया से रुख़सत हो जाती है। पूरे परिवार पर जैसे दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ता है। फहमीदा का पति भी उसकी मौत से विचलित हो जाता है।
युवा रंगकर्मी प्रियंका खांडेकर का निर्देशक के रूप में यह पहला नाटक था। इसका नाट्य रूपांतरण भी प्रियंका ने ही किया है। प्रियंका के कुशल निर्दशन में सभी नये और पुराने वरिष्ठ कलाकारों ने शानदार अभिनय किया। नाटक के लिए दिनेश प्रधान व देशराज मीणा का विशेष मार्गदर्शन रहा।
मंच पर अभिनय करने वाले कलाकार स्नेहा कनवड़िया, रोहित शर्मा,डॉ कविता माथुर,धीरेन्द्र पाल सिंह,सनी रेशवाल, स्मिता शुक्ला, मोहित दांलतानी, अक्षय और सागर किराड़ थे। मंच से परे सामग्री,सज्जा आदि में कविता माथुर,दीपा,कपिल व शबनम का सहयोग रहा। संगीत विजय प्रजापत ने दिया और प्रकाश परिकल्पना ओम प्रकाश सैनी की थी।