राजस्थान कांग्रेस में युद्धविराम के संकेत, पिता और पुत्र जल्द मिल सकते है गले
पिछले दो साल से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चली आ रही जंग पूरी तरह समाप्त तो नही होगी । लेकिन दोनों के बीच तात्कालिक समझौते के संकेत मिल रहे है । हालांकि लगता नही है, लेकिन दोनों के गले मिलने की दिशा में पहल हो रही है । हो सकता है कि कांग्रेसियो को जल्द शुभ सूचना मिल जाए ।
पार्टी शीर्ष नेतृत्व अब यह समझ चुका है कि दोनों के बीच ज्यादा दिन जंग जारी रही तो अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो सकता है । यदि गहलोत और पायलट मिलकर काम करे तो बीजेपी को शिकस्त दी जा सकती है ।
दोनो नेताओ के बीच समझौता कराने के फार्मूले पर विचार किया जा रहा है । फार्मूला क्या होगा, यह अभी स्पस्ट नही हुआ है । लेकिन आलाकमान की ओर से कुछ ऐसे संदेश दिया गया है जिसकी वजह से गहलोत और पायलट के सुर बदल गए है । अब दोनों के बयानों में पहले जैसी तल्खी नही है । बल्कि बच्चे और बुजुर्ग तक मामला सिमटता जा रहा है ।
निश्चय ही सचिन पायलट वरिष्ठ और बुजुर्ग नेताओ का सम्मान करते है । मानेसर एपिसोड के बाद भी उन्होंने कोई ऐसे अल्फाज नही कहे जिससे उनकी आलोचना हो । बावजूद इसके वे गहलोत के मामले में सदैव खामोश रहे । ना उनकी तारीफ की और न ही आलोचना । लेकिन पिछले दिनों उन्होंने गहलोत को पिता तुल्य बताते हुए समझौते के मार्ग प्रशस्त कर दिया । पायलट का यह कहना कि गहलोत साहब मेरे पिता तुल्य है । लिहाजा मैं उनके कथन का बुरा नही मानता हूँ ।
अब गहलोत ने भी उसी तर्ज पर अपने सुर बदल लिए है । जिसको नकारा, निकम्मा और कामचोर बताते हुए जमकर सचिन को धोया था । अब वही गहलोत अप्रत्यक्ष रूप से पायलट की पैरवी करने में जुट गए है । गहलोत का कहना है कि निकम्मा उसी को कहा जाता है जो अपना होता है और अपने को बुजुर्ग द्वारा कही बात का कतई बुरा नही मानना चाहिए ।
गहलोत भी अब यह पुख्ता तौर पर समझ चुके है कि रोज की किच किच से बेहतर होगा कि वे पायलट से हाथ मिलाए । वर्तमान राजनीति का तकाजा भी यही है कि दोनों मिलकर जर्जर कांग्रेस को मजबूत करें । बीजेपी को तभी सत्ता से बाहर रखा जा सकता है । वैसे भी गहलोत को अपने पुत्र वैभव गहलोत का पुनर्वास करना है । अगर पायलट से छतीस का आंकड़ा रहता है तो वह वार्ड पार्षद भी नही बन सकता ।
उधर दो साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद भी पायलट आज भी हासिये पर है । गहलोत ने उन्हें पूरी तरह दरकिनार कर रखा है । जबकि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दो साल से घृतराष्ट्र की तरह पायलट की निरन्तर उपेक्षा को देख भी रहा है और समझ भी रहा है । पायलट कुछ भी कहे कि वे बीजेपी और अलग गुट की बात से इनकार करते रहे हो । लेकिन बीजेपी उनको लेकर करेगी क्या ? जब मौका आया था, तब वे चूक गए । ऐसे में पार्टी में बने रहना उनकी निष्ठा नही, विवशता है ।
पार्टी हित मे दोनो बड़े नेताओ का भरत मिलाप बहुत जरूरी है । अन्यथा प्रदेश में बीस सीट हासिल करना भी कठिन होगा । अगर पायलट यह मानकर चल रहे है कि शीर्ष नेतृत्व उनको सीएम बनाकर गहलोत को वनवास भेज देगा, ऐसा सोचना भी मूर्खता होगी । क्योंकि पूरा गांधी परिवार गहलोत के चंगुल में है । अगर गांधी परिवार को कोई निर्णय लेना होता तो बहुत पहले ले लेता । मींगनी कर कर के दूध देने में मजा नही है ।
एक मिनट के लिए मान भी लिया जाए कि सीएम की कुर्सी पायलट को सौप दी जाती है तो एक साल में वे कर क्या लेंगे ? क्या गहलोत आसानी से उन्हें काम करने देंगे ? अगर ऐसा ही होता तो सचिन को डिप्टी सीएम रहते हुए बगावत क्यो करनी पड़ी ? पूरा प्रशासन गहलोत की मुट्ठी में है । अगरचे दोनो के बीच समझौता हुआ तो गहलोत तो सीएम ही रहेंगे । पीसीसी चीफ की कुर्सी सचिन पायलट को दी जा सकती है । अगर कोई यह सोचता है कि गहलोत राजस्थान छोड़कर दिल्ली चले जाएंगे, ऐसा सोचने वालो को निराश ही होना पड़ेगा । संकेत मिले है कि भरत मिलाप जल्दी हो सकता है ।