कल तक पत्रकारों को अपना मित्र और मार्गदर्शक मानने वाले भाजपा के विधायकों और पदाधिकारियो को आज पत्रकारो से इतना गुरेज क्यो? जो लोग ऐरे-गैरो के आंदोलन में बिना बुलाये समर्थन देने पहुँच जाते थे, आज उनको पत्रकारो के नाम से ही कोफ्त होने लगी है। क्यो?
गहलोत ने धरना स्थल पर पत्रकारो को समर्थन देकर संवेदशीलता का परिचय दिया है। लेकिन इससे पत्रकारो की समस्या हल होने के बजाय और ज्यादा उलझेगी। सत्ताधारी पार्टी किसी को भी हड़ताल खत्म होने का क्रेडिट नही देना चाहेगी। विधानसभा सत्र तक पत्रकारो को इंतजार करना पड़ सकता है। उस वक्त देखा जाएगा कि कितने लोगों का लोकतंत्र में पक्का भरोसा है।