महाशिवरात्रि : ऐसे करें शिव को प्रसन्न

Update: 2016-03-06 10:03 GMT

महाशिवरात्रि


ज्योतिषाचार्यों की मानें तो इस साल की महाशिवरात्रि अद्भुत संयोग लेकर आ रही है। इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 7 मार्च, सोमवार को मनाया जाएगा। 12 वर्ष बाद इस तरह का संयोग निर्मित हुआ है जब शिवरात्रि सोमवार को पड़ रही है। सोमवार का दिन महादेव की आराधना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, इसलिए यह तिथि अपने आप में श्रेष्ठ है। महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की तिथि घनिष्ठा नक्षत्र में मनाई जाएगी।

इस वर्ष महाशिवरात्रि का महत्व कई गुना अधिक होगा। यह भी एक संयोग है कि इसे सिंहस्थ कुंभ का योग भी मिल रहा है। सालों बाद सिंहस्थ का योग निर्मित हुआ है। देव गुरु बृहस्पति, सिंह राशि में गोचर करेंगे। इस प्रकार से यह तिथि धार्मिक कार्यों की दृष्टि से खास है। इस दौरान महाशिवरात्रि की पूजा करने से भगवान प्रसन्न होंगे। साथ ही अपने भक्तों पर विशेष कृपा करेंगे।

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भगवान शिव का वरदान प्राप्त है और यह तिथि भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित मानी गई है। शास्त्रों में कहा गया है कि महाशिवरात्री की रात देवी पार्वती और भगवान भोलेनाथ का विवाह हुआ था इसलिए यह शिवरात्रि वर्ष भर की शिवरात्रियों में सबसे उत्तम है।

महाशिवरात्रि का पर्व दिन भर पूजन के साथ ही रात भर महादेव की भक्ति करने का होता है। महाशिवरात्रि का अर्थ ही होता है रात्रि में जागरण कर शिव की आराधना करना। महाशिवरात्रि की तिथि को रात में भजन-कीर्तन, शिव नाम जाप करने से भक्तों के कष्टों का अंत होगा। सोमवार को महाशिवरात्रि की तिथि होने से जिन राशि के जातकों की कुंडली में चंद्र देव की स्थिति कमजोर है वे जातक रात में दुग्ध से चंद्र देव को अर्घ्य अर्पित करते हुए आराधना कर इस दोष से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

महाशिवरात्रि के विषय में मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है। इस दिन शिव जी की उपासना और पूजा करने से शिव जी जल्दी प्रसन्न होते हैं। शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव का रूद्र रूप प्रकट हुआ था।

ऐसे करें शिव को प्रसन्न :
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यह दिन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा करने से जरुर भगवान प्रसन्न होते है। इनकी चारों में पूजा की जा सकती है। इसलिए हप प्रहर में भोलेनाथ को गन्ना, कुश, दूध, खस आदि का अभिषेक किया जाएगा। इसके साथ ही रुद्र पाठ, शिव महिमन और तांडव स्त्रोत का पाठ करें । और षोड्षोपचार पूजन के साथ भगवान शिव को आक, धतूरा, भांग, बेर, गाजर चढ़ाया जाएगा।

शैव व वैष्णव दोनों मतों के लोगों के एक ही दिन यह पर्व मनाने के कारण चार प्रहर की पूजा भी इसी दिन की जाएगी। जिसके प्रहर के अनुसार ये समय है।

निशीथ काल: आधी रात 12 बजकर 13 मिनट से लेकर 1 बजकर 02 मिनट तक
पहला प्रहर: शाम 6 बजकर 27 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 32 मिनट तक।
दूसरा प्रहर: रात 9 बजकर 33 मिनट से लेकर 12 बजकर 37 मिनट तक
तीसरा प्रहर: आधी रात 12 बजकर 38 मिनट से 3 बजकर 42 मिनट तक।
चौथा प्रहर:
आधी रात के बाद 3 बजकर 43 मिनट से लेकर सुबह 6 बजकर 47 तक।

इस मन्त्र के द्वारा अपनी पूजा को सफल बनाएं:
ॐ त्रयम्बकम यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।

शिव जी को त्रयंबक भी कहा जाता है। त्रयंबकं यजामहे सुगंधिपुष्टि वर्धनम्। उर्वारुकमिव बंधनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात। त्रयंबक गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी है, जिसके देवता महादेव हैं। अत: प्रयाग कुंभ पर अमृत प्राप्ति के लिए हम शिवरात्रि को महादेव शिव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।

पूजन सामग्री- भगवान शिव को पंचामृत, गंगाजल, चंदन, चावल, पुष्प, सिंघाड़े, बेलपत्र, भस्म, भांग, धतूरा, सफेद बर्फी, धूप-दीप बताशे अर्पित करने चाहिए। भगवान शिव के लिए सफेद रंग का अंगोछा और माता पार्वती के लिए लाल रंग की साड़ी और श्रृंगार सामग्री चढ़ानी चाहिए।

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