प्रतिव्रता नारी का महत्व, अदालती फैसले और करवाचौथ व्रत

Update: 2018-10-27 14:26 GMT

भारतीय संस्कृति एवं रीति रिवाजों की मिशाल दुनिया में नहीं मिलती है क्योंकि यहाँ पर महिलाएं अपने पति को परमेश्वर मानकर जन्म जन्म का साथ निभाने की मन्नतें माँगती है। यह वह देश है जहाँ पर एक समय में सती प्रथा प्रचलित थी और आज भी तमाम सती हुयी महिलाओं की पूजा अर्चना की जाती है और उनके सती स्थलों पर श्रद्धालुओं का मेला लगता है। इतना ही नहीं इन सती मंदिरों में जाने वाले श्रद्धालुओं की मनवांछित मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं जबकि राजा राममोहन राय के जमाने में ही सती प्रथा समाप्त हो चुकी है। जब प्रतिब्रता नारी अपनी औकात में आती है तो वह सती अनुसुइया बनकर ब्रह्मा विष्णु महेश को अपना पुत्र बनाकर उन्हें अपनी गोदी में खिलाने और अपना दूध पिलाने लगती है।


भारतीय नारी सदैव अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती है और लाख सुख सुविधाओं के बावजूद बिना पति के रहना पसंद नहीं करती है। सीताजी तमाम समझाने के बावजूद बिना पति के अकेले रहना पसंद नहीं किया और पति के साथ तमाम तकलीफों को हंसते हंसते झेल लिया और आखिर में उनका अपहरण भी हो गया लेकिन सीता जी अपने पतिव्रता धर्म से विचलित नहीं हुयी और जान देने के लिए तैयार हो गई थी। प्रतिव्रता महिलाओं के त्याग बलिदान के एक बल्कि नहीं हजारों किस्सें इतिहास के पन्नों में भरे पड़े हैं और पाश्चात्य सभ्यता के प्रवेश होने के बावजूद आज भी सत्तर फीसदी से ज्यादा महिलाएं प्रतिव्रता धर्म का निर्वहन करती है और जो भी पति के रूप में मिल जाता है उस पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर उसकी लम्बी आयु की कामना कर पराये पुरूष का मुँह भी देखना पाप मानती हैं। हमारे यहाँ अपने पति को छोड़कर पराये पुरूष के साथ रंगरेलियां मनाने वाली नारी को कुलटा वेश्यातुल्य माना जाता है और गौतम ऋषि द्वारा अपनी पत्नी अहिल्या को दिया गया शाप इसका ज्वलंत उदाहरण है।इधर हमारी संस्कृति को भ्रष्ट नष्ट करने की एक साजिश की जा रही है क्योंकि एक शादीशुदा महिला को पराये पुरूष के साथ यारी दोस्ती करने की छूट देना भारतीय संस्कृति पर आघात करने जैसा है।


इ़धर भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को पाश्चात्य सभ्यता में बदलने की एक सोची समझी मुहिम वामपंथी विचारधारा से प्रभावित होकर हमारे देश में चलाई जा रही है और विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर बैठे जिम्मेदार लोग अपने पद का दुरपयोग करके इसे बढ़ावा दे रहे हैं। अभी कुछ दिनों पहले देश की सर्वोच्च अदालत ने शादीशुदा महिला को पराये पुरूष मित्र से मित्रता करने की दी गई छूट निश्चित तौर पर भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है और इससे भ्रष्टाचार व्यभिचार को बढ़ावा ही नहीं मिलेगा बल्कि दामपत्य जीवन टूटकर चकनाचूर हो जायेगा जो श्रद्धा एवं विश्वास के बल पर चलता है।आज भारतीय धर्म संस्कृति का अनूंठा श्रद्धा आस्था से परिपूर्ण महिलाओं का पावन पर्व करवा चौथ है।


हम इस अवसर पर पति को परमेश्वर मानने वाली सभी भारत संस्कृति से ओतप्रोत महिलाओं को हम करवाचौथ की शुभ मंगल शुभकामनाएं देते हैं और सभी के पतियों की लम्बी उम्र की कामना भगवान भोलेनाथ से करते हैं।करवा चौथ व्रत का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व है और इसकी परम्परा आज से नहीं बल्कि आदिकाल से चली आ रही है।यह व्रत बहुत कठिन है लेकिन हमारी नारी शक्ति उसे प्रतिव्रता धर्म के सहारे आसान बनाकर सुबह से चाँद निकलने तक जल तक का त्याग कर भगवान का व्रत रखकर पति की लम्बी आयु के लिए विशेष पूजा अर्चना करती हैं। शायद यहीं कारण है कि भारतीय नारी को देवी कहने की परम्परा रही है और माना जाता है कि जहाँ पर नारी का निवास होता है वहाँ पर देवता रमण करते रहते हैं।करवा चौथ व्रत श्रद्धा आस्था भक्ति का प्रतीक माना गया है इसे हंसी मजाक में टालना नारीशक्ति का अपमान है और जहाँ पर नारी का अपमान होता था वहाँ पर सुख शांति नहीं बल्कि दरिद्रता का निवास होता है। 

लेखक भोलानाथ मिश्र वरिष्ठ पत्रकार है

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